सोमवार, 16 अक्टूबर 2017

बालकनामा-दुनिया का पहला अनोखा समाचारपत्र

प्रेषित:अध्यापक की सोच

कहा जाता है कि जब आपको कोई रास्ता न दे तो अपनी राह आपको खुद ही बना लेनी चाहिए, हो सकता है आपकी बनायी यही राह आने वाली और कई पीढियों को मंजिल तक पहुँचाने के काम आए, ये बात हम सब भली-भांति जानते हैं लेकिन फिर भी हममे से बहुत से लोग रास्ता न मिलने पर हार मान लेते हैं। आज देश में लाखो समस्याएं देखने को मिलती हैं, उसी में से एक है बालमजदूरी और उससे जुड़ी हुई मजबूरियां। जहाँ मीडिया बड़े लोगों की खबर दिखाने में व्यस्त था, वहीँ जब फुटपाथ पर रह रहे कुछ बच्चो ने देखा कि किसी अखबार या मीडिया में उनकी समस्याओ के लिए कोई जगह नहीं है। तो उन्होंने अपनी बात लोगों तक पहुंचाने के लिए स्वयं ही कुछ ऐसा करने का फैसला किया जिसे सुनकर आप भी दंग रह जाएगे-

शुरू किया अपना ही अख़बार

दिल्ली जैसे बडें शहर में बालमजदूरी करने वालें हजारों बच्चे है, लेकिन इनकी सुनने वाला कोई भी नही है। जब बालमजदूरी से ग्रस्त कुछ बच्चों की खबर किसी मीडिया चैनल या अखबार ने नहीं ली तो इन्होने खुद ही खबरें छापने की मुहिम को जन्म दे दिया, और इस तरह शुरू हुआ दुनिया का अनोखा अखबार बालकनामा

बालकनामा का नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में

बालकनामा दुनियाँ का ऐसा अनोखा अखबार है जिसे सड़क पर रहने वाले कामकाजी बच्चे चलाते हैं, इस अखबार की चर्चा न केवल भारत में बल्कि पूरी विश्व में भी हैं, इतना ही नहीं यह अनोखा अखबार अपना नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में भी दर्ज करवा चुका है।

बच्चे खुद ही हैं इस अखबार के रिपोर्टर और एडिटर

इस अनोखे अखबार के बच्चे खुद ही इसके रिपोर्टर हैं, वे खबरें खुद ही लिखते हैं और जिसे लिखना नहीं आता वो बोल-बोल कर लिखने वाले से लिखवा लेते हैं, इतना ही नहीं ये बच्चे फिर इसे खुद ही एडिट कर छापने के बाद इस अखबार को दस हज़ार बच्चों तक पहुंचाते भी हैं।

गैर सरकारी संस्था चेतना ने संवारा

आपको बता दें कि चेतना नाम की गैर सरकारी संस्था ने इन बच्चों को एक ऐसा प्लेटफार्म दिया है जहाँ ये न केवल अपनी बात रख सकते हैं बल्कि हजारों लोगों तक पहुँचा भी सकते हैं। संस्था की मदद से इन्हें अखबार को छापवाने में कोई दिक्कत का सामना नही करना पडता है।

कभी सुर्खियाँ नहीं बन पाती फुटपाथ की ज़िंदगी

ये देखा गया है कि फुटपाथ की ज़िंदगी कभी सुर्खियाँ नहीं बन पाती, चाहे बात हमारे देश के भविष्य की ही क्यों न हो। देश की राजधानी में भी इनकी समस्याओं पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता हैं वहीँ बालकनामा अखबार चलाने का फैसला वाकई प्रेरणादायक है। और आज इसकी बढती कामयाबी ही फुटपाथ पर रहने वालों की जिंदगी की वजह से है।

बढ रही हैं लोगों में मांग

इस अनोखे अखबार की बुलंदिया दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं, इस बात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता हैं कि ये खबर पहले त्रिमासिक था लेकिन यह अब हर दो महीने पर छपता है, इतना ही नहीं इसका एडिटर बोर्ड अब इसकी बढती मांग को देखकर इसे हर महीने छापने कि योजना पर भी काम कर रहा है, आपको बता दें कि बालकनामा की पांच हज़ार प्रन्तियाँ छापी जाती हैं।

मिलती है फुटपाथ पर रहने वाले बच्चों की सारी खबर

आपको इस अखबार में फुटपाथ पर रहने वाले इन बच्चों की अपनी दुनियाँ की वो सारी ख़बरें मिल जाएगी, जो शायद मुख्य धारा के मीडिया में आपको नहीं मिल पाए। इस अखबार के माध्यम से फुटपाथ पर रहने वाले बच्चों की समस्याओं से जुडी सारी खबरें होती है।

फुटपाथ के बच्चों की कहानियाँ लोगों को करती हैं प्रेरित

कहा जाता है कि प्रतिभाए आभाव में ही निखरती हैं, उसी तरह इनकी अपनी निजी ज़िंदगी की कहानियाँ न जाने कितने लोगों को प्रेरित करती हैं। इस अखबार में फुटपाथ पर रहने वाले बच्चों की समस्याएं और उन पर होते अत्याचार की खबरें सीधे उन्हीं बच्चों से लिखवाई जाती हैं, बाल मजदूरी, यौन अपराध और पुलिस के अत्याचार की ख़बरें इस अखबार के ज़रिये आप खुद इन्ही बच्चो से जान सकते हैं।

