By Adhyapak Ki Soch - अगस्त 24, 2018
15 वीं शताब्दी के मध्य से लेकर 16 वीं शताब्दी के मध्य तक (लगभग 100 वर्षों में) परिस्थितियों के संयोजन ने यूरोपीयन व्यापारियों को नए मार्ग तलाशने के लिए प्रेरित किया। यह नया मार्ग स्थल मार्ग न होकर समुद्री रास्ता था। इसके प्रमुख कारण कुछ इस प्रकार से थे। पहला-14 वीं शताब्दी के अन्त में मंगोलों का विशाल साम्राज्य टूटना, जिस कारण पश्चिमी व्यापारियों को भूमि मार्गों के साथ सुरक्षित आचरण का आश्वासन नहीं दिया जा सकता था। दूसरा- तुर्क और वेनेशियनों ने भूमध्यसागरीय और पूर्व से प्राचीन समुद्री मार्गों तक वाणिज्यिक रूप से अपना नियन्त्रण कर लिया था। तीसरा- यूरोप के अटलांटिक किनारे पर नए राष्ट्र अब विदेशी व्यापार और साहस की तलाश करने के लिए तैयार थे।
यूरोप के व्यापारी एक ऐसा प्रभावी समुद्री मार्ग चाहते थे जो सीधा एशिया तक उनको बिना किसी बाधा के ले जाए। इसी क्रम में नए समुद्री मार्गों की खोजों का सिलसिला शुरू हुआ। वे जानते थे कि अगर उन्हें ऐसे समुद्री मार्गों की खोज करनी है तो इसके लिए जहाज रानी के मौसम की ज्यादा से ज्यादा जानकारी जुटानी होगी। 14 वीं शताब्दी के कुछ दस्तावेज इस बात की पैरवी करते हैं कि यूरोपियन व्यापारियों को उस समय खगोल विज्ञान एवं गणित की कुछ हद तक जानकारी थी पर वह बहुत ही सीमित थी। वे उतना ही जानते थे जितना प्राचीन रोम द्वारा उनको विरासत के तौर पर मिली थी। खगोल विज्ञान एवं गणित की जानकारी समुद्री यात्रा करने के लिए दो मुख्य विधाएँ मानी जाती हैं। इन बातों के मद्देनजर यूरोपियन को समुद्री यात्रा एवं उससे जुड़े रहस्यों को जानने में खासा दिक्कत का सामना करना पड़ा। उस समय प्रिंस हेनरी (1394-1460) एक ऐसा चेहरा था जिसने समुद्री यात्रा को एक मुकाम तक पहुँचाने में अहम भूमिका अदा की।
पुर्तगाल के राजकुमार हेनरी, समुद्री यात्रा को लेकर बहुत उत्सुक थे। हेनरी ने समुद्री यात्रा से जुड़े नेविगेशन एड्स एवं नए और तकनीकी पूर्ण जहाजों के डिजाइन को बढ़ावा दिया। हेनरी ने इसके साथ एक ऐसी तकनीक पर भी काम करना शुरू किया जिसके जरिये जहाज की स्थिति को समन्दर में भी पता कर सकें। एशिया के लिए नया समुद्री रास्ता खोजने का सफर अब कुछ आसान होता हुआ दिख रहा था। समुद्री यात्रा को चरम पर ले जाने के लिए एक नया जहाज बनाया गया जिसका नाम Caravel था। इस जहाज की यह खास बात थी कि यह समुद्री यात्रा के दौरान अपने साथ लम्बे समय तक भोजन और अन्य जरूरी चीजें रख सकता था। हेनरी अज्ञात विश्व को जानना चाहता था। वह चाहता था कि ज्यादा से ज्यादा सूचनाएँ समुद्री यात्रा करके एकत्रित की जाएँ ताकि उसको वह अपने स्कूल में विश्लेषण कर पाए और साथ ही अपने देश की शक्ति और शौर्य को बढ़ा सके।
हेनरी ने जो काम शुरू किया वह आगे अपने चरम पर पहुँचा। उस समय कुछ अन्य खोजें भी हुई जो समुद्री यात्रा के मायने से बहुत ही महत्वपूर्ण थी। इन खोजों में Compass, Astrolabe एवं Triangular मुख्य थे। इनका उपयोग कुछ इस प्रकार था-
