शुक्रवार, 30 जून 2017

गलती करना-2 (अकल लगाने की आजादी)

एक से ज्‍यादा तरीके सम्भव

गणित में आमतौर पर जवाब में गलती होने पर उस सवाल को हल करने की विधि दोबारा, तिबारा बता दी जाती है। इसके बाद भी गलतियाँ करने पर उसकी जिम्‍मेदारी बच्चे पर डाल दी जाती है। इसके पीछे यह मान्यता होती है कि किसी गणितीय समस्या को हल करने का सबसे बेहतरीन तरीका उसे हल करने की गणनविधि के कदमों को आस्थापूर्वक याद रखना और उन्हें उसी क्रम में इस्तेमाल करना होता है। जो इसे करने में मुश्किल पाते हैं उनके बारे में माना जाता है कि उनकी याददाश्त कमजोर है, वे क्रम को याद नहीं रख पाते और नतीजन उनका दिमाग भी कमजोर है।


मुश्किल यह है कि सवाल को हल करने के लिए बड़े जिस तर्क व तरीके को इस्तेमाल करते हैं उसे इन्सानों ने सदियों की मेहनत से विकसित किया है। उन तरीकों की एक बड़ी खूबी यह होती है कि उनकी मदद से कम-से-कम कदमों में सटीक जवाब की गणना की जा सकती है। इस सवाल में अपेक्षित नियम को ही लें तो इस ऐकिक नियम को खोजने से पहले इन्सान काफी वक्त तक कई तरीकों से इस किस्म के सवालों को हल करता रहा होगा। जब हम बच्चों को ऐकिक नियम से गणितीय समस्याओं को हल करने का सटीक व संक्षिप्त तरीका सिखाने के पीछे हाथ धोकर पड़ जाते हैं तो बच्चों के पास उस गणनविधि को अपने तरीकों से गढ़ने व इसके बहाने इसके विकास की कुछ समस्याओं से जूझने का, दूसरी अवधारणाओं के साथ उसके सम्बन्धों को समझने का एवं खुद उस विधि में निहित कदमों का अर्थ व उनकी जरूरत को समझने व उनके बारे में अपनी शंकाओं को रखने या उनकी छानबीन करने का मौका नहीं मिलता। इसका नतीजा यह होता है कि वे बगैर समझे कदमों को याददाश्त के सहारे इस्तेमाल करने का अभ्यास करते रहते हैं।

जैसे इस सवाल को बगैर मानक गणनविधि के इस्तेमाल के इस तरह से भी हल किया जा सकता है :

15 ट्रक में 3000 कट्टे
5 ट्रक में 1000 कट्टे
1 ट्रक में 200 कट्टे
3 ट्रक में 600 कट्टे

5 व 3 मिलाकर 8 ट्रक में 1600 कट्टे।

अब यह रास्ता भले ही थोड़ा लम्बा लगे लेकिन आपको लगातार सोचने पर मजबूर तो करता ही है। इसके साथ-ही आपको इसमें बेहद सरल गणनाओं का इस्तेमाल करना पड़ता है। आपको मशीनी तरीके से 3000 में 15 का भाग देने की जरूरत नहीं पड़ती। इस तरह से आपके दिमाग में लगातार ट्रकों की संख्या और उसमें रखे जाने वाले कट्टे की संख्या पर विचार चलता रहता है। और साथ ही आपको गुणा-भाग से ज्‍यादा पेचीदी अवधारणा अनुपात व समानुपात का सार्थक इस्तेमाल करने में हाथ आजमाने का मौका बार-बार मिलता रहता है।

अलग-अलग तरीकों से किसी समस्या को हल करना कुछ-कुछ ऐसा है जैसा कि अलग-अलग रास्तों से किसी एक ही मंजिल तक पहुँचना। इस तरह से काम करते वक्त आप उन रास्तों व मंजिल के सम्बन्ध को भी ज्‍यादा गहराई से समझ पाते हैं। इसके साथ ही मौका पड़ने पर आप मंजिल तक पहुँचने के लिए उपयुक्त रास्ते का चुनाव करने की काबिलियत भी खुद में विकसित कर पाते हैं।

