हर समाज के चहुंमुखी विकास में शिक्षा की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण होती है, यह तो आप अच्छे तरीके से जानते होंगे। किसी भी राष्ट्र का आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक विकास उस देश की शिक्षा पर निर्भर करता है। शिक्षा के अनेक आयाम हैं, जो राष्ट्रीय विकास में शिक्षा के महत्व को रेखांकित करते हैं। क्या कभी आपने जाना है कि दुनिया की तीसरी बड़ी आर्थिक शक्ति के रुप में उभर कर सामने आने वाले चीन में शिक्षा की क्या स्थिति है। तो चलिए, आज हम चीन में स्कूली शिक्षा के बारे में कुछ जानकारी हासिल करते है, और चीनी छात्रों के जीवन के बारें में भी जानते है। सबसे पहले हम इतिहास के पन्नों को पलटते है।
सन 1949 में चीनी जन लोक गणराज्य की स्थापना से पहले चीन में सामंती व्यवस्था थी, जिसमें किसानों,मजदूरों और महिलाओं को शिक्षा से पूरी तरह दूर रखा गया था। नए चीन की स्थापना के बाद सभी लोगों को शिक्षा उपलब्ध कराने का लक्ष्य चीन ने सामने रखा। शिक्षा के क्षेत्र में कई प्रयोग किए गए। यह तो आप जानते ही हैं कि हर प्रयोग हमेशा सफल नहीं होता। इसी तरह चीन में भी 1966 से 1976 की सांस्कृतिक क्रांति के दौरान शिक्षा के क्षेत्र में जो प्रयोग किए गए, उनका नुकसान उस समय की पीढ़ी को उठाना पड़ा। जब सब स्कूल कॉलिज और विश्वविद्यालय बंद कर दिए गए और यह माना गया कि बुद्दिजीवियों को गांव में जा कर किसानों से शिक्षा हासिल कर जमीनी सच्चाईयों को जानना चाहिए। इस प्रयोग की खामियां भी तुरंत ही सामने आ गईं और इसका परिणाम यह हुआ कि देश में आर्थिक और वैज्ञानिक विकास के लिए जरुरी तकनीशियनों, प्रोफेशनलों, अध्यापकों और पढ़े-लिखे लोगों का अकाल-सा पड़ गया।
लेकिन चीनी शिक्षा में सुधार जारी रहा। तंग श्याओ पिंग के नेतृत्व में चीन ने शिक्षा में उदार दृष्टि से सुधार किए और आज स्थिति यह है कि चीन में सारी जनता तक शिक्षा पहुंचाने का लक्ष्य लगभग पूरा हो गया है।
व्यापक जनता तक शिक्षा पहुंचाने के लिए चीन में कई तरह के स्कूलों की योजना बनाई गई है। यहां प्री-स्कूल, किंडरगार्टन, और ऐसे विद्यार्थियों के लिए भी स्कूल जो देख-सुन नहीं पाते है या जिनमें विशेष योग्यता है। इसके अलावा प्राथमिक स्कूल, सैकेंडरी स्कूल हैं, सैकेंडरी तकनीकी स्कूल, वोकेशनल स्कूल और सैकेंडरी प्रोफेशनल स्कूल आदि भी हैं।
चीन में विशेष स्कूल भी हैं जहां मेरिट के आधार पर छात्रों को भर्ती किया जाता है और इन स्कूलों को सरकार की ओर से अधिक सुविधाएं मिलती हैं और यहां से निकलने वाले छात्रों को अच्छे उच्च स्कूलों में प्रवेश मिलना आसान होता है। लेकिन विशेषज्ञों ने इन स्कूलों की स्थापना पर प्रश्नचिंह भी लगाए हैं और बहुत से प्रांतों ने जैसे छांगछुन,शनयान,शनचन,श्यामन आदि ने विशेष स्कूलों को खत्म कर दिया है। अंग्रेजी की शिक्षा तीसरी कक्षा से दी जाने लगती है। लगभग हर स्कूल में सप्ताह में एक दिन विद्यार्थियों को सामुदायिक कार्य भी करना होता है। विद्यार्थियों को अक्सर समूहों में बंट कर काम करना होता है ताकि वह मिल जुल कर रहना और काम करना सीख सकें। जिम्मेदारी की भावना पैदा करने के लिए स्कूल और कक्षा की आम सफाई का काम छात्रों को ही बारी-बारी से करने को दिया जाता है। 9 साल की अनिवार्य शिक्षा में शहर और गांव में दी जाने वाली शिक्षा में फर्क को कम करने के प्रयास किए गए हैं। गावों में दी जाने वाली शिक्षा में फसल के मौसम को ध्यान में रखा जाता है, छुटिटयों को, कक्षाओं को आगे-पीछे खिसकाया जा सकता है। वोकेशनल और तकनीकी शिक्षा को इसमें शामिल किया गया है।