Compas:- इससे वह जान सकते थे कि वह किस दिशा में जा रहे हैं
Astrolabe:- इससे वह अपना अक्षांश निर्धारित कर सकते थे।
Triangular:- हवा के विरुद्ध चल सकते थे।
यहाँ तक एक बात तो स्पष्ट दिख रही है कि समुद्री यात्रा ने खोजबीन के नए आयाम तो खोले ही, साथ ही विकास एवं प्रगति के पथ की पैरवी भी की। समुद्री यात्रा से अलग-अलग देशों की खोज का रास्ता दिखने के साथ–साथ वहाँ के लोगों के रहन-सहन, खान-पान, जलवायु एवं जलवायु निर्भरता के बारे में जानकारी प्राप्त हुई। यात्रा ने व्यापार के रास्तों को भी समय के साथ सुदृढ़ तो किया ही, इंसानी वजूद एवं उसके ज्ञान की सीमा को भी एक रेखा दी। इतिहास के आइने से महत्वपूर्ण कुछ समुद्री यात्राओं का विवरण इस प्रकार है।
मार्को पोलो की यात्रा (1254-1295)
मार्को पोलो का नाम विश्व इतिहास के मशहूर जहाजी और व्यापारियों में आता है। वह 1271 से 1324 तक उन्होंने एशिया के कई स्थानों का भ्रमण किया। मार्को पोलो चीन पहुँचने वाला प्रथम यात्री तो नहीं था लेकिन चीन की पूरी जानकारी देने वाला प्रथम यात्री जरूर था। अमेरिका की समुद्री यात्रा से खोज करने वाला कोलम्बस भी उसकी ही किताब से प्रेरित हुआ था। 17 साल की उम्र में मार्को पोलो अपने पिता और चाचा के साथ चीन की यात्रा पर रवाना हुए थे। मार्को पोलो को चीन पहुँचने में तीन साल का वक्त लगा था। रास्ते में उसने दिलचस्प शहरों और स्थानों को देखा था जिसमें येरुशलम, हिन्दुकुश के पर्वत, गोबी रेगिस्तान शामिल थे। अपनी इस यात्रा में मार्को पोलो की मुलाकात भिन्न-भिन्न प्रकार के लोगों से हुई थी। मार्को पोलो कई साल तक चीन में रहा और चीनी भाषा भी सीख गया। उसने समूचे चीन की यात्रा कुबलई खान के दूत और गुप्तचर के रूप में की थी। उसने दक्षिण की दिशा में उन स्थानों की भी यात्रा की, जहाँ आज म्यांमार और वियतनाम स्थित हैं। इन यात्राओं के जरिये उसका साक्षात्कार विविध संस्कृतियों से भी हुआ। उसने ऐसे कई स्थानों का भी भ्रमण किया जहाँ पहले कोई यूरोपीय यात्री नहीं आया था। मार्को पोलो चीन की समृधि देखकर चौंक गया था। उसे यूरोप की तुलना में एक नए संसार से परिचित होने का मौका मिला था। बीस सालों तक यात्रा करने के बाद मार्को पोलो ने अपने पिता और चाचा के साथ स्वदेश लौटने का फैसला किया। वो सन् 1271 में घर से निकले थे और सन् 1295 में वापस लौट आए थे। दुर्भाग्यवश उनके स्वदेश लौटने के कुछ दिनों के बाद वेनिस का युद्ध जेनेवा नगर से शुरू हुआ और मार्को पोलो को गिरफ्तार कर लिया गया। कारावास में मार्को पोलो ने इस्टीचेलो नामक एक लेखक से कहकर अपनी यात्रा का विवरण लिखवाया। उनकी यात्रा ‘The Travels of Marco Polo’ नामक पुस्तक से बहुत ज्यादा लोकप्रिय हुई। मार्को पोलो की किताब ने चीन के उस दौर के इतिहास को जीवन्त किया था।
वास्को द गामा की यात्रा (1488-1497)
