अपनी बात की शुरुआत मैं कुछ बुनियादी बातों के साथ करना चाहूँगी। पहला, राजकीय कन्या उच्च प्राथमिक विद्यालय चिणाखोली में मेरे अलावा दो अन्य शिक्षक हैं। गणित और विज्ञान शिक्षक के रूप में मेरी तैनाती की गई है, परन्तु इसके अतिरिक्त अन्य विषय जैसे भाषा आदि भी मुझे देखने पड़ते हैं। एक शिक्षक के रूप में इन विषयों की तैयारी एवं अध्यापन एक कठिन प्रक्रिया के रूप में दिखाई देता है। समेकित कक्षा शिक्षण इसके लिए उपयोगी हो सकता है। दूसरा, राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 यह सुझाव देती है कि शिक्षक अध्यापन कार्य करते समय बच्चे के परिवेश का खूब इस्तेमाल करे एवं पठन-पाठन प्रक्रिया को और जीवन्त बनाएँ, जिससे बच्चे इसमें रुचि ले सकें। तीसरा, ज्ञान का मौजूदा स्वरूप स्कूली विषयों के सीमा में बँधा हुआ नहीं बल्कि समग्र रूप से मौजूद है।

उक्त तीन बातों को ध्यान में रखकर इस वर्ष मेरे द्वारा बच्चों के साथ एक प्रोजेक्ट ‘बीज बम’ किया गया। हालाँकि यह प्रोजेक्ट ‘पर्यावरणविद’ इस्तेमाल कर रहे हैं, परन्तु एक शिक्षक के रूप में यह हम पर निर्भर करता है कि हम इसे कैसे अपनी कक्षा के बच्चों तक ले जाते हैं एवं उनके ज्ञान क्षेत्र में विस्तार देने में इसका उपयोग करते हैं। यहाँ बच्चों के साथ किए गए कार्य के बारे में बताने का एक प्रयास है।
शुरुआत में कक्षा 6 से 8 के सभी बच्चों के साथ प्रोजेक्ट के बारे में बातचीत की गई। हमारे पर्यावरण में होने वाले बदलावों एवं उनसे हमारे ऊपर पड़ने वाले प्रभावों की बात की गई। इस बातचीत में एक मुख्य बिन्दु यह भी शामिल था कि धीरे-धीरे जंगलों में जानवरों जैसे बन्दरों के लिए खाना खत्म होता जा रहा है। वे अब हमारे गाँव/खेतों तक पहुँच रहे हैं एवं उन्हें नुकसान पहुँचा रहे हैं। बच्चों के साथ जैविक बीजों पर भी बातचीत की गई। पुराने जमाने में पहाड़ों पर ग्रामीण अपने घरेलू बीजों (घरया बीज) को संरक्षित करके रखते थे एवं अगले साल की फसल बोने हेतु उन बीजों का इस्तेमाल करते थे। यह प्रक्रिया साल दर साल आगे बढ़ा करती थी। परन्तु कृषि प्रौद्योगिकी में हुए बदलावों के चलते अब गाँवों में भी हाइब्रिड बीजों का चलन बढ़ गया है जिसके चलते जैविक बीज लगभग खत्म होते जा रहे हैं। चूँकि यह सब बच्चों के परिवेश में है तो उनके अनुभव के चलते इस प्रकार की बातचीत आसान ही रही। अब बच्चों से इस प्रोजेक्ट की अगली बातचीत साझा की गई जिसमें इसके उद्देश्यों को साझा किया गया जो कि निम्न हैं :
- जैविक बीजों का संरक्षण
- पौधारोपण
- जंगलों में ऐसे बीजों का पौधारोपण जिनसे जंगली जानवरों को खाना मिल सके और वे गाँव की फसलों को भी खराब न कर सकें।
इसके साथ ही एक शिक्षक के रूप में अपने विद्यार्थियों के लिए कुछ शैक्षिक उद्देश्य हमेशा आपके दिमाग में रहने चाहिए, अत: इस प्रोजेक्ट के दौरान मेरे शैक्षिक उद्देश्य भी यहीं साझा करना उचित होगा जोकि निम्न हैं:
- इस प्रोजेक्ट के माध्यम से बच्चों को साथ लेकर (अ) विज्ञान के प्रति उत्सुकता (ब) पर्यावरण संरक्षण को लेकर बच्चों को अवगत करवाना, विषय पर कार्य करना।
