सोमवार, 30 अक्टूबर 2017

फ़िनलैंड की शिक्षा पद्धिति नंबर 1 क्यों ?


Posted by : अध्यापक की सोच

भारत में शिक्षा की स्थिति फिनलैंड जैसी कब होगी? 

बहुत से शिक्षाविद यह सवाल पूछते हैं?

दुनिया में शिक्षा पर होने वाला कोई भी विमर्श या सेमीनार फ़िनलैंड का जिक्र किए बिना पूरा नहीं होती। फ़िनलैंड की इस सफलता का रहस्य वहां की संस्कृति और शिक्षा व्यवस्था में है। शिक्षा के क्षेत्र में फिनलैंड नंबर क्यों है? 

इस सवाल का जवाब खोजने के लिए बहुत सारे देशों के प्रतिनिधि फिनलैंड का दौरा करते हैं।

वर्तमान समय में फिनलैंड गहरे आर्थिक संकट का सामना कर रहा है और नई सरकार शिक्षा के क्षेत्र में होने वाले आवंटन में कटौती पर विचार कर रही है, ऐसे में वहां शिक्षा के महत्व को लेकर नए सिर से चर्चाओं का दौर गर्म है।

वहां के पूर्व शिक्षा मंत्री पार स्टेनबैक अपने एक लेख में कहते हैं, “शिक्षा के लिए हमारे देश की तारीफ होना एक साधारण बात है। साल दर साल हमने बेहतर प्रदर्शन करते हुए कोरिया, सिंगापुर और जापान जैसे देशों को पीछे छोड़ा है।”

फ़िनलैंड की सफलता का रहस्य

वह अपने लेख में वे बताते हैं कि फ़िनलैंड के शानदार अधिगम स्तर (लर्निंग रिजल्ट) के मुख्यतौर पर तीन कारण हैं

1. हमारी संस्कृति में शिक्षा और सीखना दोनों को बेहद सम्मानित स्थान हासिल है। 19वीं शताब्दी में फ़िनलैंड ने आज़ादी के बाद सबके लिए शिक्षा  (एज्यूकेशन फ़ॉर ऑल) में निवेश के माध्यम से एक राष्ट्रीय पहचान बनाई और उसे सुरक्षित रखा। इस तरह से आगे के विकास को रास्ता देने के लिए नींव पहले से तैयार थी।

2. दूसरा सबसे महत्वपूर्ण कारण है ‘कोई बच्चा छूटे नहीं’ (“Leave no child behind”) का नारा। अमरीका में इस नारे के लोकप्रिय होने से काफ़ी पहले फ़िनलैंड के स्कूलों में इस स्लोगन को आत्मसात कर लिया गया। इसके कारण सीखने में परेशानी का सामना करने वाले छात्रों को शिक्षकों और सहायकों की तरफ़ से उनके बाकी सहपाठियों के औसत स्तर पर लाने का प्रयास किया गया। जो ऐसे बच्चों पर अतिरिक्त ध्यान देते ताकि बाकी बच्चों की तरह उनका अधिगम स्तर (लर्निंग लेवल) बेहतर किया जा सके।

3. इस तरह की सफलता हासिल करने के लिए आपको उच्च गुणवत्ता वाले संवेदनशील शिक्षकों की जरूरत होती है। शिक्षा के क्षेत्र में अप्लाई करने वालों में मात्र 11 फ़ीसदी लोगों का चुनाव बतौर शिक्षक होता है, इसका मतलब है कि सबसे ज्यादा उत्साही लोगों का चुनाव होता है। इस पेश के प्रति सम्मान के कारण ही ऐसा संभव होता है कि प्रतिभाशाली छात्र टीचिंग प्रोफ़ेशन में आते हैं।

क्या हैं फ़िनलैंड में बहस के मुद्दे

पार स्टेनबैक कहते हैं कि हमारी शैक्षिक सफलता के मात्र तीन कारण नहीं है। वे बताते हैं कि हाल ही में आई एक रिपोर्ट में बताया गया कि फ़िनलैंड के क्लासरूम बाकी देशों की तुलना में ज्यादा अधिकारवादी है। नवाचार और भागीदारी भले ही नए और फ़ैशनेबल हो लेकिन वे शिक्षण और सीखने की प्रक्रिया (लर्निंग प्रॉसेस) के लिए हानिकारक हो सकते हैं।

फ़िनलैंड में अभी तीन मुद्दों पर काफ़ी चर्चा हो रही है। पहला मुद्दा है विज्ञान और गणित में लड़कियों का प्रदर्शन। 15 साल की उम्र में फ़िनलैंड के लड़कों की इस क्षेत्र में समझ इसी उम्र की लड़कियों से ज्यादा पाई गई। लेकिन यह अंतर बहुत ज़्यादा नहीं है और लड़कियों के लिए सकारात्मक उदाहरण पेश करते हुए इस खाई को भरने की कोशिशें जारी हैं।

वहीं दूसरा मुद्दा इतिहास के घटते हुए महत्व का है जिसके ऊपर बहस हो रही है, यहां लोगों को लगता है कि इतिहास की जानकारी का दायरा 20वीं शताब्दी से भी ज़्यादा व्यापक होना चाहिए। 

तीसरा मुद्दा भाषा के प्रशिक्षण से जुड़ा है। सवाल पूछा जा रहा है कि इसके शिक्षण पर शुरुआत से ध्यान क्यों नहीं दिया जाता?