अवधारणात्मक चिन्तन तक

दीपा के द्वारा सवाल को हल करने के तरीके से साफ है कि उसे गणनविधि के इस्तेमाल से यानी प्रक्रियागत तरीके से हल करना सिखाया गया है। इस तरीके में बच्चों को किसी समस्या को हल करने की प्रक्रिया के कदम सिखा दिए जाते हैं और उन कदमों को उसी क्रम में तय करने पर समस्या का जवाब मिल जाता है। अगर आपने कदमों का क्रम उलटा-पुलटा कर दिया या कोई कदम छोड़ दिया तो सही जवाब मिलने की सम्भावना करीब-करीब खत्म-सी हो जाती हैं। तो दीपा से कहा जा सकता है कि वह इस सवाल को फिर से हल करे। लेकिन उसने प्रक्रियागत कदम तो सही ही अपनाए। सो उसकी शंका इस प्रक्रिया को दोहराने के बावजूद वहीं की वहीं बनी रहेगी।

प्रक्रियागत तरीके में संक्रियाओं से जुड़े सवालों में जवाब की जाँच करने के लिए एक प्रक्रिया और सिखाई जाती है जिसमें गुणा व भाग के उलट सम्बन्धों का इस्तेमाल करते हुए जवाब की जाँच करवाई जाती है। इस तरीके से वह जवाब की जाँच करके यह पता कर सकती है कि उसने जिस जवाब को गलत समझ कर उसमें से एक शून्य काट दिया था वह दरअसल सही है। इससे जवाब तो सही हो जाएगा लेकिन दीपा के मन में पैदा हुई शंका फिर भी दूर नहीं होगी।

उस शंका को दूर करने के लिए हमें इस बात पर ध्यान देना पड़ेगा कि इसकी जड़ आखिर कहाँ पर है। दीपा ने सवाल को हल करते समय जवाब के सही होने या न होने के बारे में अनुमान लगाने की एक अच्छी कार्यनीति का इस्तेमाल किया लेकिन उसके इस्तेमाल करने में हुई चूक की वजह से नतीजे में जवाब गड़बड़ा गया। यानी दीपा के अनुमान लगाने के तरीके में कुछ समस्या है।

आप देख सकते हैं कि दीपा उसी पन्ने पर दिए गए सवालों को हल करने से मिले अनुभवों के आधार पर नतीजे निकालकर उनका इस्तेमाल नए सवालों के हल को जाँचने में कर रही है। वह एक स्तर के सवालों को हल कर एक तरह का सामान्यीकरण कर रही है। सामान्यीकरण का इस्तेमाल बच्चे अक्सर एक जैसे सवालों को शीघ्र हल करने के लिए भी करते हैं।

एक खास किस्म के तार्किक ढंग से अनुमान लगाना और उससे जुड़े अनुभवों का सामान्यीकरण करके उनके नतीजों को आगे इस्तेमाल करना दो ऐसी काबिलियतें हैं जो हर विषय और जिन्दगी में कई जगहों पर कई बार काम आती हैं और जिनके विकसित होने के मौके गणित में सबसे ज्‍यादा व सबसे अच्छी तरह से मिलते हैं।

अब अगर आप सामान्यीकरण की क्षमता को एक बुनियादी गणितीय क्षमता के तौर पर मानते हैं और यह भी मानते हैं कि इसका विकास परिभाषा को रटवाकर नहीं बल्कि अलग-अलग हालातों में इस काबिलियत को इस्तेमाल करके ही किया जाना चाहिए; तो आप अध्यापक व अभिभावक के नाते इस बात की खोजबीन करने के लिए उत्सुक हो सकते हैं कि यह बच्ची सामान्यीकरण जैसी काबिलियत का इस्तेमाल तो कर रही है जो कि अपने आप में एक अच्छी बात है लेकिन वह ऐसी क्या गड़बड़ कर रही है जो उसे गलत नतीजों की ओर धकेल रहा है।

यहाँ पर दो सवाल उठते हैं - पहला, हम अनुमान लगाने के तरीके में हुई गड़बड़ी को कैसे समझें? दूसरा, उसे दीपा के सामने कैसे उजागर करें कि वह इसमें छुपी गड़बड़ी को न सिर्फ पहचान पाए बल्कि इस किस्म की अन्य गड़बड़ियों से जूझने के लिए खुद की भी थोड़ी काबिलियत बढ़ाने की दिशा में कदम बढ़ा पाए।

