मंगलवार, 2 जून 2020

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मंगलवार, 19 मई 2020

भय या फिर शिक्षण

एक दिन स्टाफ रूम में बैठे हुए प्रथम विश्वयुद्ध के कारणों का विश्लेषण करने में तल्लीन था कि सहसा मेरे सामने वाले मेज पर कुछ गिरने की आवाज़ ने मुझे विचलित कर दिया। मैंने नज़र उठा के देखा तो मैडम ने अपनी किताब जोर से पटक दी थी। उनका चेहरा उतरा हुआ था। हाँ, गुस्सा जरूर था उनके अन्दर लेकिन उससे कहीं ज्यादा उनकी परेशानी उनके चेहरे से झलक रही थी। मैं उनके इस व्याकुल चेहरे को पढ़ने की कोशिश कर ही रहा था कि उन्होंने बड़े व्यथित मन से मुझसे एक प्रश्न पूछा, ‘ सर ! बच्चे मुझसे डरते क्यों नहीं हैं ?’ 
मैं सारा मामला समझ चुका था। मैडम को लगता था कि बच्चे उनकी कक्षा में शान्त नहीं रहते, शरारत करते हैं, हूटिंग करते हैं या फिर उनकी बातों को गम्भीरता से नहीं लेते तो इसमें कसूर उनके डील-डौल का है। दरअसल मैडम कद में औसत से थोड़ी छोटी, थोड़ा दुबली थीं। और फिर अभी अभी तो एम.एससी. कर के आई थीं। यानी वे स्‍वयं विद्यार्थी नजर आती थीं। 

मैंने मुस्कुराते हुए मैडम के प्रश्न को स्वीकार किया और उन्हें पीने को ठण्डा पानी दिया। वे  अब मुझ पर झल्ला पड़ीं,  ‘मुझे बच्चों को हैंडल करना मुश्किल हो रहा है और आप मुस्कुरा रहे हैं?’ 

दरअसल मैं इसलिए मुस्कुरा रहा था क्योंकि ये वही बच्चे थे जो मेरी क्लास में पढ़ने के लिए बैचैन रहते थे। मैंने मैडम से कहा कि मेरे पास एक समाधान है जो मैं आपको कल बताऊँगा। ऐसा कहकर मैंने उनकी व्यथा को थोड़ा कम करने का प्रयास किया।

घर जाकर मैंने इस बारे में मंथन किया। अगर वो बच्चे सच में इतने नटखट होते तो मुझे भी परेशान करते। तो आखिर समस्या कहाँ थी ?क्या शिक्षक बच्चों को डराने के लिए नियुक्त किया जाता है? या फिर पढ़ाने के लिए?

आज तक एक आम शिक्षक की मानसिकता यही बनी हुई है कि जितना बच्चे हमसे डरेंगे हम उतना उन पर प्रभुत्व स्थापित कर सकते हैं। परन्तु यह तो तानाशाही है। यही कारण है कि गणित, विज्ञान और अंग्रेजी जैसे आसान और रुचिकर विषयों से भी विद्यार्थी दूर भागते हैं। क्योंकि इन्‍हें पढ़ाने वाले कई शिक्षक खुद को विशेषाधिकार प्राप्त मानते हैं कि वे जितना कठोर होंगे उनकी पहचान उतनी अलग होगी। मैंने खुद अपने विद्यार्थी जीवन में देखा है कि जो गुरु जी बहुत ज्यादा मारते हैं, उनमें से अधिकांश इन तीन विषयों के अध्यापक ही होते थे। दूसरे विषयों को आसान मानकर गुरु जी बिना मारे ही पाठ्यक्रम पूरा कर दिया करते थे।