- विज्ञान में पौधे का अंकुरण, पौधे के भाग, पौधे का प्ररोह तंत्र, सरंचना, क्लोरोफ़िल, एक बीज पत्री, द्वीबीज पत्री पर बच्चों से बातचीत एवं उन्हें स्वयं से अपने ज्ञान को सृजित करने के अवसर देना।
- इस प्रोजेक्ट के माध्यम से विद्यार्थी ग्राफ (गणित) की अवधारणा को भी समझ पाएँ।
- वैज्ञानिक दृष्टिकोण एवं भाषाई कौशलों का विकास।
बच्चों के साथ इस प्रोजेक्ट पर बातचीत के बाद कुछ कार्य बच्चों को दिए गए जैसे घरेलू बीज, उपजाऊ मिट्टी, गाय का गोबर एवं मूत्र एकत्रित करना आदि। अगले दिन प्रोजेक्ट कार्य के लिए आवश्यक सामग्रियों को लेकर अभिभावकों से बातचीत की गई। सभी बच्चों ने अभिभावकों के सहयोग से सामग्रियाँ एकत्रित कीं। बच्चों द्वारा एकत्रित किए गए बीजों में लौकी, भिन्डी, मकई, मीठा करेला, खीरा, गोदड़ी, कद्दू, छेमी, बारामासी छेमी के बीज शामिल थे।
काली मिट्टी एवं गोबर (जैविक खाद) बराबर मात्रा में मिलाकर पानी से आटे की तरह गूँथा। फ़िर लड्डू बराबर के गोले बनाकर एक ही किस्म के दो-दो बीज एक-एक गोले में भरे गए। ये गोले ही बीजबम थे। अगले दिन बीजबम बनाने का कुछ कार्य जो छूट गया था पूरा किया गया। सभी ने मिलकर लगभग 317 बीज बम बना लिए थे जिन्हें सम्भाल कर रख दिया गया।
कुछ दिन तक बीज बमों का अवलोकन किया गया। इस दौरान किए गए अवलोकन इस तरह हैं :
- बीजबम में कोई परिवर्तन नहीं। जिस बीजबम की मिट्टी सूख गई है उसमें हल्का सा पानी का छिड़काव किया।
- कुछ मिट्टी के बीजबम में दरार पड़ गई है।
बच्चों से पूछा गया कि कौन से बीज बमों में दरारें ज्यादा दिखाई दे रही हैं तो बच्चों ने बताया कि जिन बीजबमों में राजमा, छेमी थीं उनमें। बच्चों ने इसका कारण पूछा। मुझे इसके दो कारण समझ आए :
- शायद मिट्टी को ढंग से नहीं गूँथा
- शायद बीज फूलकर बड़ा अपने आकार से बड़ा हो गया हो।

इसके बाद बच्चों के साथ मिलकर इन बीजबमों को जंगल में डाल दिया गया। प्रत्येक स्थान पर दो-दो बीज बम रखे गए।
कुछ बीजबमों को स्कूल में रख दिया गया था। कुछ दिन बाद इनका अवलोकन किया गया। प्रत्येक बच्चे को अपने अवलोकन अपनी नोटबुक में दर्ज करने थे। अवलोकन कुछ इस तरह थे :
- कुछ बीज बम जिनमें दरार पड़ी थी, उनसे कुछ सफ़ेद सी आकृति दिखाई दी। इस पर बच्चों से बातचीत हुई। पर किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँच सके। लगा कि अभी और अवलोकन करने होंगे। शायद कोई सरंचना हो।
- कुछ बीज बमों में छोटी सी सफ़ेद पत्ती जैसी सरंचना दिखाई दे रही है। इस अवलोकन पर बच्चों से बातचीत हुई कि यह पौधे की पत्ती निकल रही है। कुछ बच्चों ने यह भी बताया कि अब बीज नहीं दिख रहा है। इस दौरान बच्चों से दिखाई दे रहे पौधे के भागों पर चर्चा हुई कि यह तना है और पत्तियाँ हैं। इसके साथ ही इन पत्तियों में यह जो हरा रंग है उसका कारण इन पत्तियों में क्लोरोफिल का पाया जाना होता है।
