बच्चों द्वारा लिखते समय की जाने वाली गलतियाँ अक्सर शिक्षकों के लिए भयानक चिन्ता का विषय होती हैं। ये गलतियाँ कई बार मात्राओं की होती हैं तो कई बार पूरा शब्द गलत लिखे जाने की।
एक शिक्षिका के अनुसार, “मेरे बच्चे इ और ई की मात्रा में और उ और ऊ की मात्रा लगाते समय लगातार गलतियाँ करते हैं।” तो आप इन गलतियों में सुधार के लिए क्या करती हैं? पूछे जाने पर उन्होंने बताया, “मैं गलत शब्दों पर लाल स्याही से गोला लगाती हूँ और गलत लिखे गए शब्दों को स्वयं सही वर्तनी में लिखकर बच्चों को उन्हें तीन या पाँच बार लिखने को कहती हूँ।”
क्या उसके बाद उन शब्दों की वर्तनी सही हो जाती है? पूछे जाने पर वे निराश स्वर में बोलीं, “कहाँ हो पाती है मैडम, बच्चे ध्यान कहाँ देते हैं। बार-बार वैसी ही गलतियाँ करते हैं।”
गलतियाँ सुधारने की यह परम्परा दशकों से चली आ रही है। हम सब इसी प्रक्रिया से होकर गुजरे हैं। सालों साल शिक्षकों की और घरवालों की नाराजगी सही है, मार भी खाई है पर हमारी गलतियाँ भी शिक्षक द्वारा लाल स्याही से गोले लगाने या गलत शब्दों को पूरी पंक्तियाँ भरकर नकल करने से नहीं सुधरी। वरन जब हमने उन्हें सुधारना चाहा अर्थात उस शब्द की वर्तनी पर विशेष ध्यान दिया तब वह सुधरी।
वास्तव में वर्तनी के मामले को दो तरीके से देखा जाना चाहिए। पहला तो यह कि जैसे ही हम यह मानने लगते हैं कि हिन्दी जैसी बोली जाती है वैसी ही लिखी जाती है, तो गलतियों की संभावना बहुत बढ़ जाती है। ऐसा मैं इसलिए कह रही हूँ क्योंकि हिन्दी बोलने और लिखने में फर्क होता है। उदाहरण के लिए हम पैसा (पइसा) या पौधा (पौदा) को जैसा बोलते हैं, उस तरह से लिखते नहीं हैं। इसी तरह कृष्ण के कृ को बोला क्रि की तरह जाता है। इसी तरह की गलतियाँ छोटी-बड़ी मात्राओं के उच्चारण में भी होती है अतः यदि हम इसी आग्रह के साथ जुड़े रहेंगे कि जैसा बोल रहे हो वैसा ही लिखो तो पहले हम शिक्षकों को भी हिन्दी को सही तरीके से बोलना सीखना होगा। क्योंकि बच्चे भी भाषा को उसी तरह से उच्चारित कर रहे हैं जैसा उन्होंने अपने आसपास सुना है।
दूसरी बात यह कि हम शब्दों को केवल सुनकर लिखना नहीं सीखते वरन जो शब्द हमारी आँखों के सामने से जितनी बार गुजरता है, उसकी वर्तनी उतनी ही हमारे दिमाग में बैठती जाती है। वास्तव में शब्द भी चित्र होते हैं जो बार-बार देखे जाने पर हमारे दिमाग में स्थाई हो जाते हैं। विश्वास न हो तो कुछ शब्दों का स्मरण करके देख लें, वर्तनी सहित आपके दिमाग में अंकित हो जाएँगे। हमारे साथ अक्सर होता है कि किसी शब्द की वर्तनी में शंका होने पर हम उस शब्द को मन में याद करते हैं या लिखकर देखते हैं। यह उस शब्द चित्र को याद करने की ही विधि है।
तात्पर्य यह कि वर्तनी की गलतियाँ केवल शब्दों को लाल करने से या किसी शब्द को एकाकी रूप से बार-बार लिखवाने से ठीक नहीं होगी। वर्तनी के सुधार के लिए सबसे उपयुक्त यह होगा कि बच्चों का सामना ऐसी कहानी या पाठ्यवस्तु से बार-बार कराया जाए जिसमें वह शब्द पूरे सन्दर्भ के साथ बार-बार आ रहा हो। सन्दर्भ या वाक्य की बात इसलिए कही जा रही है ताकि बच्चे वर्तनी के साथ-साथ उस शब्द का अर्थ ग्रहण कर सकें जो उन्हें उस शब्द को स्मृति में रखने में सहायता करता है। साथ ही उन्हें यह भी बताया जाए कि हम क्रिपा बोल रहे हैं पर उसे लिखा कृपा जाता है।
एक और महत्वपूर्ण बात यह कि कोई शब्द जितना हमारे सन्दर्भ से जुड़ता होगा, हमारे जीवन के जितना निकट होगा, उसे याद रखना अधिक आसान होगा। अतः यदि उन शब्दों को चुनकर सूचीबद्ध कर लिया जाए, जिन्हें लिखने में अधिकतर बच्चे गलतियाँ करते हैं और उन्हें किसी ऐसी कहानी या कहानियों में पिरो लिया जाए जो बच्चों को अपनी सी लगे तो उन शब्दों की वर्तनी बच्चे सहजता से याद कर लेंगे।
कक्षा की दीवारों पर कहानी-कविताओं के पोस्टर, चार्ट आदि लगाएँ, जिनमें इस तरह के शब्द बार-बार आते हों। उन्हें रेखांकित करें। एक शब्द दीवार, शब्द जाल भी बनाकर दीवार पर लगा सकते हैं। ऐसा करने से वे शब्द बार-बार बच्चों की निगाहों के सामने से गुजरेंगे और उनकी वर्तनी सुधारने में मदद मिलेगी।
लेखिका : भारती पंडित, स्रोत व्यक्ति,
अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन भोपाल
प्रेषित : अध्यापक की सोच
मैं इस आर्टिकल को पढ़ कर दुविधा में उलझ गई हूँ, आपने आर्टिकल में लिखा है कि "जैसे ही हम यह मानने लगते हैं कि हिन्दी जैसी बोली जाती है वैसी ही लिखी जाती है, तो गलतियों की संभावना बहुत बढ़ जाती है। ऐसा मैं इसलिए कह रही हूँ क्योंकि हिन्दी बोलने और लिखने में फर्क होता है" आपने इसके कुछ उदहारण भी दिए हैं जो मुझे सही भी लगते हैं पर क्या आपको नहीं लगता की हम शिक्षकों/व्यस्को को भी अपने उच्चारण पर काम करने की आवश्यकता है| क्योकि हम जितना स्पष्ट बोलेंगे उसे लिखना उतना ही आसन होगा?
जवाब देंहटाएंji, main sehmat hun aapki baaton se. sab kuchh hamaare ucharan par nirbhar karta hai.
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