हिंसा पर चिंता

फ़िनलैंड में स्कूलों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्कूलों में बढ़ती हिंसा को लेकर भी चर्चा हो रही है। इस आलेख में वे बताते हैं, “मैंने अपने एक लेख में सुझाव दिया कि कक्षा के अनुशासन को चुनौती देने वाले व्यवहार के ख़िलाफ़ कड़ाई होनी चाहिए। किसी व्यक्ति के बुरे व्यवहार के जो भी कारण हों, ऐसे व्यवहार से बाकी बच्चों के लिए भी सीखने के सकारात्मक माहौल पर असर पड़ता है। दुर्भाग्य से भविष्य से इस तरह की घटनाओं में बढ़ोत्तरी हो सकती है और स्कूलों में मनोचिकित्सकों की आवश्यकता होगी ताकि बिखरे हुए परिवारों से आने वाले बच्चों की मदद की जा सके।”

फ़िनलैंड की स्कूली व्यवस्था काफ़ी विकेंद्रीकृत है। नगरपालिका को राष्ट्रीय पाठ्यचर्या को अपने हिसाब से लागू करने पूरी छूट है। कौन से स्कूल में किस भाषा में पढ़ाई होगी? किस कक्षा से भाषा का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए, इस बारे में फ़ैसला करने का अधिकार नगरपालिका को ही होता है। वहीं स्कूल के लिए संसाधनों का निर्धारण करने की जिम्मेदारी स्थानीय राजनीतिज्ञों के हाथ में होती है।  लेकिन शिक्षकों के पदों की संख्या और स्कूलों के मानकों में फेरबदल उनके अधिकार क्षेत्र में नहीं आता। जब कुछ नगरपालिकाओं ने शिक्षा के बजट को निश्चित करने का फ़ैसला किया तो उन्हें शिक्षक संगठनों की तरफ़ से भारी विरोध का सामना करना पड़ा।

शिक्षा और शिक्षक के पेश के लिए सम्मान

यहां के स्कूलों में भी बच्चों को भोजन दिया जाता है, विदेश से यहां आने वाले लोगों को इस योजना पर काफ़ी हैरानी होती है लेकिन फ़िनलैंड के लोगों के लिए यह आम बात है।  अपने इस लेख में पार स्टेनबैक लिखते हैं कि बच्चों के स्वास्थ्य के लिए निश्चित तौर पर यह एक अच्छी योजना है। यहां बहस बच्चों को गरम खाना देने पर नहीं है, बल्कि इस बात पर होती है कि खाने में बच्चों को क्या परोसा जाए? 

भारत के संदर्भ में शिक्षण के पेश के बारे में कहा जाता है कि यहां वेतन कम है और काम के घंटे ज्यादा है। यहां शिक्षकों को मिलने वाले सम्मान में गिरावट आ रही है। लोगों को लगता है कि शिक्षक स्कूल में काम नहीं करते। शिक्षकों के सामने बहुत सी ऐसी चुनौतियां हैं, जिनका सामना करने में खुद को शिक्षक भी असहाय महसूस करते हैं। मगर उनकी बात कोई सुनने वाला नहीं है।

फिनलैंड में शिक्षा विषय पर अपने आलेख में स्टेनबैक कहते हैं कि फ़िनलैंड के सामने शिक्षा का खर्च उठाने की चुनौती है ताकि वह अपने और अंतरराष्ट्रीय समुदाय की अपेक्षाओं को पूरा कर सके। आख़िर में वे एक बड़ी मजेदार घटना बताते हैं कि एक बार उनसे एक टीवी रिपोर्टर ने स्थानीय अधिकारियों के लिए एक लाइन में कोई सुझाव देने के लिए कहा तो उनका जवाब था, “शिक्षा और शिक्षक के पेशे के लिए स्थाई सम्मान का भाव विकसित करने मं 150 साल लगते हैं।” जाहिर सी बात है कि टीवी रिपोर्टर उनके जवाब से ख़ुश नहीं हुए।