‘ बालकनामा ‘ अखबार एक ऐसा ही प्रयास है जो प्रत्यक्ष रूप से हमे बता रहा है कि अब भारत को बहुत तेजी से आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता। बालकनामा गरीब बच्चों द्वारा संचालित एक 8 पन्नों का अखबार है जो बच्चों से जुड़े मुद्दों को बड़ी संजीदगी से उठाता है और लोगों के समक्ष रखता है। बालकनामा की खासियत ये है कि इससे जुड़ने वाले सारे बच्चों की उम्र 14 से 18 तक होती है। बालकनामा अखबार बढ़ते कदम नाम का संगठन चला रही है जिससे देश भर में 10 हजार से ज्यादा गरीब बच्चे जुड़े हैं। इसके अलावा भी बढ़ते कदम गरीब बच्चों के उत्थान के लिए कई और कार्यक्रम चलाता है। यह संगठन पूरी तरह से बच्चों द्वारा संचालित किया जाता है।

बालकनामा अखबार की शुरूआत 2003 में हुई तब बढ़ते कदम संगठन में केवल 35 बच्चे थे और यह दिल्ली में ही काम करता था लेकिन उसके बाद संगठन का विस्तार हुआ और उसके बाद संगठन से जुडे बच्चों की संख्या लगातार बढ़ने लगी और अब बच्चों की संख्या 10 हजार तक हो गई। बालकनामा का नेटवर्क दिल्ली के अलावा मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश हरियाणा में फैला हुआ है और इसकी 5 हजार से ज्यादा प्रतियां छापी जाती हैं। यही नहीं बालकनामा का 2015 से अंग्रेजी में भी अनुवाद किया गया और अब इसे अब विदेशों में भी भेजा जाता है। बालकनामा से एक लंबे असरे से जुड़ी शानू ने बताया, 

हम बालकनामा के जरिए गरीब बच्चों से जुड़े मुद्दे बड़ी संजीदगी से उठाते हैं और उन्हें लोगों के सामने रखते हैं। चूंकि मैं अब 18 वर्ष से ज्यादा की हो चुकी हैं इसलिए अब मैं अखबार के लिए नहीं लिखतीं, लेकिन बतौर एडवाइजर अखबार से जुड़ी हुई हूं और बच्चों की मदद करती हूं। इससे पहले मैं अखबार की कई वर्षों तक संपादक रह चुकी हूं।

शानू बताती हैं कि उन्होंने अपनी जिंदगी में बहुत कुछ देखा है जब वे 11 साल की थी तो घर के तंग आर्थिक हालात के कारण उन्हें अपनी पढ़ाई छोड़कर कारखाने में काम करने जाना पड़ा लेकिन बढ़ते कदम और फिर बालकनामा से जुड़ने के बाद उनकी जिंदगी बदल गई उन्होंने अपनी पढ़ाई फिर शुरू की और अब वे बैचलर ऑफ सोशल वर्क के प्रथम वर्ष में हैं। शानू के अलावा भी बढ़ते कदम के माध्यम से कई बच्चों की जिंदगी में काफी बदलाव आया है।

बालकनामा का नेटवर्क बड़ा जबर्दस्त है इन्होंने अपने नेटवर्क को इस तरह तैयार किया है कि हर डिस्ट्रिक्ट में बालकनामा के रिपोर्टर फैले हुए हैं। इनमें लड़के और लड़कियां दोनो शामिल हैं। सभी रिपोर्टर्स की उम्र 18 साल से कम होती है। ये रिपोर्टर्स अपने एरिया में देखते हैं कि बच्चों की क्या दिक्कते हैं। ये लोग मीटिंग्स करते हैं बच्चों से मिलते हैं। बालकनामा में दो तरह के रिपोर्टर्स हैं-

1) बातूनी रिपोर्टर या खोजी पत्रकार- ये खबरों को खोजते हैं

2) दूसरे रिपोर्टर वो जो खबरों की जांच करते हैं और उन्हें लिखते हैं।

अभी बालकनामा से जुडे रिपोर्टर्स की संख्या 14 हैं जो कहानी को लिखते हैं, इसके अलावा अलग-अलग राज्यों में इनके बातूनी रिपोर्टर्स सक्रिय हैं जो खबरों को भेजते हैं। ये सभी समय-समय पर मिलते हैं। बालकनामा में काफी जांच पड़ताल और सहमती के साथ ही खबरों को छापा जाता हैं। हर महीने की 25 तारीख को एडिटोरियल मीटिंग होती है। जहां खबरों का विश्लेषण किया जाता है और अगले महीने के बारे में चीज़ें तय की जाती हैं।

शानू बताती हैं कि अखबार की सर्कुलेशन बढ़ाने के लिए अब वे लोग हर संभव कदम उठा रहे हैं और भविष्य में इसके विस्तार की कई योजनाएं हैं ताकि अखबार को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जा सके और इसके माध्यम से गरीब बच्चों की समस्याओं को सबके सामने लाया जा सके।

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