बच्चे के मन में अध्यापक के प्रति बैठा हुआ डर उसे गलतियाँ करने से रोकता है। लेकिन जब तक वे गलतियाँ नहीं करेंगे वे ठीक से सीख नहीं सकते। लेकिन इसका अर्थ यह बिल्कुल नहीं है कि यदि बच्चे आपसे बिल्कुल नहीं डरते तो वे सब कुछ सीख जाएँगे। यदि आपके शिक्षण में नीरसता है, आनन्द का अभाव है, कुछ भी नया नहीं है, सब कुछ बासी है तो बच्चे वही करेंगे जो मैडम की क्लास में किया था। या तो वे सोयेंगे या खोएँगे । यदि आप उनको यह भी नहीं करने देंगे, तो वे बाते करेंगे, हूटिंग करेंगे और आपके डाँटने पर हो सकता है अभद्र व्यव्हार भी करने लगें। यदि आप पाठ को रुचिकर बनाना जानते हैं तो आपकी उम्र क्या है, आपकी योग्यता क्या है, आप शारीरिक रूप से कितने बलवान हैं, कैसे दिखते हैं – कोई फर्क नहीं पड़ता। बच्चे आपकी हर बात सुनेंगे, समझेंगे और इतना ही नहीं, हमेशा याद भी रखेंगे।
बालमन बहुत चंचल होता है, हमेशा रुचिकर चीजों की ओर ही भागता है। एक बार मैंने एक विद्यार्थी की रफ कॉपी अचानक उठा ली तो वह सहम गया। मुझे यह समझते देर न लगी कि कॉपी में जरूर कुछ असामान्य है। देखा तो कॉपी के पीछे के पन्नों में बहुत ही खूबसूरती से कार्टून बनाए हुए थे। बारीकी इतनी, मानो प्रिंटेड हों।
मैंने उसे खड़े होने को कहा और शाबाशी दी। उसका चेहरा खिल उठा। शायद उसने सोचा था की मार पड़ेगी लेकिन हुआ एकदम विपरीत। अक्सर शिक्षक बच्चों को कॉपी के पीछे कुछ भी लिखे होने पर दण्ड देते हैं। परन्तु मेरा यह अवलोकन रहा है कि बच्चों की वास्तविक प्रतिभा इन्हीं रफ और पीछे के पन्नों पर देखने को मिलती है। यदि बच्चा कुछ सीख रहा है तो क्या फर्क पड़ता कि वह रफ कॉपी है या फेयर।


यदि बच्चों को इन पन्नों पर कुछ उकेरने के लिए डराया जाएगा तो वे अपनी कल्पना को मूर्त रुप कहाँ पर देंगे?

कहने का आशय यह है कि डर चाहे अध्यापक के प्रति हो, विषय के प्रति हो, गृहकार्य के प्रति हो या फिर परिणाम के प्रति, बच्चे को सीखने से रोकता है। अध्यापक का सौहार्दपूर्ण व्यवहार, रुचिकर पुस्तकें, विनोदपरक गृहकार्य बच्चे को पढ़ने, लिखने और सीखने के लिए पुनर्बलन प्रदान करता है। अतः स्वयं को जितना सरल और मधुर बना सकें बनाने का प्रयत्न करें, यह भी शिक्षा व्यवस्था में एक योगदान होगा।


पंकज यादव,अज़ीम प्रेमजी फाउण्‍डेशन, पौड़ी, उत्‍तराखण्‍ड  चित्र : प्रशांत सोनी

प्रेषित
Adhyapak ki Soch

कुशल प्रधानाचार्य बनोगे?