आम तौर पर स्कूल सुबह 7 बजे शुरु हो जाता है। हर कक्षा 45 मिनट की होती है और खाने की छुटटी के अलावा शाम तक क्लासिस होती है। वैसे तो क्लास केवल पांच दिन होती हैं लेकिन बच्चों को सप्ताह की छुटटी होने पर भी छुटटी नहीं होती। परिवार में केवल एक बच्चा होने के कारण और चीन में तेजी से विकास होने के कारण नौकरी पाने, अच्छी नौकरी पाने के लिए अच्छे स्कूलों में उनके बच्चे शिक्षा पाएं, यह चिंता हर मां-बाप को, विशेषकर शहरों में रहने वाले मां-बाप को ज्यादा रहती है। माध्यमिक स्कूल पहला ऐसा एक पड़ाव है जिसमें प्रवेश पाने के लिए विद्यार्थियों को प्रवेश परीक्षा से गुजरना पड़ता है। हर शहर में कुछ स्कूल अन्य स्कूलों की अपेक्षा अधिक अच्छे माने जाते हैं और उनमें प्रवेश लेने के लिए प्रतियोगिता भी बहुत कड़ी होती है। अच्छे माध्यमिक स्कूल में उनके बच्चे प्रवेश लें, इसके लिए चूहा दौड़ लगी रहती है जिसका खामियाजा बच्चों को झेलना पड़ता है। उनका सप्ताहांत खेल, आराम की जगह निजी कक्षाएं ले लेती है।
ऐसे ही एक बच्चे से हमने पूछा तो उसने बताया:
"शनिवार को मुझे स्कूल तो नहीं जाना पड़ता, लेकिन सुबह 2 घंटे के लिए प्यानों सीखने के लिए जरूर जाना पड़ता है, और दोपहर बाद 1 घंटे के लिए अंग्रेजी की क्लास में जाना होता है, जबकि रविवार को 3 घंटे मैथ्स की क्लास के लिए जाना होता है, और बाकी समय में स्कूल से मिला होमवर्क करना होता है।"
जब हम ने एक बच्चे के माता-पिता से पूछा कि क्या उन्हें नहीं लगता कि वे अपने बच्चे पर बहुत अधिक बोझ डाल रहे हैं तो उन्होंने कहा:
"जीवन में प्रतियोगिता बहुत कठिन है और बच्चा यदि खेल कूद में ही समय बिताता रहा तो आगे जीवन में पिछड़ जाएगा। शहरी जीवन में और तेजी से विकास कर रहे समाज के सामने ऐसी स्थितियां आती ही हैं, जिन्हें अच्छे-बुरे की कसौटी पर रख कर परखना संभव नहीं है। जब हमारा बच्चा कामयाब हो जायेगा, तो इससे बडी खुशी माता-पिता को और क्या हो सकती है"
बच्चों को अच्छे स्कूलों में डालने की चूहा-दौड़ के अलावा एक और बुखार ने शहरी चीनी समाज को अपनी चपेट में ले रखा है। वह है अंग्रेजी सीखने की दौड़। अंग्रेजी सिखाने के स्कूल शहरों में हर जगह देखने को मिल जाएंगे। अंग्रेजी सीख कर रोजगार के अवसर बढेंगे और अच्छी नौकरी मिलेगी, यह सोच कर हर व्यक्ति अंग्रेजी सीखने में लगा है। इस तरह के स्कूलों में अंग्रेजी पढ़ाने वाले अध्यापक बहुत अच्छी तनख्वाह पा रहे हैं, जबकि उनकी तुलना में चीनी अध्यापक जो मेहनत भी ज्यादा करते हैं, उनकी तनख्वाह कम होती है। लेकिन जो बच्चे अब हाई स्कूल में और विश्वविद्यालय में पहुंचे हैं उन के सामने ऐसी समस्या नहीं है,पिछले दस साल से अंग्रेजी पर जो ध्यान दिया गया है उसका परिणाम यह है कि स्कूलों, कॉलिजों और विश्वविद्यालय में पढऩे वाले छात्रों की अंग्रेजी बहुत अच्छी है। हाँ, गांवों में स्थिति जरुर ऐसी नहीं है।
(लेखक: अखिल पाराशर)
प्रस्तुति : अध्यापक की सोच
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