वास्को द गामा 8 जुलाई 1497 में भारत के अभियान पर निकला। गामा ने अफ्रीका के पश्चिम किनारे के मोरोघड़ो से आगे जाकर कॅनरी बेंट पार किया और फिर आगे दक्षिण-पश्चिम का रास्ता पकड़ा। लगभग तीन महीनों के सफर के बाद 4 नवंबर 1497 को वास्को द गामा ने दक्षिण अफ्रीका का किनारा दिखा। इसके 4 दिन बाद वह सेट हेलेना समुद्र्धुनी के पास के किनारे पर उतरा। यहाँ उन्हें दक्षिण अफ्रीका के आदिवासी देखने को मिले। आगे उन्हें केप ऑफ गुड़ होप के पास तूफान का सामना करना पड़ा। उस वजह से केप ऑफ गुड़ होप के किनारे पर न उतरकर वह 25 नवम्बर को 300 मील पूर्व मोसेल के किनारे पर उतरा। वास्को द गामा पहले 1488 में बार्तोलोम्या डायस केप पाद्रोन तक आया था। उसके आगे अफ्रीका के पूर्व किनारों से किए हुए सफर में उसे नाताल प्रान्त, ‘क्वेलिमाने’, ‘मोझांबिक’, मोबासा के बन्दरगाह मिले। 14 अप्रैल 1498 को वो ‘मालिंदी’ इस मोंबसा के उत्तर के बन्दरगाह पर पहुँचे। यहाँ वास्को द गामा की मुस्लिम एवं हिन्दू व्यापारियों से मुलाकात हुई। वास्को द गामा ने मालिंदी के सुलतान से भारत जाने के लिये एक अनुभवी इन्सान की माँग की। उसने वो माँग पूरी की(इब्न मजीद)। जल्द ही, मतलब 24 अप्रैल को वास्को द गामा ने मालिंदी बन्दरगाह छोड़ा और भारत की तरफ निकल पड़ा।
नाविकों को 18 मई के दिन दक्षिण भारत का किनारा दिखा। वो कालीकट बन्दरगाह था। वहाँ के दो मुस्लिम व्यापारियों ने उन्हें पूरा शहर दिखाया और वहाँ के मसालों के पदार्थ, खड़ो और गहनों का वर्णन किया। तब जाकर वास्को-द-गामा को यकीन हुआ कि वह भारत में पहुँच चुका है। 29 अगस्त को वास्को-द-गामा पुर्तगाल की तरफ शान्ति से निकला। जिस भारत को वो ढूँढ रहा था वह भारत और वहाँ जाने वाला जलमार्ग वास्को-द-गामा को मिला।
कोलम्बस की जल यात्रा : (1451-1502)
इस दौर में धरती के समतल होने की धारणा सर्वत्र व्याप्त थी इसलिए सभी नाविकों का मानना था कि एशिया में पूर्व से ही पहुँचा जा सकता है। इस विचार के विरुद्ध इटली के एक नाविक का मानना था कि एशिया में पूर्व के अलावा पश्चिम से भी पहुँचा जा सकता है। यह विचार सभी को बहुत ही बेहूदा लगा और सभी ने उसका तिरस्कार किया। वह नाविक और कोई नहीं बल्कि कोलम्बस था। कोलम्बस ने अपनी गणना से यह बताया कि 4000 मील यात्रा करके पश्चिम तट तक पहुँचा जा सकता है। उसने किंग Ferdinand और queen Isabela (स्पेन) को पश्चिम से एशिया की अपनी यात्रा के लिए राजी कर लिया था। 1492 में वह तीन जहाज लेकर पूरी तैयारी के साथ निकला जो इतिहास की एक प्रसिद्ध समुद्री यात्रा निकली। बहुत-सी मुश्किलों को झेलते हुए आखिकार वह 12 अक्टूबर 1492 को बहामा महाद्वीप में पहुँचा। कोलम्बस को लगा वह एशिया के किसी तट पर पहुँचा। बहामा द्वीप से उन्होंने छोटे-छोटे समूह बनाकर नौकाओं द्वारा उस द्वीप पर खोज करना शुरू किया। खोज के काफी समय बाद कोलम्बस अपने साथ वहाँ के जानवर, अक्षीय पौधे और देशी लोग साथ लाया। वास्तव में जिस टापू पर कोलम्बस था वह अमेरिका का कोई टापू था जिसके बारे में कोलम्बस को अपनी मृत्यु तक भी पता न चल पाया था। 1506 में उसकी मृत्यु हुई पर कोलम्बस यही समझता था कि उसने एशिया तक के रास्ते का पता लगाया है।