किसी भी गणितीय समस्या के हल के सही या गलत होने का अनुमान लगाने का आधार कोई-न-कोई गणितीय विचार होना चाहिए। हमारे यहाँ इन युक्तियों या विचारों पर आमतौर पर चर्चा नहीं की जाती इसलिए बच्चे अनुमान के लिए ज्‍यादातर तुक्के भिड़ाते हैं। अब तुक्का तो तुक्का है कभी तीर बन जाता है तो कभी तुक्का ही रह जाता है। दीपा ने तीर यह चलाया कि जवाब के सही या गलत होने की जाँच अनुमान लगाकर की जाए। लेकिन अनुमान का तरीका यह चुना गया कि चूँकि पिछले तीन-चार सवालों में से हर सवाल को हल करते समय छोटे अंक आए हैं इसलिए इस चौथे-पाँचवें सवाल के जवाब को भी दहाई से कम ही होना चाहिए।

पर यह सवाल पिछले सवालों से एक पायदान आगे था इसलिए यहाँ दीपा का तुक्का सही नहीं बैठ सका।अगर बच्ची ने किसी वजह से जवाब को बदल दिया है तो उसकी तरफ सार्थक तरीके से ध्यान खींचने के कई तरीके हो सकते हैं। उनमें से दो का आगे जिक्र किया गया है।

यह कहा जा सकता है कि वह सवाल को तस्वीरें बनाकर हल करने की कोशिश करे। वह ट्रकों की तस्वीरें बनाकर उनमें कट्टों को बाँटकर देखे कि एक ट्रक में कितने कट्टे भरे जा सकते हैं। उससे यह भी बातचीत की जा सकती है कि वह ट्रक में कट्टों को भरते या बाँटते समय एक बार में एक ट्रक में कितने कट्टे रखना चाहेगी। एक, दस, सौ, हज़ार या कोई और संख्या? फिर एक ट्रक में भरे जाने वाले कट्टों की संख्या को अपने जवाब से मिलाकर देखे। गणित में इस तरीके को ‘दृश्यीकरण’ कहा जाता है जिसमें समस्या को तस्वीर में बदल कर उसे हल करने की कोशिश की जाती है और उस हल को संख्याओं के ज़रिए दर्शाया जाता है।

या फिर, जवाब में हो रही गड़बड़ पकड़ने के लिए उससे यह भी पूछा जा सकता है कि बताओ 8 ट्रक, 15 ट्रकों का कौन-सा हिस्सा होगा? अगर उसके साथ आधा करने व करीब-करीब अनुमान लगवाने का काम किया गया हो तो वह बता सकती है कि 8 ट्रक, 15 ट्रक का लगभग आधा होता है। कुल 15 ट्रकों में 3000 कट्टे आते हैं तो उसके आधे ट्रकों में कितने कट्टे भरे जा सकते हैं? मुमकिन है कि बच्ची सवालों की इस कड़ी में निहित तर्क को भाँपकर या समझकर कट्टे की संख्या को आधा कर पाए। और आप अगर कोशिश करें तो वह अपने तर्क को अपने शब्दों में बोलकर बताने की कोशिश भी कर पाए। आपने गौर किया होगा कि यहाँ पर चार राशियों में समानुपात की अवधारणा को काम में लिया गया है और इस तरीके से दो कदमों में हल होने वाले जवाब का करीब-करीब हल एक ही कदम में मिल जाता है। इसके जरिए अन्तिम जवाब में होने वाली गड़बड़ की ओर भी ध्यान खींचा जा सकता है।

इसी तरह बातचीत करके उसका ध्यान इस तरफ भी खींचा जा सकता है कि अनुमान लगाने का इस्तेमाल सिर्फ हल को जाँचते वक्त ही किया जाए, ऐसा कतई जरूरी नहीं है। इसका इस्तेमाल सवाल को हल करने की शुरुआत में और बीच में भी किया जा सकता है।

गणित पर बातचीत

इस घटना में छुपे एक और पहलू पर कुछ नजर डाली जाए। अनीता का अनुमान एकदम सही होने के बावजूद उसने जो तरीका अपनाया उसकी वजह से दोतरफा बातचीत का मौका गँवा दिया। दीपा को यह बताने की बजाय कि उसने सही जवाब को काटकर गलत कर दिया है, यह पूछा जा सकता था कि उसने पहले वाले जवाब को काटकर क्यों बदला। आप पहचान सकते हैं कि दूसरे सवाल के पीछे कुछ इस तरह की मान्यताएँ हैं। पहली, दीपा ने जवाब को मनमाने तरीके से नहीं बल्कि किसी-न-किसी वजह से बदला है, आम हालातों में बच्चे कोई भी काम सोच-समझकर ही करते हैं। दूसरा, वह जवाब को बदलने की वजह को अपनी भाषा में व्यक्त करने के काबिल है।