दोस्तो, ये उपरोक्त लेख agenda.weforum.org पर प्रकाशित आलेख  ‘3 reasons why Finland is first for education’ का हिन्दी अनुवाद "अध्यापक की सोच" के माध्यम से आप तक पहुंचा है। आपको ये लेख कैसा लगा ? जरूर टिप्पणी करें । इसके साथ निम्नलिखित लेख पर भी टिप्पणी करें ।


फ़िनलैंडः अब स्कूलों में ‘सब्जेक्ट’ नहीं, ‘टॉपिक’ के आधार पर होगी पढ़ाई

john--फ़िनलैंड की आबादी मात्र 55 लाख है। लेकिन इस छोटे से देश ने शिक्षा के क्षेत्र में जो कीर्तिमान स्थापित किये हैं, उसका लोहा पूरी दुनिया मानती है। सालों तक फ़िनलैंड ने अपनी सफल शिक्षा व्यवस्था से दुनिया के विभिन्न देशों का ध्यान आकर्षित किया है। इसके साथ-साथ फिनलैंड नेे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होने वाले असेसमेंट में साक्षरता और गणित के क्षेत्र में भी अपना दबदबा कायम रखा है।

केवल सिंगापुर और चीन ने प्रोग्राम फ़ॉर इंटरनैशनल स्टूडेंट असेसमेंट (पीआईएसए) में इस देश से बेहतर प्रदर्शन किया है। विभिन्न देशों के राजनीतिज्ञ और शिक्षा विशेषज्ञ  फ़िनलैंड का दौरा इसकी सफलता का रहस्य जानने के लिए करते हैं। अभी फ़िनलैंड साल 2020 तक स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था में बड़े बदलाव की तैयारी कर रहा है।

यहां की शिक्षा व्यवस्था में होने वाले आमूल-चूल बदलाव पर दुनियाभर की नज़रें टिकी हैं। इसमें विषय के आधार पर होने वाली पढ़ाई (teaching by subject) की जगह टॉपिक के आधार पर पढ़ाई (teaching by topic) को वरीयता दी जाएगी। हेलसिंकी में यूथ एण्ड एडल्ट एज्यूकेशन के प्रमुख लीसा ने कहा, “यह फ़िनलैंड की शिक्षा में होने वाला एक बड़ा बदलाव होगा। हम अभी इसकी शुरुआत भर कर रहे हैं।” इस बदलाव की पहल फ़िनलैंड की राजधानी हेलसिंकी से हो रही है।

इस शहर के डेवलेपमेंट मैनेजर पैसी सिलैंडेर बताते हैं, “हमें अभी अलग तरह की शिक्षा की जरूरत है जो लोगों को रोज़मर्रा की ज़िंदगी (वर्किंग लाइफ़) के लिए तैयार कर सके। आज के युवा आधुनिक कंप्यूटर्स का इस्तेमाल कर रहे हैं। पहले बहुत से बैंकों में हिसाब-किताब रखने की जिम्मेदारी क्लर्क रखते थे, लेकिन अब चीज़ें पूरी तरह बदल गई हैं। इसलिए हम उद्योगों और आधुनिक समाज की आवश्यकताओं के अनुरूप शिक्षा में जरूरी बदलाव कर रहे हैं।”

भविष्य की तैयारी

सुबह में एक घंटे इतिहास पढ़ाने, दोपहर बात एक घंटे भूगोल पढ़ाने वाली व्यवस्था में बदलाव लाया जा रहा है। इसकी जगह टॉपिक के आधार पर पढ़ाने वाली व्यवस्था लागू की जा रही है। उदाहरण के तौर पर पर प्रोफ़ेशनल कोर्स में एक किशोर को ‘कैफ़ेटेरिया सर्विसेस’ से जुड़ा पाठ पढ़ाया जा सकता है, जिसमें गणित, भाषा (ताकि विदेशी ग्राहकों को सेवा प्रदान की जा सके), लेखन कौशल और संचार कौशल के तत्व होंगे।

वहीं ज़्यादा एकेडमिक छात्रों को अंतर्विषयक टॉपिक्स पढ़ाए जाएंगे जैसे यूरोपीय संघ, जिसमें अर्थशास्त्र, इतिहास (संबंधित देश), भाषा और भूगोल के तत्व शामिल होंगे। यहां होने वाले बदलावों में बहुत सारी अन्य बातें भी शामिल हैं। इसमें निष्क्रिय ढंग से अध्यापक के सामने बैठने वाले प्रारूप में बदलाव भी शामिल है, जिसमें छात्र पाठ को सुनते हैं और सवाल पूछे जाने का इंतज़ार करते हैं। इसकी बजाय एक ज़्यादा सहयोगात्मक रवैया अपनाया जाएगा जहाँ छात्र छोटे समूहों में बैठकर समस्याओं का समाधान करेंगे (problem solving skill) और साथ ही साथ अपना संचार कौशल (communication skill) भी बेहतर करेंगे।