दोस्तों, जब कभी भी आपकी अपने प्रधानाचार्य के साथ नहीं पटती तो मन में कई तरह के विचार आते हैं। कभी-कभी यह भी विचार आता है कि यदि मैं प्रधानाचार्य होता तो मैं क्या करता?
चलो आज हम यही विश्लेषण करते हैं कि एक प्रधानाचार्य को कैसा होना चाहिए?
उसका व्यवहार कैसा हो?
और वह अपने पूरे स्टाफ का दिल कैसे जीते?
पहले हम आम तौर पर यह सोचें कि एक प्रधानाचार्य को किस तरह के कार्य स्कूल में होते हैं? एक प्रधानाचार्य को अपने स्टाफ मेंबर्स को कार्य सौंपना, उन पर नियंत्रण रखना और कई महत्वपूर्ण निर्णय लेना, इत्यादि ये जिम्मेदारियां होती हैं। यदि आप लोगों का प्रबंधन करते हैं, इसका मतलब है कि आप कुशल हैं और ऐसा करने में सक्षम है। एक प्रधानाचार्य होना बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी है, आपको लोगों का प्रबंधन करना है। यह बहुत जरूरी है कि जो लोग आपके साथ काम कर रहे हैं उन्हें आपके निर्णय से संतुष्ट होना चाहिए। और यह भी जरूरी है कि आपको टीम के सदस्यों को भी सुनना चाहिए और एक रिश्ता स्थापित करना चाहिए। हम अपने कर्मचारियों और सहकर्मियों के साथ अपने जीवन का लगभग एक तिहाई समय बिताते हैं, इसलिए ऐसे माहौल को बनाने का प्रयास किया जाना चाहिए जो हमारे टीम के सदस्यों को प्रोत्साहित करे। हेनरी ए. किसिंजर की एक बात मुझे याद आ रही है। उन्होंने कहा था –
एक लीडर का काम, उन लोगो को वहाँ तक पहुंचना है जहां वो नहीं पहुंच पा रहे हैं।
इसके अलावा स्कूल प्रधानाचार्य के पास कुछ गुण ऐसे भी होने चाहिए जो अन्य सहकर्मियों से अलग हो।
यह जरूरी नहीं है कि जो भी कार्य प्रधानाचार्य अपने सहकर्मियों को देता है, वह कार्य उसे पूरी तरह से आता हो। इसलिए प्रधानाचार्य को चाहिए कि वह ऐसे दो व्यक्तियों को इकट्ठा काम दे, जिनमें से एक व्यक्ति को काम आता है और दूसरे को बिल्कुल नहीं आता। जिस कर्मचारी को काम आता है उसका नैतिक कर्तव्य है कि वह ऐसे व्यक्ति को काम सिखाएं जिसे वो काम नहीं करना आता जो प्रधानाचार्य महोदय ने दिया है। जब दूसरा व्यक्ति काम सीख जाए तब उससे एक प्रमाण पत्र लिया जाए जिसमें लिखा हो कि अब वह व्यक्ति इस काम को करने में सक्षम है। जब अगली बार वही कार्य आएगा तब आप उस व्यक्ति को वह कार्य दे सकते हैं जिसने यह प्रमाण पत्र दिया था कि मैं इस कार्य को करने में अब पूरी तरह से सक्षम हूं। यदि ऐसा कार्य हो जो सहकर्मियों को बिल्कुल नहीं आता तो यह प्रधानाचर्य की ज़िम्मेदारी है कि आपको नए अपडेट के लिए कोचिंग देना होगा कि वे उस कार्य को कैसे करें।
एक प्रधानाचर्य को अपनी टीम के सदस्य के बारे में परवाह करना चाहिए। आपकी टीम के सदस्यों को आपके काम करने और टीम के प्रबंधन के तरीके से संतुष्ट होना चाहिए। यदि आपकी टीम का कोई सदस्य किसी संस्थागत कार्य को अद्भुत या अनोखे तरीके से करे, जिसके बारे में आपने कभी नहीं सोचा हो ; तब आपको चाहिए कि स्टाफ मीटिंग के दौरान उस व्यक्ति की छुपी हुई प्रतिभा को आप सबके समक्ष रखें। उस व्यक्ति को प्रेरित करें कि वह बाकी टीम के सदस्यों को भी इस तरह से कोचिंग दें। ताकि जैसा काम वह कर रहा है वैसा काम पूरी टीम करें। इससे आपकी संस्था प्रगति करेगी। इससे टीम के वो सदस्य अच्छा महसूस करते हैं। और अपने कार्य को आउट भी अच्छे तरीके से करने की कोशिश करेंगे।
आपकी टीम आप पर विश्वास करती है, इसलिए यह आपकी ज़िम्मेदारी है कि आपको अपनी टीम को सभी चीजों और आपके कार्यालय में होने वाले बदलावों के बारे में सूचित करें। स्टाफ के सभी सदस्यों से स्टाफ मीटिंग में अपने विचार शेयर करें, और चापलूसों से दूरी बना कर रखें। क्योंकि हर संस्था में दो तरह के व्यक्ति होते हैं एक वो जो चुपचाप अपना कार्य करते रहते हैं और जो भी कार्य आप उन्हें देते हो वो कार्य निश्चित समय अवधि के भीतर पूरा कर देते हैं लेकिन कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं जो संस्था में यहां की बात वहां और वहां की बात यहां करते हैं। एक प्रधानाचार्य को चाहिए कि इस तरह के व्यक्तियों से दूरी बनाकर रखें। यदि आप सभी व्यक्तियों को एक दृष्टि से देखें तो सभी सहकर्मी आपकी इज्जत करेंगे।