Ameriro Vespucchi, एक italian सौदागर ने 1499 में अपनी यात्रा शुरू की। उसने अपनी यात्रा से कोलम्बस की बात को खारिज किया और बताया कि कोलम्बस जिसे एशिया का एक टापू समझ रहा था वह एशिया का कोई टापू नहीं बल्कि एक अज्ञात क्षेत्र था। प्रिंटिंग प्रेस का आविष्कार भी उस दौर में हो चुका था। Ameriro Vespucchi ने प्रिंटिंग प्रेस द्वारा अपने यात्रा वृत्तान्त को छापा जो बहुत ही प्रसिद्ध हुआ। उसे पहला यूरोपियन माना जाता है जिसने ऐसी खोज की थी। इसके बाद 1507 में जर्मन नक्शा बनाने वाले कारीगरों ने एक नया नक्शा बनाया जिसमें अमेरिका को भी दर्शाया गया था।
Ferdinand Magellan की यात्रा : First Voyage around the World (1519-1521)
मैगलन फर्डिनेंड (1480-1521) पुर्तगाली नाविक था। मैगलन ही वह पहला शख्स था जिसने पूरी दुनिया की यात्रा पहली ही बार में पूरी की थी। दक्षिण अमेरिका को पार करके उसे एक विशाल महासागर से होकर गुजरना पड़ा था जिसमें लगभग तीन महीने से भी ज्यादा का समय लगा। लगभग तीन महीने की यात्रा के दौरान वह जिस महासागर से होकर गुजरा था वह बहुत ही शान्त था, इसलिए उसने इसका नाम प्रशान्त महासागर रख दिया। (pecific means – peace full). 224 लोग इस यात्रा में धीरे-धीरे मारे गए जिसमें खुद Ferdinand Magellan भी थे। इस पूरी यात्रा में केवल 17 लोग ही वापिस पहुँच पाए थे। इस यात्रा ने एक और नया इतिहास बना दिया था कि एशिया के लिए हम पश्चिम से होकर भी पहुँच सकते हैं। इसके आलावा इस बात की भी पुष्टि हो गई थी कि धरती समतल न होकर गोल है।
यहाँ तक के सफर में हमने यह समझा कि किस प्रकार समुद्री यात्राओं ने देश दुनिया को समझा, व्यापार और खोजों को ऊँचे मुकाम तक पहुँचाया। इन सब बातों के मद्देनजर ये कुछ सोचनीय प्रश्न हैं-
आखिर क्यों यूरोप के देशों को अपनी सीमाएँ तोड़कर बाहर निकलना पड़ा?
कैसे समुद्री मार्गों की खोज ने दुनिया को जलवायु, अलग-अलग संस्कृतियों, रहन-सहन, खान-पान इत्यादि से रूबरू कराया होगा?
आज हमारे पास बहुत सारी जानकारियाँ उपलब्ध हैं पर यह सोचने की बात है कि शुरुआत में कैसे अनुभवों के आधार पर इन जानकारियों को और पुख्ता किया गया होगा?
समुद्री यात्राओं ने जहाँ विश्व को सोचने समझने का एक वृहद् आइना दिया वहीं ज्ञान की सीमा को भी ऊँचे पंख दिए। इन सबने मानव को असम्भव-सी लगने वाली बातों को सम्भव करने, नए टापू की खोज, जलवायु, जलवायु परिवर्तन एवं उससे सम्बन्धित प्राकृतिक एवं मानवीय कारणों को समझने का वृहद् एवं ठोस आधार दिया है।
साभार:-
Herring, Hubert. A History of Latin America from the Beginnings to the Present. New York: Alfred A. Knopf, 1962
Thomas, Hugh. Rivers of Gold: The Rise of the Spanish Empire, from Columbus to Magellan. New York: Random House, 2005
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प्रमोद बक्शी,अज़ीम प्रेमजी फाउण्डेशन, उत्तरकाशी,उत्तराखण्ड
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