- छेमी के बीजों के बाह्यदल फटने पर उन पर तना निकल आया। कुछ अवलोकन में बच्चों ने द्वी बीज पत्री पौधे भी दिखाई दिए। इन्हें लेकर बच्चों के सवाल कुछ इस प्रकार से थे कि क्या यह सरंचना भी पत्तियाँ हैं? मैंने बच्चों से द्वीबीज पत्री पौधों पर बातचीत की। मैंने उन्हें बताया कि नहीं यह पत्तियाँ नहीं हैं। जिन बीजों में अंकुरण के समय दो भाग हो जाते हैं उन्हें द्वीबीज पत्री पौधे कहते हैं।
अब बच्चों को अवलोकन के साथ-साथ पौधों की लम्बाई नापने और उसका रिकॉर्ड रखने को भी कहा गया। शुरुआत में कुछ बच्चों को लम्बाई नापने में दिक्कतें हो रही थी जैसे कहाँ से नापना है आदि। इस पर हमने लम्बाई को जहाँ मिट्टी है वहीं से नापना शुरू किया। अभी तक अवलोकन में द्वी बीज पत्री पौधे दिखे, जिनकी अलग-अलग लम्बाई है। इसी पर ग्राफ का कार्य शुरू किया गया। बच्चों को ग्राफ कापियाँ देकर उन्हें ग्राफ के बारे में समझाया गया एवं एक पैमाना लेकर अलग-अलग पौधों की वृद्धि का ग्राफ बनवाया गया। इस दौरान मक्के के बीज का अंकुरण भी बच्चों द्वारा अवलोकित किया गया। उनसे छेमी एवं मक्के के अवलोकन में दिख रहे अन्तर के बारे में पूछा गया। बच्चों की प्रतिक्रिया थी कि इसमें छेमी के बीज जैसी संरचना नहीं दिखाई दे रही। बच्चों के साथ एक बीज पत्री पौधों पर बातचीत की गई कि ये पौधे एक बीज पत्री पौधे क्यों कहलाते हैं। अपनी पूरी बातचीत के दौरान बच्चों को पौधे की संरचनाओं के बारे में बताने के साथ-साथ उन्हें अंग्रेजी में क्या कहा जाता है यह भी बताया।
इस पूरे शिक्षण के दौरान बच्चों को लेकर मेरे अवलोकन निम्न हैं:
- बच्चों ने अवलोकनों को दर्ज किया था। अभी कुछ बच्चों में अपने अवलोकन स्प्ष्ट रूप से लिखने का कौशल विकसित हो रहा है। जो उनके भाषाई कौशलों को विकसित करने का एक माध्यम बन रहा है।
- बच्चे पौधे के अंकुरण की प्रक्रिया एवं पौधे के विभिन्न भागों-संरचनाओं से परिचित हुए एवं इस कार्य को लेकर बच्चों में काफी उत्साह दिखा।
- सभी बच्चों में एक बीज पत्री एवं द्वी बीज पत्री पौधों की अवधारणा का विकास हुआ है। बच्चों ने इसमें अपने अवलोकन भी बताए जो कि निम्न हैं :
- द्वी बीज पत्री जल्दी से अंकुरित हो जाएँगे।
- द्वी बीज पत्री ज्यादातर दालें हैं।
- द्वी बीज पत्री पौधों के छिलके पतले होंगे एवं एक बीज पत्री के छिलके मोटे होंगे।
- उपरोक्त आधार पर अब बच्चे बीजों के नाम सुनकर उन्हें एक बीज पत्री एवं द्वी बीज पत्री पौधों में वर्गीकृत कर पा रहे हैं।
- इस दौरान ग्राफ बनाने के बाद बच्चों द्वारा कक्षा के बच्चों की ऊँचाई एवं उपस्थिति को लेकर भी ग्राफ बनाए गए।
सावित्री उनियाल, राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय, चिणाखोली, उत्तरकाशी
प्रेषित: अध्यापक की सोच
प्रेषित: अध्यापक की सोच
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जवाब देंहटाएं(And really, it has NOTHING to do with genetics or some secret diet and absolutely EVERYTHING to do with "how" they are eating.)
BTW, I said "HOW", not "WHAT"...
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