यदि आप एक बॉस हैं, तो आपको लगातार अपने कौशल विकसित करने होंगे। जो भी कार्य आप अपने सहकर्मियों को देते हैं उसमें आप भी कुशल होने चाहिए ताकि यदि सहकर्मी आपसे सहायता मांगे तो आप टीम लीडर कि भांति उन्हें गाइड करें।
यदि आपकी टीम के सदस्य को कार्य पूरा करने में किसी भी तरह की समस्या का सामना करना पड़ता है तो आपके पास उनकी सहायता करने के लिए समाधान होना चाहिए। इसलिए आपके पास असाइन करने वाले काम के बारे में पूरा ज्ञान होना चाहिए। इससे आपकी छवि आपके सहकर्मियों के सामने पॉजिटिव रहेगी। आपको हमेशा अपनी और आपकी टीम की मदद करने के लिए हमेशा नई तकनीकों को सीखना चाहिए।
अपने कर्मक्षेत्र में परिवार का मुख्य बनना एक कठिन काम है। टीम में विभिन्न लोगों को संभालना मुश्किल भी होता है क्योंकि प्रत्येक सहकर्मी के पास अलग-अलग सोच और काम का तरीका होता है। इसलिए प्रधानाचर्य को अपनी टीम के सदस्यों को संभालने के लिए एक योजना बनानी चाहिए ताकि टीम के सदस्य आपके काम के तरीके से संतुष्ट हों और पूर्ण रुचि के साथ काम करें। यदि आप टीम लीडर हैं तो आपको अपने सभी टीम के सदस्यों की देखभाल भी करनी होगी।
स्कूल में प्रधानाचर्य होने का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा यह है कि आपको अपनी टीम में विश्वास का बंधन बनाना होगा ताकि प्रत्येक कर्मचारी दूसरों पर और आपके ऊपर भी विश्वास कर सके। यदि आप अपने स्टाफ को बहुत अच्छी तरह से जानते हो तो किसी भी सहकर्मी की व्यक्तिगत जानकारी साझा न करें। टीम के सदस्यों की बुराई पीठ पीछे ना करें। जो भी कहना है वह उस व्यक्ति के सामने कहें। यदि आप जानते हैं कि आपकी टीम के सदस्य को किसी भी तरह की समस्या का सामना करना पड़ रहा है, तो उनसे एक परिवार के मुख्य की तरह उन्हें पूछें कि क्या वे ठीक हैं या उन्हें किसी मदद की ज़रूरत तो नहीं। ऐसा करने से एक दूसरे के प्रति विश्वास का बंधन और मजबूत होगा।
एक लोकप्रिय नीति के अनुसार एक व्यक्ति जब खुद को प्रेरित महसूस करता है तो वह हमेशा अपेक्षा से अधिक काम करेगा। परिवार का मुखिया होने के नाते आपको अपने सभी परिवार के सदस्यों को हमेशा अच्छे कार्य करने के लिए प्रेरित करना होगा। किसी व्यक्ति को प्रेरित करना, यह एक अच्छी आदत है जो एक प्रधानाचार्य में हमेशा ही होनी चाहिए। टीम लीडर होने के नाते हमेशा अपने ज्ञान और अनुभव को टीम के साथ साझा करें, इससे आपकी स्कूल टीम सफलता के नए आयाम स्थापित करेगी।
आपको अपनी स्टाफ मेंबर्स के सदस्यों के काम करने का तरीका बदलने की कोशिश कभी नहीं करनी चाहिए। इससे उन पर आपके बारे में बुरा असर पड़ेगा। समय की मांग के अनुसार, नए तरह के काम को खोजने का प्रयास करें जिससे सभी लोग सहमत हों। और कुछ नए सुझाव देने के लिए टीम के सदस्यों को स्वतंत्रता दें, सकारात्मक सोच वाले व्यक्तियों को आगे आने दें । नकारात्मक सोच वाले व्यक्तियों की अलग से मीटिंग करवाएं, तथा उनकी सोच सकारात्मक बनाने की कोशिश करें। इससे आपको सफलता प्राप्त करने में मदद मिलेगी। यह संभव नहीं है कि आप हमेशा सही हों, हर किसी को अपने विचार व्यक्त करने का मौका दें।
जब आप प्रधानाचार्य नहीं थे तो आपको मालूम है कि हर कोई एक ही काम और दिनचर्या के साथ बोर हो जाता है। तो हमेशा अपनी टीम के बीच अलग-अलग और कुछ नया करने की कोशिश करें। उन्हें चैलेंजिंग असाइनमेंट दें। यदि टीम का कोई सदस्य ओवरलोडेड है तो उसका लोड कम करने की कोशिश करें। या ऐसी योजना बनाएं जिससे काम के दबाव को कम करने और दैनिक दिनचर्या में बदलाव करने में मदद हो। ऐसी स्थितियां आपको और आपके टीम के सदस्यों को काम की दिशा में ऊर्जावान बनाए रखेगी।
ये मेरे निजी विचार हैं जो आपको सर्वश्रेष्ठ बॉस बनने में मदद कर सकते हैं। अपनी ईगो को कर्मक्षेत्र में न आने दें। खुद को दूसरों की नजरों से देखने की आदत विकसित करें। सोचें कि आप दूसरों के साथ जैसा व्यवहार करते हैं क्या अपने लिए भी पसंद करेंगे?
मेरे जीवन में बहुत से प्रधानाचार्य आए , और में उनसे प्रभावित भी हुआ। इन बारे में, मैं अपने अगले आर्टिकल में लिखूंगा।
नमस्कार🙏🏻
मनीष कपूर
प्रवक्ता अर्थशास्त्र