आपके ह्वाट्सऐप पर भी एक छोटी सी बच्ची का वीडियो आया होगा। इसमें एक माँ अपनी बच्ची को एक से पाँच तक की गिनती सिखा रही होती है। बच्ची दहशत से वन, टू, थ्री, फोर, फाइव पढ़ रही होती है। माँ का निर्देश आता है फिर से सुनाओ। बच्ची भूल जाती है। माँ चीखती कठोर आवाज़ में चीखती हैं वन कहाँ है?
गिनती सिखाइए, मगर ‘प्यार से पढ़ाइए’

जॉन डिवी का मानना था कि शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो स्कूल छोड़ने के बाद भी काम आए।
बच्ची इस सवाल से घबरा जाती है। रोने वाली आवाज़ में वह जल्दी से वन से फाइव तक की गिनती पूरी करती है और माँ से रोते हुए गुजारिश करती है कि प्यार से पढ़ाइए। मेरे कान में दर्द हो रहा है। इतना कहने के बाद वह रोने लगती है। मगर माँ अपनी बेटी की परेशानी को समझने की बजाय फिर से गिनती दोहराने के लिए कहती है।
इस वीडियो को अबतक 50 लाख से ज्यादा बार देखा जा चुका है। इस वीडियो को देखकर लाखों लोगों ने टिप्पणी की है। टाइम्स की रिपोर्टर नैना अरोरा ने इसके बारे में विस्तार से लिखा और वीडियो के पीछे की पूरी कहानी को लोगों के साथ साझा किया।
विराट कोहली, ‘यह वीडियो दिल की तकलीफ पहुंचाने वाला है’

इस वीडियो के बारे में ट्वीट करते हुए क्रिकेटर विराट कोहली ने इंस्टाग्राम पर लिखा, “बच्चे के दर्द और गुस्से को अनदेखा किया जा रहा है और बच्चे को सिखाने का अहंकार इतना बड़ा है संवेदनशीलत खिड़की से बाहर चली गयी है। यह धक्का पहुंचाने वाला और दुःखद है। बच्चे पीछे पड़ने से नहीं सीखते हैं। यह दिल को तकलीफ पहुंचाने वाला है।”
क्रिकेटर युवराज सिंह ने लिखा, “आप अपने बच्चों की परवरिश ऐसे ही करेंगे? पैरेंट्स का ऐसा व्यवहार असम्मानजनक और परेशान करने वाला है 😡। बच्चे का ‘सर्वश्रेष्ठ’ प्रदर्शन हो, इसके लिए बच्चे को प्यार और अपनापन चाहिए। यह स्वीकार्य नहीं है। 😤”
इस वीडियो के बारे में क्रिकेटर शिखर धवन लिखते हैं, “मैंने जितने वीडियो देखे हैं, उनमें से यह सबसे ज्यादा परेशान करने वाला है। माता-पिता के रूप में हमें बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारी मिली है। हमारी जिम्मेदारी है कि हम उन्हें मजबूत इंसान के रूप में विकसित करें ताकि जो वो बनना चाहते हैं, बन सकें। मुझे इस महिला द्वारा बच्ची को प्रताड़ित करना घृणित लगा। बच्ची को भावनात्मक, मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताणित किया जा रहा है ताकि वह वन टू फाइव तक की गिनती पढ़ सके!!! किसी इंसान का चरित्र तब बाहर आ जाता है, जब वे किसी से ज्यादा शक्तिशाली होते हैं और वे अपनी शक्ति का इस्तेमाल करते हैं।”

बच्चों की अच्छे माहौल में परवरिश समय की जरूरत है।
वे आगे लिखते हैं, “जीवन का एक पूरे चक्र की तरह है, मैं प्रार्थना करता हूँ कि यह प्यारी सी बच्ची बड़ी होकर मजबूत बने और यह और बूढ़ी महिला इस बच्ची के सामने ऐसे ही दया की भीख माँगती नज़र आये। उस समय इस महिला को क्या अपेक्षा करनी चाहिए, एक तमाचे की या फिर शक्तिहीन होने वाले अहसास की।”
“इस महिला को मासूम बच्ची के खिलाफ दुर्व्यवहार के लिए जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए। यह महिला कायर है और धरती के सबसे कमज़ोर इंसानों में से एक है, जो एक छोटी बच्ची के ऊपर धौंस दिखाने की कोशिश कर रही है। सीखना आनंददायी और ख़ुशी देने वाला होना चाहिए।। इसमें डर और नफरत के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। शिक्षा बहुत महत्वपूर्ण है, मगर एक बच्चे की ख़ुशी से ज्यादा जरूरी कतई नहीं है।”
‘बच्ची बहुत जिद्दी हो गई है’