इस सवाल के जवाब में बहुत मुमकिन है कि दीपा अपनी वजहों को उतनी साफ-सुथरी भाषा में न बता पाए जितनी कि अनीता ने बताई। तो अनीता के पास मौका है कि वह दीपा की भाषा को बेहतर करके उसके तर्क को उसी के सामने फिर से पेश कर सके या फिर दीपा के तर्क पर कोई सवाल उठाकर उसे अपने तर्कों को बेहतर बनाने का मौका मुहैया करवाया जा सकता है।
गणित पर बातचीत करना भी गणित की समझ बनाने के लिहाज से एक अच्छा तरीका है लेकिन हर बातचीत सार्थक व रोचक नहीं होती। जैसे जब भी गणित पर बात करते हैं तो गणनविधि के कदमों का कदम-दर-कदम ब्यौरा दिया जाता है। बार-बार याद दिलाया जाता है कि उसने फलाँ कदम को छोड़ दिया, इस कदम को इसी वक्त इसी जगह पर होना चाहिए क्योंकि गणित में ऐसा ही होता आया है।

इस तरह की बातचीत मशीनी ढंग से गतिविधि के कदमों को याद रखने व जरूरत पड़ने पर उसे उगल देने की प्रवृति को बढ़ावा देती है। इसमें बच्चों की भूमिका टेपरिकॉर्डर से ज्‍यादा नहीं रहती और इस तरह की बातचीत कई बच्चों के लिए तो सजा में भी तब्दील होजाती है।

आखिर में

एक अध्यापिका या अभिभावक के तौर पर सीखने वाले द्वारा की जा रही गलतियों को पहचानना और उसे सीखने वाले को बता देना सबसे आसान काम है, आखिर इससे हम बड़ों के ज्ञान की सत्ता जो कायम रहती है। सीखने वाले की गलती के कारणों का सटीक अनुमान लगा पाना इससे मुश्किल काम है। यह काम किए जा रहे काम के बारीकी से अवलोकन, सीखने वाले से बात करके और काम के साथ जुड़ी अवधारणाओं के उसके साथ सम्बन्धों पर विचार करके ही किया जा सकता है। हालाँकि इसके लिए अध्यापिका या अभिभावकों के पास लिपिंग मा के शब्दों में ‘बुनियादी गणित की गहन समझ’ होनी जरूरी है।

क्योंकि इसके बगैर किसी विषयवस्तु को सीखने में रोड़ा अटका रहे विषयगत कारणों की पहचान कर पाना बहुत ही मुश्किल-सा काम है और इन सबसे मुश्किल काम है गलती के कारणों को पहचानने में सीखने वाले की इस तरह मदद करना कि वह उन्हें खुद पहचाने; और इसी तरह गलती को दूर करने के रास्ते भी खुद तलाश पाए व इस किस्म की गलतियाँ करने से बच पाए।

इसके लिए किसी भी विषय की सिर्फ विषयवस्तु सम्बन्धी समझ से ही काम नहीं चलता बल्कि उस विषयवस्तु के सिखाने के तौर तरीकों की गहरी समझ व उसे इस्तेमाल करने का हुनर होना भी जरूरी है जिसे “विषयवस्तु की शिक्षाशास्त्रीय समझ कहते हैं” - ली शुल्मन। इन सबके साथ-साथ सीखने वाले की सीखने व सोचने समझने की काबिलियत पर भरोसा व सीखने वाले के साथ सौहार्दपूर्ण रिश्ता बेहद जरूरी है। आखिर खूब सारी गलतियाँ करने की आजादी के जरिए कोई भी इन्सान चाहे वह कम-उम्र हो या पकी उम्र का, अक्ल की ऊँचाइयों और गहराइयों को एक भरोसेमन्द माहौल में ही आसानी से हासिल कर सकता है।

रवि कान्त: शैक्षिक सलाहकार के तौर पर विभिन्न संस्थाओं, अध्यापकों के साथ काम। शिक्षण सामग्री, पाठ्यचर्या व पाठ्य पुस्तकों और प्रशिक्षण संदर्शिकाओं आदि का निर्माण, शैक्षिक शोध और अनुवाद। गणित शिक्षण में खास रुचि। जयपुर में निवास।

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