फ़िनलैंड के शहर हेलसिंकी के एज्यूकेशन मैनेजर मार्जो केलोनेन इस महीने के आख़िर तक शिक्षा में होने वाले व्यापक बदलाव की रूपरेखा पेश करेंगी। उन्होंने कहा, “यह बदलाव केवल हेलसिंकी में नहीं बल्कि पूरे फ़िनलैंड में लागू होंगे।” हमें वाकई शिक्षा के बारे में नए सिरे से सोचने और व्यवस्था को रीडिज़ाइन करने की जरूरत है ताकि हमारे बच्चे भविष्य के कौशल सीख सकें जो आज और भविष्य के लिए जरूरी है।

‘अब वापस नहीं लौट सकते’

यहां बहुत सारे स्कूल हैं जो पुराने तरीके से पढ़ा रहे हैं जो 19वीं शताब्दी की शुरुआत से लाभदायक साबित हुआ था – लेकिन अब जरूरतें पहले जैसी नहीं है और हमको ऐसी व्यवस्था चाहिए जो 21वीं सदी के अनुकूल हो। छात्रों को ‘परीक्षा की फ़ैक्ट्री’ में धकेलने से बेहतर होगा कि हम बच्चों में संचार कौशल और अन्य क्षमताओं का विकास करें।

ऐसा नहीं है कि फ़िनलैंड में इन सुधारों का स्वागत ही हो रहा है। शिक्षकों और संस्था प्रमुखों की तरफ़ से इन बदलाओं पर आपत्ति जताई जा रही है, जिन्होंने अपनी पूरी ज़िंदगी किसी विषय विशेष पर लगा दी, अब उनसे अपना नज़रिया बदलने के लिए कहा जा रहा है। इस नई व्यवस्था को अपनाने वाले शिक्षकों के वेतन में थोड़ी बढ़ोत्तरी की जाएगी।

सिलैंडेर कहते हैं कि हेलसिंकी शहर के 70 फ़ीसदी से ज़्यादा स्कूलों के शिक्षकों को नए तरीके अपनाने के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है। उन्होंने कहा, “हमने वास्तव में लोगों का माइंडसेट (पूर्वाग्रह) बदलने में कामयाबी पाई है। शिक्षकों की तरफ़ से शुरुआत करवाना और पहला क़दम उठाना वाकई मुश्किल है….लेकिन जिन शिक्षकों ने नए तरीके को अपनाया है उनका कहना है कि अब वे वापस नहीं लौट सकते।”

बदलाव के नतीजे

इस बदलाव को लेकर हुए अध्ययन के शुरुआती आँकड़े दर्शाते हैं कि इस बदलाव से छात्रों को लाभ हो रहा है। इस शिक्षण पद्धति के लागू होने के दो साल बाद छात्रों का ‘आउटकम’ बेहतर हुआ है। वहां के स्कूलों में इस ‘टॉपिक आधारित शिक्षण’ को कम से एक बार लागू करने को कहा गया है। हेलसिंकी में इन सुधारों को तेज़ी के साथ लागू किया जा रहा है और स्कूलों को प्रोत्साहित किया जा रहा है कि नए तरीके से पढ़ाने के लिए वे दो क्लॉस अवश्य लें। फ़िनलैंड के स्कूलों में इन सुधारों को 2020 तक लागू किया जाएगा। इस बीच प्री-स्कूल सेक्टर में भी इन बदलावों को नवाचारी प्रोजेक्ट के माध्यम से अपनाया जा रहा है, प्लेफुल लर्निंग सेंटर (पीएलसी) भी कंप्यूटर गेम इंडस्ट्री के साथ बातचीत कर रही है ताकि छोटे बच्चों के लिए ‘खेल’ के माध्यम से सिखाने के नये तरीके की खोज हो सके।

पीएलसी प्रोजेक्ट के निदेशक ओलावी मेंटानेन कहते हैं, “हम फ़िनलैंड को बच्चों के सीखने से संबंधित खेल का समाधान देने वाले अग्रणी देशों में शामिल करना चाहेंगे।” फ़िनलैंड जब अपनी शिक्षा व्यवस्था में  इन बदलावों को जगह दे रहा होगा तो शैक्षिक जगत की निगाहें उसके ऊपर टिकी होंगी। क्या यह अपनी पीसा (पीआईएसए) रैंकिंग को बरकरार रखने में कामयाब होगा? अगर ऐसा होता है तो शैक्षिक जगत की प्रतिक्रिया क्या होगी? यह देखने लायक होगा।

साभारः द इंडिपेंडेंट पर प्रकाशित रिपोर्ट “Finland schools: Subjects scrapped and replaced with ‘topics’ as country reforms its education system” 20/03/2015

Aks Team

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