तीन साल की बच्ची के खिलाफ किसी भी तरह की हिंसा को जायज नहीं ठहराया जा सकता है।
इस वीडियो के बारे में पूछे जाने पर गायक तोषी ने कहा, “विराट कोहली और शिखर धवन हमारे बारे में नहीं जानते। हमारे बच्चे के बारे में हमें पता है न कि हमारा बच्चा कैसा है! हया का नेचर है वैसा..अगले ही पल वो खेलने चली जाती है। अगर आप उसको छोड़ दो तो वो कहेगी कि मैं मजाक कर रही थी। उसके स्वभाव की वजह से छोड़ देंगे तो वो पढ़ाई भी नहीं कर पायेगी।
परिवार को अपेक्षा नहीं थी कि वीडियो वायरल हो जायेगा। तोषी कहते हैं, “वो वीडियो एक माँ का वीडियो है, अपने भाई और हसबैंड को दिखाने के लिए बनाया था, कि बच्ची बहुत जिद्दी हो गई है। बच्ची के लिए पढ़ाई बहुत जरूरी है। नर्सरी में उसे नंबर सीखने का होमवर्क मिलता है, वह कभी भी नहीं सीख पायेगी। अगर उसके ऊपर ध्यान नहीं दिया गया। वो जो रोना होता है, वो उसी क्षण के लिए था ताकि उसकी माँ उसे पढ़ाए ना और खेलने दे। छोटी बच्ची है. तीन साल की। यह कोई बड़ी बात नहीं है। हर घर में बच्चों की अलग जिद होती है, अलग-अलग तरीके के बच्चे होते हैं। ये बच्ची बहुत ज्यादा जिद्दी है, लेकिन हमारी लाडली है। जब इस वीडियो को देखकर बाकी लोगों को बुरा लग रहा है, वो तो माँ है।”
बच्चे जिद करेंगे तो उनको पढ़ाना-लिखाना छोड़ दें क्या?
तोषी कहते हैं कि ढेढ़ मिनट के वीडियो को देखकर किसी को कोई जजमेंट नहीं बनाना चाहिए। एक माँ की ममता है, “जजमेंट नहीं कर सकते हैं। जिसने उसको 9 महीने कोख में रखा है। अब अगर बच्चे जिद करेंगे तो उनको पढ़ाना-लिखाना छोड़ दें क्या? बच्चों को पालना आसान नहीं होता। मैं शादी-शुदा हूँ और मेरा एक बेटा है। मैं जानता हूँ कि किसी बच्चे को पालना कितना मुश्किल है। पैरेंट्स के पास दोहरी जिम्मेदारी है, उन्हें एक साथ घर और बच्चों दोनों को संभालना होता है।”
बच्चे को जिद्दी बताने वाली बात पर स्वाती बख़्शी कहती हैं, ” बच्चा ज़िद्दी हो ना हो लेकिन माता श्री का कर्कश स्वर और ऊंचा सुर उनके ज़िद्दी होने की जो कहानी कह रहा है उसे कोई कैसे जायज़ कह सकता है. अगर 3 साल का बच्चा ज़िद नहीं करेगा तो कौन करेगा.हद है अक्लमंदी की.”
बच्चों की क्षमता पर भरोसा करें और प्रयास को प्रोत्साहित करें
बच्ची के परिवार के लोगों के तर्क पर वृजेश सिंह कहते हैं, “सारे तर्क नासमझी का सबूत हैं और कुछ नहीं। अपने बच्चों के बारे में जो माँ इतनी जजमेंटल है। उसके बारे में लोग अपील कर रहे हैं कि छोटे से वीडियो को देखकर कोई जजमेंट न बनायें। 5 तक की गिनती सिखाने में धैर्य टूट जा रहा है।
“बच्चों के साथ कैसे पेश आएं, यह सीखने के लिए माँ को अन्य पेरेंट्स की मदद लेनी चाहिए। या किसी बाल परामर्श देने वाले मनोवैज्ञानिक से संपर्क करना चाहिए। खुद विशेषज्ञ बन जाने वाली स्थिति खतरनाक है।”

सही पैरेंटिंग का सवाल उठाने में कुछ भी ग़लत नहीं है।
इस वीडियो के बारे में पारूल अग्रवाललिखती हैं, “इस वीडियो पर हँसने वाले सैकड़ों लोग, जो बता रहे हैं कि उनके पैरेंट्स उनकी पिटाई के कैसे-कैसे ‘अनोखे’ तरीके आजमाते थे।, वे केवल यह दिखा रहे हैं कि आज भी वे कितने अज्ञान हैं। भारत में पैरेंटिंग के तौर-तरीकों की अपनी समस्याएं हैं। लेकिन हम संस्कृति का हवाला देकर इसका बचाव नहीं कर सकते हैं। इसे जायज नहीं ठहरा सकते हैं।”
वे आगे कहती हैं, “मैं अपने पैरेंट्स के प्रति शुक्रगुजार हूँ कि आज मैं जो कुछ भी हूँ उनकी वजह से हूँ…लेकिन क्या मैं और बेहतर स्थिति में नहीं होती, अगर कुछ-एक चीज़ें बदल गई होतीं? यही सवाल मैं पूछना चाहती हूँ और ऐसे सवाल पूछा अशोभनीय नहीं है!”
आखिर में कह सकते हैं कि इस वीडियो के बचाव में गढ़े जाने वाले तर्क बच्चों के बारे में हमारी नासमझी को उजागर करते हैं। बच्चों को एक नन्हे नागरिक के रूप में सम्मान देना, बड़ो की जिम्मेदारी है। हर बच्चे के सीखने का तरीका अलग होता है। अगर बच्चा एक तरीके से नहीं सीख रहा है तो अन्य तरीकों से सिखाने का प्रयास करना चाहिए। हर बच्चे को सिखाने का एक ही तरीका अपनाना भी एक तरीके से बच्चों के खिलाफ हिंसा ही है। हमारी संस्कृति में ऐसे मूल्यों को तरजीह देने की जरूरत है जो बच्चों के प्रति समानता और सम्मान के भाव को बढ़ावा देते हों।
प्रेषित : अध्यापक की सोच
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें