गुरुवार, 28 दिसंबर 2017

2017 में क्या हुआ शिक्षा क्षेत्र में ?


विद्यालय में बच्चों की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम हों, इसकी माँग विभिन्न राज्यों के अभिभावक कर रहे हैं।
साल 2017 में बच्चों की सुरक्षा के मुद्दा सुर्खियों में सबसे ऊपर रहा। इसको लेकर विभिन्न राज्यों में बच्चों की सुरक्षा के लिए जरूरी दिशा-निर्देश जारी किये गये। रेयान इंटरनेशनल स्कूल में दूसरी कक्षा के छात्र प्रद्युमन ठाकुर की हत्या के बाद से ये मुद्दा सुर्खियों में बना रहा।

सीबीआई जाँच में इसी स्कूल के 11वीं कक्षा के एक छात्र का नाम सामने आया, उसको बालिग मानकर मामले की सुनवाई करने के मुद्दे पर भी पूरे देश में चर्चा हो रही है कि ऐसा करना सही है या गलत।

बच्चों की सुरक्षा को लेकर चिंतित अभिभावक
इस मुद्दे के कारण अभिभावकों की चिंता भी बढ़ी है कि स्कूल जाने वाले बच्चे वास्तव में कितने सुरक्षित हैं। स्कूल में बच्चों के खिलाफ होने वाली हिंसा और यौन शोषण जैसे संवेदनशील मुद्दों पर चिंता का साल रहा 2017। साल 2018 में स्थितियों को बदलने की उम्मीद हर किसी को है, अभिभावक और नागरिक समाज इसके लिए विभिन्न उपायों को अमल में लाने की माँग कर रहे हैं।


नये साल में मिलेगी, नई शिक्षा नीति?

इसके बाद दूसरा सबसे चर्चित मूद्दा रहा नई शिक्षा नीति के आने का। जून में इसरो के पूर्व अध्यक्ष के कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति बनाने के लिए एक समिति का गठन किया गया था।

समिति को साल 2017 के दिसंबर माह में अपनी रिपोर्ट पेश करती थी, मगर हाल ही में छपी खबरों के मुताबिक समिति ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय से तीन महीने का समय और माँगा है। यानि नई शिक्षा नीति के मार्च 2018 तक का इंतजार करना पड़ेगा। नई शिक्षा नीति, नये साल में मिलेगी इस बात की उम्मीद जताई जा सकती है। मौजूदा शिक्षा नीति साल 1986 में बनी थी, जिसको समसामयिक बनाने के लिए साल 1992 में कुछ संसोधन किये गये थे।

क्यों बंद हो रहे हैं सरकारी स्कूल?
सरकारी स्कूलों के बंद होने का मुद्दा भी साल 2017 में शिक्षा से जुड़े मुद्दों में से एक रहा। सरकारी स्कूलों को पीपीपी मोड में देने या सरकारी स्कूलों को बंद करने का शिक्षक समुदाय की तरफ से विरोध किया गया।

इस बारे में शिक्षकों को कहना था कि सरकार को विद्यालय में बच्चों की संख्या के अनुसार शिक्षकों की व्यवस्था करनी चाहिए, ऐसे विद्यालय जहाँ पर बच्चे कम हैं उनको दूसरे स्कूलों में शामिल करने को बहुत से शिक्षकों ने सही ठहराया। इस बारे में अभिभावकों का भी कहना है कि ऐसे स्कूलों को बंद करना ही सही है। यह सवाल अभी भी चर्चा में बना हुआ है कि सरकारी स्कूल क्यों बंद हो रहे हैं? 

आठवीं तक फेल न करने की नीति में हुआ बदलाव

इसी साल आठवीं तक बच्चों को फेल न करने की नीति में बदालव ने भी शिक्षक समुदाय के साथ-साथ अभिभावकों व शिक्षाविदों का ध्यान आकर्षित किया। इसके तहत 5वीं से 8वीं तक के छात्र-छात्राओं को परीक्षा पास करने के दो मौके मिलेंगे। 

यह फ़ैसला उस जड़ता को तोड़ता है जिसमें परीक्षा को सर्वोपरि माना जाता था और एक बार मिलने वाले परीक्षा परिणाम को अंतिम माना जाता है।

नए प्रावधान में सरकार बच्चों को परीक्षा पास करने के लिए दो अतिरिक्त अवसर दे रही है, इससे साक्षरता के प्रतिशत में बढ़ोत्तरी को मदद मिलेगी। लेकिन जो बच्चे दूसरी बारे में भी परीक्षा पास नहीं कर पाएंगे, उनको फिर से अपनी ही कक्षा में पढ़ना होगा।

बीएड या अन्य डिग्री हासिल करने के लिए मिला 2019 तक का समय

साल 2017 में ही एक और फ़ैसला मानव संसाधन विकास मंत्रालय में हुआ जिसमें सरकारी व निजी स्कूल में पढ़ाने वाले लोगों को साल2019 तक बीएड या समतुल्य डिग्री हासिल करने का समय दिया गया है। इस अवधि में बीएड की डिग्री हासिल न करने वाले शिक्षकों को अपनी नौकरी से वंचित होना पड़ेगा। बहुत से शिक्षक इस फ़ैसले की आलोचना कर रहे हैं कि इसके बारे में पहले से सूचना देनी चाहिए थी। इसके लिए ऑनलाइन कोर्सेज का संचालन किया जायेगा। स्कूलों में पढ़ाने वाले शिक्षकों के पास जरूरी डिग्री हो, इस बात से हर कोई सहमत ही है। इस साल बिहार से शिक्षा के क्षेत्र से जुड़ी ऐसी खबर आई, जिसने लोगों का ध्यान आकर्षित किया ।

10वीं में फेल होने वाली ‘टॉपर’
बिहार की प्रियंका सिंह ने अपने आत्मविश्वास से बोर्ड के परीक्षा परिणाम में बदलाव की कहानी लिखी। 

साल 2017 में शिक्षा के क्षेत्र में एक अनोखी स्टोरी बिहार से आई। यहां के सहरसा के सिमरी बख्तियारपुर की सिटानाबाद पंचायत के गंगा टोला की एक छात्रा प्रियंका सिंह ने बिहार बोर्ड द्वारा फेल किये जाने को पटना उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। इस मामले में उन्होंने जीत पायी।

प्रियंका को बिहार बोर्ड की तरफ से लाख का हर्जाना भी मिला। उनको पेंटिंग करने का शौक है। वह 10वीं के बाद मेडिकल की तैयारी करना चाहती थीं, मगर ‘फेल’ वाले अंकपत्र ने उनके हिस्से संघर्ष और जीत की कहानी दर्ज की।
शिक्षा मित्रों के लिए आगे की राह आसान नहीं
इसके अलावा उत्तर प्रदेश में सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों की ड्रेस बदलने, बग़ैर मान्यता के संचालित हो रहे निजी स्कूलों को बंद करने की भी चर्चा रही। मगर सबसे ज्यादा सुर्खी जिस मुद्दे को मिली थी वह थी शिक्षा मित्रों के टीईटी (उत्तर प्रदेश शिक्षक पात्रता परीक्षा) पास करने और लिखित परीक्षा में हिस्सा लेने का मुद्दा। इसके अलावा सहायक अध्यापक बने शिक्षा मित्रों के मूल पद और मूल स्थान पर वापस लौटने संबंधी आदेश। इससे उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों में शिक्षण कार्य भी प्रभावित हुआ। जनवरी-फरवरी में 68,500 सहायक अध्यापकों की भर्ती के लिए लिखित परीक्षा होनी है, शिक्षा मित्र इसमें हिस्सा लेंगे। दिसंबर मे्ं आये टीईटी के परीक्षा परिणाम में महज 11.11 फीसदी परीक्षार्थी सफल हुए हैं, ऐसे में शिक्षा मित्रों के लिए आगे की राह आसान नहीं है।

लेखक: बृजेश मिश्रा 
प्रेषक: अध्यापक की सोच

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार टीईटी के लिए कुल नौ लाख 76 हजार 760 अभ्यर्थी पंजीकृत हुए थे। प्राथमिक स्तर की टीईटी के लिए कुल तीन लाख 49 हजार 192 तथा उच्च प्राथमिक स्तर के लिए कुल छह लाख 27 हजार 568 पंजीकरण हुए। इसमें 1.37 लाख वे शिक्षामित्र भी शामिल थे, जिनका समायोजन निरस्त हुआ था। समायोजन में शेष रह गए 26000 शिक्षामित्रों ने भी टीईटी के लिए आवेदन किया था। इसमें आठ लाख आठ हजार 348 अभ्यर्थी शामिल हुए। ग़ौर करने वाली बात है कि प्राथमिक स्तर के लिए सबसे ज्यादा आवेदन शिक्षामित्रों ने ही किए लेकिन परिणाम में प्राथमिक स्तर पर मात्र 47 हजार 975 अभ्यर्थियों के सफल होने से शिक्षामित्रों को बड़ा झटका लगा है।

बुधवार, 27 दिसंबर 2017

POCSO Act-2012

पोक्सो कानून क्या है?

पोक्सो, यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण करने संबंधी अधिनियम (Protection of Children from Sexual Offences Act – POCSO) का संक्षिप्त नाम है.पोक्सो 


एक्ट-2012 के अंतर्गत बच्चों के प्रति यौन उत्पीड़न और यौन शोषण और पोर्नोग्राफी जैसे जघन्य अपराधों को रोकने के लिए, महिला और बाल विकास मंत्रालय ने पोक्सो एक्ट-2012 बनाया था

वर्ष 2012 में बनाए गए इस कानून के तहत अलग-अलग अपराध के लिए अलग-अलग सजा तय की गई है. पास्को अधिनियम की धारा 7 और 8 के तहत वो मामले पंजीकृत किए जाते हैं जिनमें बच्चों के गुप्तांग से छेडछाड़ की जाती है, इस धारा के आरोपियों पर दोष सिद्ध हो जाने पर 5 से 7 साल तक की सजा और जुर्माना हो सकता है. इस एक्ट को बनाना इसलिए भी जरूरी था क्योंकि बच्चे बहुत ही मासूम होते हैं और आसानी से लोगों के बहकाबे में आ जाते हैं. कई बार तो बच्चे डर के कारण उनके साथ हुए शोषण को माता पिता को बताते भी नही है।

इस एक्ट के प्रावधान इस प्रकार हैं: 

यौन शोषण की परिभाषा- इसमें यौन उत्पीड़न और अश्लील साहित्य, सेक्सुअल और गैर सेक्सुअल हमला (penetrative and non-penetrative assault) को शामिल किया गया है।

1. इसने भारतीय दंड संहिता, 1860 के अनुसार सहमती से सेक्स करने की उम्र को 16 वर्ष से बढाकर 18 वर्ष कर दिया है.इसका मतलब है कि-

(a) यदि कोई व्यक्ति (एक बच्चा सहित) किसी बच्चे के साथ उसकी सहमती या बिना सहमती के यौन कृत्य करता है तो उसको पोक्सो एक्ट के अनुसार सजा मिलनी ही है।

(b) यदि कोई पति या पत्नि 18 साल से कम उम्र के जीवनसाथी के साथ यौन कृत्य कराता है तो यह अपराध की श्रेणी में आता है और उस पर मुकदमा चलाया जा सकता है।

2. यह अधिनियम पूरे भारत पर लागू होता है और 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को यौन अपराधों के खिलाफ संरक्षण प्रदान करता है।

3. पोक्सो कनून के तहत सभी अपराधों की सुनवाई, एक विशेष न्यायालय द्वारा कैमरे के सामने बच्चे के माता पिता या जिन लोगों पर बच्चा भरोसा करता है, उनकी उपस्थिति में की कोशिश करनी चाहिए।

4. यदि अभियुक्त एक किशोर है, तो उसके ऊपर किशोर न्यायालय अधिनियम, 2000 (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) में मुकदमा चलाया जाएगा।

5.यदि पीड़ित बच्चा विकलांग है या मानसिक रूप से या शारीरिक रूप से बीमार है, तो विशेष अदालत को उसकी गवाही को रिकॉर्ड करने या किसी अन्य उद्येश्य के लिए अनुवादक, दुभाषिया या विशेष शिक्षक की सहायता लेनी चाहिए।

6. यदि अपराधी ने कुछ ऐसा अपराध किया है जो कि बाल अपराध कानून के अलावा अन्य कानून में भी अपराध है तो अपराधी को सजा उस कानून में तहत होगी जो कि सबसे सख्त हो।

7. इसमें खुद को निर्दोष साबित करने का दायित्व अभियुक्त (accused) पर होता है. इसमें झूठा आरोप लगाने, झूठी जानकारी देने तथा किसी की छवि को ख़राब करने के लिए सजा का प्रावधान भी है।

8. जो लोग यौन प्रयोजनों के लिए बच्चों का व्यापार (child trafficking) करते हैं उनके लिए भी सख्त सजा का प्रावधान है।



9. सर्वश्रेष्ठ अंतरराष्ट्रीय बाल संरक्षण मानकों के अनुरूप, इस अधिनियम में यह प्रावधान है कि यदि कोई व्यक्ति यह जनता है कि किसी बच्चे का यौन शोषण हुआ है तो उसके इसकी रिपोर्ट नजदीकी थाने में देनी चाहिए, यदि वो ऐसा नही करता है तो उसे छह महीने की कारावास और आर्थिक दंड दिया जा सकता है।

10. यह अधिनियम बाल संरक्षक की जिम्मेदारी पुलिस को सौंपता है. इसमें पुलिस को बच्चे की देखभाल और संरक्षण के लिए तत्काल व्यवस्था बनाने की ज़िम्मेदारी दी जाती है. जैसे बच्चे के लिए आपातकालीन चिकित्सा उपचार प्राप्त करना और बच्चे को आश्रय गृह में रखना इत्यादि।

11. पुलिस की यह जिम्मेदारी बनती है कि मामले को 24 घंटे के अन्दर बाल कल्याण समिति (CWC) की निगरानी में लाये ताकि CWC बच्चे की सुरक्षा और संरक्षण के लिए जरूरी कदम उठा सके।

12. इस अधिनियम में बच्चे की मेडिकल जांच के लिए प्रावधान भी किए गए हैं, जो कि इस तरह की हो ताकि बच्चे के लिए कम से कम पीड़ादायक हो. मेडिकल जांच बच्चे के माता-पिता या किसी अन्य व्यक्ति की उपस्थिति में किया जाना चाहिए, जिस पर बच्चे का विश्वास हो, और बच्ची की मेडिकल जांच महिला चिकित्सक द्वारा ही की जानी चाहिए।


Image source:WNPR

13. इस अधिनियम में इस बात का ध्यान रखा गया है कि न्यायिक व्यवस्था के द्वारा फिर से बच्चे के ऊपर ज़ुल्म न किये जाएँ. इस एक्ट में केस की सुनवाई एक स्पेशल अदालत द्वारा बंद कमरे में कैमरे के सामने दोस्ताना माहौल में किया जाने का प्रावधान है. यह दौरान बच्चे की पहचान गुप्त रखने की कोशिश की जानी चाहिए।

14. विशेष न्यायालय, उस बच्चे को दिए जाने वाली मुआवजे की राशि का निर्धारण कर सकता है, जिससे बच्चे के चिकित्सा उपचार और पुनर्वास की व्यवस्था की जा सके।

15. अधिनियम में यह कहा गया है कि बच्चे के यौन शोषण का मामला घटना घटने की तारीख से एक वर्ष के भीतर निपटाया जाना चाहिए।

सरकार द्वारा बच्चों के यौन शोषण के लिए पोक्सो एक्ट में किया गए प्रावधान 2012 में किये गए थे जो कि बहुत लेट से किये गए हैं।

पोक्सो के अंतर्गत बच्चों के खिलाफ यौन अपराध के 6118 मामले 2012 से 2016 के बीच दर्ज किये गए हैं. इसमें 85% मामले अभी भी कोर्ट में लंबित पड़े हुए है जबकि अपराधी को सजा मिलने की दर सिर्फ 2% है जो कि किसी भी तरह से ठीक नही ठहराया जा सकता है. सरकार को इस एक्ट में और जरूरी सुधार करने होंगे ताकि पीड़ित को जल्दी से जल्दी न्याय मिल सके. ज्यादातर मामलों में देखने में आया है कि बच्चों का शोषण जान-पहचान के लोग ज्यादा करते हैं और घर के लोग उन पर शक भी नही करते हैं.इसलिए माता- पिता का यह दायित्व बनता है कि जिन लोगों के साथ बच्चे खेल रहे हैं उन पर पूरी नजर रखें।

Written By: Hement Singh

पोस्टेड बाय : अध्यापक की सोच

गुरुवार, 21 दिसंबर 2017

गणित दिवस पर विशेष

परीक्षा हेतु गणित कैसे पढ़े

मित्रों , गणित को हमेशा से एक डरावना विषय मानने की भूल लोग करते है और इसी पूर्वाग्रह के चलते लोग यह मानकर चलते है की किसी प्रतियोगी परीक्षा में गणित के २० पूछे गए प्रश्नों में १०% से अधिक ठीक होने की संभावना नहीं है और यह डर अक्सर छात्रों को ले डूबता है. संस्कृत में एक कहावत है

तावद् भयस्य भेतव्यम यावद् भयमनागतम
आगतं तू भयं वीक्ष्यं प्रतिकुर्याद यथोचितं

इसका अर्थ है की भय से तबतक डरना चाहिए जबतक वो सामने न आ जाये और यदि वो सामने आ जाये तो उसका बढ़कर स्वागत करना चाहिए. आज के बर्तमान युग में गणित एक ऐसी हकीकत है जिससे मुंह नहीं मोड़ा जा सकता है और आप ऐसे किसी भी प्रतियोगी परीक्षा के बारे में सोचिये जिसमे गणित पर सवाल न आते हों तो शायद ही आपके जहन में कोई नाम आये.

गणित की इसी सार्वभौमिकता की वजह से गौस ने इसे सभी विषयों की रानी कहा है. और यह बात कुछ हद तक उचित भी है क्योंकि यदि आपने सचमुच ही गणित से प्यार कर लिया तो यह आपका साथ हर बुरे वक्त में देती है और इसके इसी गुण के कारन वेदों में भी गणित को सर्वोच्च स्थान दिया गया है,

यथा शिखा मयूराणां , नागानां मणयो यथा ।
तद् वेदांगशास्त्राणां , गणितं मूर्ध्नि वर्तते ॥

जैसे मोरों के सिर पर शिखा और नागों के सर पर मणि शोभा पाती है , वैसे ही सभी वेदांग और शास्त्रों मे गणित का स्थान सबसे उपर है । आइये गणित की इसी यात्रा को हम साथ- साथ निकले और उन सारे कंटीले रास्तों, पेड़, पर्वत को पार करने की कोशिश करे जिससे गणित का राह सुगम बने.

प्रतियोगिता परीक्षा और गणित

प्रतियोगी परीक्षा में गणित का सिलेबस विशेषकर – अंकगणित, बीजगणित, त्रिकोंमिति, सांख्यकी से आते है और अधिकांश परीक्षा चाहे वो किसी अफसर का हो या किसी साधारण सी नौकरी का गणित के प्रश्न अवश्य आते हैं. परीक्षा की तैयारी के लिए यह आवश्यक है की आपको पूर्ववर्ती कक्षा की भरपूर जानकारी हो अन्यथा जैसे बिना मजबूत नीव के मकान कमजोर रहता है वैसे ही बिना गणित के अच्छे नीव के आपके गणित का ज्ञान कमजोर रहेगा. अतः आवश्यक है की प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी से पूर्व सभी अध्याय की महत्वपूर्ण बातें , सूत्र , प्रमेय इत्यादि को आप याद रख्रें .

क्या करें :- परीक्षा की तैयारी से पूर्व

1. प्रत्येक परीक्षा के गणित सेक्शन का सिलेबस आपको पता होना चाहिए। सिलेबस से अवगत रहने से आपको अपने मजबूत और कमज़ोर पक्षों की जानकारी होती है।

2. गणित पेपर को हल करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण टिप है कि आप अपनी गति को सुधारें। गणित में आपकी गति तभी ठीक होगी जब आप नियमित अभ्यास की आदत बनायेंगे और साथ ही अभ्यास प्रश्नों को समय प्रबंधन करना सुनिश्चित करने में आप कामयाब हों.

3. पिछले वर्षों के पेपर हल करें। इससे प्रश्नों के पैटर्न को समझने में और उन्हें हल करने में काफ़ी मदद मिलती है। इससे आप प्रत्येक विषय की कठिनाई का स्तर भी जान पाएंगे।

4. 25 तक पहाड़े, 50 तक के वर्गमूल, 15 तक के घन, 15 तक के घन मूल और बुनियादी एल्जेब्रा के फॉर्मूले याद कर लें। साथ ही जरुरत है की आपको दो संख्या के बीच की अभाज्य संख्या निकालना, भाज्यता की जांच, भिन्न शांत है या अशांत, लघुत्तम, महत्तम जैसे बुनियादी बातें आना आवश्यक है.

5. उन विषयों के बुनियादी कॉनसेप्ट को समझें जिनका उल्लेख सिलेबस में किया गया है। यदि आप कहीं किसी विषय पर अटक जाते हैं तो संदर्भ पुस्तकों का सहारा लें और इसके लिए आप किसी शिक्षक की मदद ले सकते हैं या कोई अच्छे प्रकाशक की पुस्तक अवश्य पढ़ें । कोई भी विषय ना छोड़ें तब भी जब आपको लगे कि अपेक्षाकृत अधिक महत्वपूर्ण नहीं है क्योंकि प्रश्न कहीं से भी पूछे जा सकते हैं।

6. कोशिश करें कि अपने ही शॉर्टकट तरीके अपनाएं. अंकगणित के लिए आप वैदिक गणित , मैथ्स मेड इजी जैसी पुस्तकों से सैकड़ों नियम सीख सकते है जो आके अंकगणित में गणना करना आसान हो जाये. 

7. जहाँ तक सम्भब हो बाजार या ऑनलाइन उपलब्ध मॉक टेस्ट और प्रश्न बैंक को हल करें। इससे आपको पता चलता है कि किस प्रकार प्रश्नों को सेट किया जाता है। नए ट्रिक्स और याद करने के स्मार्ट तरीके अपनाएं ताकि आप समय और परिश्रम का कुशल प्रयोग कर सकें। 

8. परीक्षा पूर्व आप उन गलतियों को जरुर दूर करने की कोशिश करें जिसमे आप अपने आपको असहज महसूस करते हों और इसके लिए यह आवश्यक है कि अपनी सभी गलतियों की एक लिस्ट बनायें. करणी पर आधारित सवालों में अक्सर छात्र गलती करते हैं, साथ ही बीजगणित में अचर और चर को लोग जोड़ने की गलती भी करते दिखते हैं. द्विघात समीकरण के सवाल में भी दो मूल लेने के बजाय कई बार एक धनात्मक मूल लेने की भूल कर अपने अंक गँवा लेते है ऐसी अनेकों गलतियों से आप सावधानीपूर्वक बच सकते हैं.

9. त्रिकोंमिति के सभी सूत्र और कोणों के मान – 30, 45, 60, 90 का मान सभी निष्पति – sin, cos, tan, cot,sec, cosec के लिए याद कर लें. साथ ही पाइथागोरस त्रिक (3,4,5), (6,8,10), (7, 24, 25), (8, 15,17), (9, 40, 41)... याद करें जिससे त्रिकोंमिति के सूत्र निकालने में आपको आसानी होगी.

10. अंकगणित में आप – लाभ और हानि ,साधारण और चक्रवृद्धि व्याज , समय, दूरी और काम, लघुत्तम , सांख्यिकी , प्रायिकता जैसे ऐसे सवाल हैं जो परीक्षा में अवश्य आते है और इन्हें थोड़ा सा ध्यान देकर सीखा जा सकता है.

11. क्षेत्रमिति के सवाल अधिकांशतः सूत्र पर आधारित होते है जिसके लिए किसी विशेष योग्यता की आवश्यकता नहीं है, अगर आपको सूत्र में पकड़ है और आप थोड़ी सी सावधानी बरतें तो अवश्य ही इस प्रकार के प्रश्नों को हल कर पाएंगे.

टाइम मेनेजमेट कैसे करें :-

परीक्षा में समय प्रवंधन ही सबसे महत्वपूर्ण विषय है जिसे आप नियंत्रण कर अपनी सफलता का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं पर ऐसा तभी कर पाएंगे जब आपकी तैयारी अच्छी हो और आप परीक्षा पूर्व नियोजित रूप से काम कर चुकें हो. आपको गणना करने की द्रुत विधि जैसे- वैदिक विधि आपको आती हो. अंकगणित और बीजगणित के सभी सूत्र भी आपको आते हो और आपने कई टेस्ट दे रखा हो. परीक्षा में आप शांतचित होकर जाएँ जिससे आपको घबराहट न हो और आप प्रश्नों को हल करने में आनंद का अनुभव करें. कठिन प्रश्नों को बाद में हल करें इसके लिए आप प्रश्न हल करने का तरीका पंक्तिबद्ध न होकर मिश्रित और आसान से कठिन को अपनाएं. यदि 1 घंटे में आपको 60 प्रश्न हल करने है तो इसका अर्थ हुआ की आप 1 मिनट में 1 प्रश्न हल करेंगे यदि 15 -20 प्रश्न हल करने के बाद यह लगता हो की आपकी गति अनुकूल नहीं है तो स्पीड बढ़ाने की आवश्यकता है साथ ही कछुए और खरगोश की कहानी भी आप भूले न. सही समय प्रवंधन से आपको अपने उत्तर को दुबारा जांच करने के लिए समय बच जायेगा अन्यथा आप सारे प्रश्न जानते हुए भी हल नहीं कर पाएंगे. आजकल परीक्षा में निगेटिव मार्किंग स्कीम भी रहता है अतः आपकी स्पीड के साथ यह भी जरुरी है की आप गलत सवालों के हल अटकल में न करें अन्यथा लेने के देने पड़ सकते हैं. मान लीजिये की आपने चार उत्तर गलत किये तो 0.25 के हिसाब से 1 अंक गँवा दिए. परीक्षा में जहाँ लाखों छात्र बैठते है वहां 0.25 अंक की अपनी महत्ता है.

कामयाबी हासिल करने का मंत्र

कामयाबी हासिल करने के लिए संयमित होना आवश्यक है साथ ही विषय पर पूरी पकड़ के साथ नियमित अभ्यास करते रहें. हर फॉर्मूले की एप्लीकेशन आनी चाहिए यह जरुरी है. चैप्टर वाइज फॉर्मूले अच्छी तरह याद कर लें और उनका निरंतर अभ्यास करें। पेपर हल करते समय यह कोशिश करते रहें की सारे प्रश्न तय समय से पहले हो जाये और जब भी आप हल करने बैठें तो प्रश्न के अंतिम प्रश्न तक हल करें न कि विश्राम करते हुए कई सिटिंग में इसे हल करें. स्पीड को हासिल करने के लिए जरुरी है कि आप वैदिक गणित या अन्य क्विकर गणित की विधि जरुर सीखे और इसका अप्प्लीकेशन भी करते रहें नहीं तो अक्सर यह देखा जाता है की आपको बहुत सारे शोर्ट कट आते है पर जब उसे इस्तेमाल का असली समय आता है तो आप भूल जाते है और इसे तभी आप ठीक कर पाएंगे जब आपको हर सूक्ष्म विधि पर कई सारे सवालों को हल करने का अभ्यास हो. 


गणित आपके स्कोर ग्राफ उठाने में अहम् भूमिका निभा सकता है अतः इस विषय के साथ आपकी दोस्ती अटूट हो. गणित के सूत्र रटने भर से आपको गणित नहीं आ सकती खासकर जब आप किसी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे है तो आपको विषय पर पकड़, सूक्ष्म विधि, आधारभूत प्रमेय, वर्ग, घन, अंकगणित, बीजगणित , पर बार-बार पूछे जाने वाले प्रश्नों की सूची के साथ साथ विषयवार अध्ययन वो भी समय की मर्यादा देखते हुए नियमित रूप से करने की जरूरत है. गणित के विषय में प्रचलित एक मशहुर कविता है जिसका हिंदी रूपांतरण कुछ इस तरह है – यह काफी अच्छा होगा की आप कुछेक का सबकुछ पढ़े न कि सभी अध्याय का कुछ-कुछ पढ़े और इससे बढ़िया बात कोई नहीं यदि आप सब अध्याय का सबकुछ पढ़ें.

DR Rajesh Kumar Thakur
rkthakur1974@gmail.com

प्रस्तुति : अध्यापक की सोच

मतदान-पाठ योजना

बुनियादी जानकारी

राजनीति विज्ञान को विद्यार्थियों को प्राय: एक ‘बहुत नीरस’ या ‘बहुत उबाऊ’ विषय के रूप में  पढ़ाया जाता है। वे राजनीति विज्ञान के पाठों का अध्‍ययन रटने की विधि का प्रयोग करते हुए अपेक्षाकृत यांत्रिक और एकरस ढंग से करते हैं और अपने जीवन में इसके महत्व और सम्बद्धता को मुश्किल से महसूस कर पाते हैं। बच्चे अपने आसपास की ‘राजनीति’ और ‘सरकार’ के छोटे अंशों और टुकड़ों पर ध्‍यान तो देते हैं या उनका अवलोकन भी करते हैं परन्‍तु उन्हें अपनी पाठ्यपुस्तकों में सामग्री के साथ जोड़ने में असफल हो रहते हैं। बच्चों को उनके जीवन में राजनीति विज्ञान के महत्व का व्यावहारिक अनुभव प्रदान करने की जल्दी शुरुआत करवाना उन्हें इसकी परिकल्पना में आगे बढ़ने से पहले विषय से परिचित करवाने का श्रेष्‍ठ माध्‍यम है। यह पाठ योजना चुनाव प्रक्रिया का अभ्‍यास करवाती है जिसमें विद्यार्थी ‘चुनाव अभियान’, ‘गोपनीय मतदान’, ‘अवैध मत’, ‘गणना करना’ आदि के बारे में जानेंगे। 

पाठ योजना विवरण
अवधि : 
01 hours 20 mins
परिचय: 
राजनीति विज्ञान को विद्यार्थियों को प्राय: एक ‘बहुत नीरस’ या ‘बहुत उबाऊ’ विषय के रूप में  पढ़ाया जाता है। वे राजनीति विज्ञान के पाठों का अध्‍ययन रटने की विधि का प्रयोग करते हुए अपेक्षाकृत यांत्रिक और एकरस ढंग से करते हैं और अपने जीवन में इसके महत्व और सम्बद्धता को मुश्किल से महसूस कर पाते हैं। बच्चे अपने आसपास की ‘राजनीति’ और ‘सरकार’ के छोटे अंशों और टुकड़ों पर ध्‍यान तो देते हैं या उनका अवलोकन भी करते हैं परन्‍तु उन्हें अपनी पाठ्यपुस्तकों में सामग्री के साथ जोड़ने में असफल हो रहते हैं। बच्चों को उनके जीवन में राजनीति विज्ञान के महत्व का व्यावहारिक अनुभव प्रदान करने की जल्दी शुरुआत करवाना उन्हें इसकी परिकल्पना में आगे बढ़ने से पहले विषय से परिचित करवाने का श्रेष्‍ठ माध्‍यम है। यह पाठ योजना चुनाव प्रक्रिया का अभ्‍यास करवाती है जिसमें विद्यार्थी ‘चुनाव अभियान’, ‘गोपनीय मतदान’, ‘अवैध मत’, ‘गणना करना’ आदि के बारे में जानेंगे। 

उद्देश्‍य : 
चुनाव प्रक्रिया पर विद्यार्थियों को व्यावहारिक अनुभव हासिल करने में सहायता करना।विद्यार्थियों को निर्वाचन शब्दावली जैसे अभियान, मतपत्र, वोट आदि से परिचित करवाना।विद्यार्थियों को चुनाव प्रक्रिया की विधि और नियमों के बारे में शिक्षित करना। 

चरण : 
सत्र 1: 40 मिनट
सहायक सामग्री : विभिन्न दलों के चिह्नों के चित्र, गत्‍ते का एक खाली डिब्बा जो मतपेटी के रूप में प्रयोग किया जाएगा, मतपत्रों को तैयार करने के लिए कागज की शीट।

चरण 1 : रुचि पैदा करना
छात्रों से विभिन्न राजनीतिक दलों के चिह्नों के चित्र बनवाएँ।छात्रों को ये चित्र उनकी स्क्रैप-बुक में चिपकाने को कहें और सम्बन्धित चित्रों के साथ दलों के नाम लिखने दें।चिह्नों को उनके दलों के साथ सम्बद्ध करने में उनकी सहायता करें।

चरण 2 : समूह चर्चा
मतदान प्रक्रियामतदान के लिए आवश्‍यक न्यूनतम योग्यतामतपत्र की कल्पनाआपको कौन सी आयु में मतदान की अनुमति होगी?एक व्यक्ति को कितने मत डालने का अधिकार है?अंगुली पर निशान क्यों लगाते हैं?न मिटने वाली स्याही का प्रयोग क्यों किया जाता है?

आदि पर एक चर्चा की शुरुआत करें ।

चरण 3 : चुनाव प्रक्रिया की शुरुआत 
कक्षा को 3 समूहों में बाँट दें।प्रत्येक समूह को अपना एक दल प्रमुख मनोनीत करने के लिए कहें।अब प्रत्येक समूह या दल को अपने दल के लिए नाम निश्चित करना, एक पार्टी चिह्न डिजाईन करना और एक चुनाव कार्यक्रम तैयार करना है।चुनाव प्रक्रिया में चुनाव अभियान की कल्पना से परिचित करवाएँ ।दल प्रमुखों को कक्षा को सम्बोधित करने के लिए कहें और उनसे पूछें कि यदि वे कैप्टन चुन लिए जाते हैं तो वे कक्षा के लिए क्या करेंगे और कक्षा उन्हें वोट क्‍यों दे।

सत्र 2: 40 मिनट
चरण 1 : मतदान करना

कागज के पृष्‍ठ को समान आकार की पर्चियों में काटें। प्रत्येक विद्यार्थी को एक कागज की पर्ची मतपत्र तैयार करने के लिए दें और प्रत्येक विद्यार्थी को कागज पर तीनों दलों के निशान एक के नीचे दूसरा बनाने के लिए कहें।अब मतपत्र पर्चियों को इकट्ठा कर आपस में मिला दें।प्रत्येक विद्यार्थी को अलग-अलग आने के लिए कहें।  विद्यार्थी के आने पर उसे एक मतपत्र दें और विद्यार्थी को  उस दल के निशान के सामने निशान लगाने के लिए कहें जिसे वह अपना मत देना चाहता है। निशान लगाने के बाद पर्ची को मोड़ें और डिब्बे में डाल दें। समझाएँ कि कैसे ओवर राइटिंग या परस्पर काटने से मत ‘अवैध’ हो जाता है और इसकी गिनती नहीं की जाती है।विद्यार्थी द्वारा मतदान करने के बाद मतदान रजिस्टर में उस विद्यार्थी का नाम काट दें। मतदाता की अंगुली पर निशान लगाने के लिए एक मार्कर का उपयोग करें।

चरण 2 : गिनती करना

प्रत्येक समूह से एक विद्यार्थी को बुलाएँ।एक विद्यार्थी को मतपेटी खोलने और पर्चियाँ बाहर निकालने, दूसरे को उस दल का नाम पुकारने जिसे वोट दिया गया है और तीसरे विद्यार्थी को ब्लैकबोर्ड पर प्रत्येक दल के सामने मतों की संख्‍या लिखने की जिम्मेवारी सौंप दें।अब विद्यार्थियों को आँकड़ों का मिलान करने दें और यह निर्णय करने दें कि उनका कप्तान और उप-कप्तान कौन है।

अब उनके पास अपने लोकतांत्रिक ढंग से चुने हुए नेता हैं।

(यह लेख टीचर्स प्‍लस में प्रकाशित लेख का सम्‍पादित हिन्‍दी अनुवाद है।) 

प्रस्तुति : अध्यापक की सोच

बुधवार, 20 दिसंबर 2017

गरीबी कोई बाधा नहीं ....... ।।

गरीबी के बावजूद भी ये लोग बने IAS

प्रेषित : अध्यापक की सोच

जब सुख सुविधाओं से संपन्न युवा अपने कीमती समय को आत्मसंतुष्टि में बिता रहे होते हैं ऐसे समय में वंचित छात्रों का भी एक समूह है जो अपने दृढ़ संकल्पों के साथ सभी प्रकार की रुढ़ियों को तोड़ते हुए करियर की बुलंदियों को हासिल कर रहे हैं। ऐसे जीवंत उदाहरणों में से कुछ उदाहरण हैं सफल सिविल सेवा उम्मीदवारों की जो कि सिविल सेवा अधिकारी किसी रिक्शा चालक के बेटा/ बेटी हैं या किसी रेहड़ी–पटरी पर सामान बेच कर अपने परिवार का भरण–पोषण करने वाले विक्रेता की संतान हैं।

आपने IAS बनने की इच्छा रखने वालों की प्रेरक कहानियों को जरूर सुना– पढ़ा होगा लेकिन नीचे दी गई ऐसी 5 कहानियां संभवतः आपकी सोच की दिशा बदल सकता है। आईये इन व्यक्तियों की शानदार सफलता की कहानियों और उपलब्धियों को पढ़कर अपने उत्साह को रिचार्ज करें। 

1. अंसार अहमद शेख (21 वर्षीय)– ऑटो चालक का बेटा

अंसार अहमद शेख UPSC सिविल सेवा परीक्षा में सफल होने वाले सबसे युवा उम्मीदवार रहे हैं। उन्होंने यह उपलब्धि 2015 में अपने पहले ही प्रयास में सफलता अर्जित की। उस समय इनकी उम्र मात्र 21 वर्ष थी। इनका अखिल भारतीय रैंक 361 था।

अंसार शेख ऑटो रिक्शा चलाने वाले के बेटे और एक मैकेनिक के भाई हैं। महाराष्ट्र के जालना गांव के गरीब परिवार से ताल्लुक रखते हैं।  अपनी कमजोर आर्थिक स्थिति के बावजूद अनवर ने शुरुआत से ही पढ़ाई में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया और पुणे के प्रतिष्ठित कॉलेज में बी.ए. (राजनीति विज्ञान) में दाखिला लिया।  दृढ़ इच्छाशक्ति से प्रेरित अनवर ने यूपीएससी परीक्षाओं की तैयारी के साथ–साथ लगातार तीन वर्षों तक रोजाना 12 घंटों तक काम किया।

इन्होंने धार्मिक भेदभाव समेत सभी प्रकार की बाधाओं पर जीत हासिल की और भारत के सबसे प्रतिष्ठित प्रतियोगी परीक्षा यूपीएससी में सफलता अर्जित की। गरीब रुढ़ीवादी मुस्लिम परिवार के अंसार की उपलब्धि वाकई प्रशंसनीय है। कठिन प्रतियोगिता (कड़ी प्रतिस्पर्धा ) के इस दौर में अपनी पहचान के लिए संघर्ष करने वाले कई गरीब उम्मीदवारों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं अनवर। 

2. कुलदीप द्विवेदी (27 वर्षीय) IPS– सुरक्षा गार्ड का बेटा

वर्ष 2015 में यूपीएससी द्वारा आयोजित की गई सिविल सेवा परीक्षा में कुलदीप द्विवेदी की अखिल भारतीय रैंक 242 रही। लखनऊ विश्वविद्यालय में सुरक्षा गार्ड का काम करने वाले के बेटे कुलदीप द्विवेदी ने यह साबित कर दिया कि यदि आपमें सफल होने की इच्छाशक्ति है तो कोई भी बाधा उसे रोक नहीं सकती। इनके पिता सूर्यकांत द्विवेदी लखनऊ विश्वविद्यालय में सुरक्षा गार्ड के तौर पर काम करते हैं और पांच लोगों के परिवार का लालन– पालन करते हैं। लेकिन सूर्य कांत की कमजोर आर्थिक स्थिति भी उनके बेटे को भारतीय समाज में सबसे प्रतिष्ठित नौकरी हासिल करने हेतु प्रोत्साहित करने से न रोक सकी। उन्होंने अपने बेटे की महत्वाकांक्षा का सिर्फ नैतिक रूप से बल्कि अपनी क्षमता के अनुसार आर्थिक रूप से भी समर्थन किया। नतीजों के घोषित होने के बाद भी पूरे परिवार के लिए यह विश्वास  करना मुश्किल हो रहा था कि उनके सबसे छोटे बेटे ने अपने जीवन की सबसे बड़ी खुशी हासिल कर ली है।

संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) द्वारा आयोजित की जाने वाली लोक सेवा परीक्षा में रैंक लाने का अर्थ क्या है, यह अपने परिवार को समझाने में कुलदीप द्विवेदी को समय लगा। तीन भाईयों और एक बहन में ये सबसे छोटे हैं और बचपन से ही सिविल सेवक बनना चाहते थे।

कुलदीप द्विवेदी ने 2009 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक किया था और 2011 में अपने स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी की। उन्होंने साबित कर दिखाया कि कड़ी मेहनत किसी भी परिस्थितियों पर निर्भर नहीं करती बल्कि खुद की क्षमताओं पर भरोसा करना सबसे महत्वपूर्ण है। उनकी सफलता दृढ़– संकल्प एवं लक्ष्य पर केंद्रित मन और पिता के प्रयासों का उदाहरण है। इन्होंने अपनी गरीबी को पीछे छोड़ते हुए सफलता के लिए काफी मेहनत की।

3. श्वेता अग्रवाल– पंसारी की बेटी

एक और दिल को छू लेने वाली कहानी। भद्रेश्वर के पंसारी की बेटी – श्वेता अग्रवाल जिन्होंने 2015 में हुई यूपीएससी की परीक्षा में 19वीं रैंक हासिल कर अपने IAS बनने के सपने को साकार किया। इनके संघर्ष की कहानी कई बाधाओँ को पार करने से भरी है। इसमें मूलभूत शिक्षा सुविधाओँ से लेकर यूपीएससी परीक्षा 2015 की अव्वल 3 महिला उम्मीदवारों में आना तक शामिल है। वे बताती हैं कि कैसे गरीबी से लड़ते हुए उनके माता– पिता ने उन्हें अच्छी शिक्षा प्रदान की। श्वेता को अपने माता– पिता पर बेहद गर्व है।

श्वेता ने अपनी स्कूली शिक्षा सेंट जोसेफ कॉन्वेंट बंदेल स्कूल से पूरी की। स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद श्वेता ने सेंट जेवियर्स कॉलेज कोलकाता से आर्थशास्त्र में स्नातक किया।

श्वेता ने इससे पहले यूपीएससी परीक्षा दो बार पास की, लेकिन वे आईएएस अधिकारी ही बनना चाहती थी। बंगाल कैडर में शामिल होने पर श्वेता को गर्व है और यह भी सोचती हैं कि ज्यादातर युवा सिविल सेवा से इसलिए दूर रहते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि उन्हें जनता की बजाय राजनीतिक आकाओं के मातहत काम करना पड़ेगा। यह हमेशा कहा जाता है कि मध्यमवर्गीय परिवार की लड़की के माता–पिता द्वारा उनके महत्वाकांक्षी सपनों को समर्थन देना बहुत मुश्किल होता है l लेकिन लैंगिक भेद समेत सभी प्रकार की बाधाओँ को पीछे छोड़ते हुए श्वेता अग्रवाल और उनका परिवार बिना शर्त की जाने वाली कड़ी मेहनत और लगन का उदाहरण है।

4. नीरीश राजपूत– दर्जी का बेटा

 नीरीश राजपूत के पिता वीरेन्द्र राजपूत एक दर्जी हैं । मध्य प्रदेश के भिंड जिले का एक गरीब युवा हैं, इन्होंने  बेहद कठिन सिविल सेवा परीक्षा में पास होने के लिए सभी मुश्किलों को पार किया और साबित किया कि गरीबी सफलता के लिए बाधा नहीं है।

सिविल सेवा परीक्षा के पिछले तीन प्रयासों में वे विफल रहे थे लेकिन इन्होंने हार नहीं मानी। चौथे प्रयास में वे 370वीं रैंक के साथ पास हुए। वे गोहाड तहसील के मऊ गांव में 300 वर्ग फीट के घर में रहते थे। सिविल सेवक बनने के अपने सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने अखबार डालने जैसे कई प्रकार के काम भी किए। 

उन्हें नहीं पता था कि आईएएस अधिकारी कैसे बना जा सकता है लेकिन वे जानते थे कि देश के शीर्ष परीक्षा में सफल होने के बाद हीं वे अपना भाग्य बदल सकते हैं और उन्हें विश्वास था कि यदि कोई दृढ़ संकल्पी हो और कड़ी मेहनत करने को तैयार हो तो उनकी गरीबी उसकी सफलता की राह में बाधा नहीं हो सकती। वे सरकारी स्कूल और फिर ग्वालियर के औसत दर्जे के कॉलेज से पढ़े थे। उनके दो बड़े भाई जो अनुबंध शिक्षक हैं, नीरीश के सपने को साकार करने के लिए अपनी अधिकांश जमापूंजी, ऊर्जा और हिम्मत नीरीश को सौंप दी। उन्होंने इस मिथक को भी तोड़ा कि पब्लिक स्कूल के छात्र ही इन परीक्षाओं में अच्छा कर सकते हैं।

5. ह्रदय कुमार – किसान का बेटा

 ओडीशा के केंद्रपाड़ा जिले का सूदूर गांव अंगुलाई के बीपीएल धारक किसान के बेटे ह्रदय कुमार ने सिविल सेवा परीक्षा 2014 में 1079वीं रैंक हासिल की थी। वंचित पृष्ठभूमि का होने के बावजूद उन्होंने कभी हार नहीं मानी और अपने लक्ष्य को प्राप्त किया। इनका परिवार सरकार द्वारा चलाई गई सामाजिक कल्याण फ्लैगशिप कार्यक्रम इंदिरा आवास योजना के तहत मिले घर में रहता था। 

ह्रदय कुमार ने सरकारी प्राथमिक विद्यालय तथा एवं उच्च विद्यालय से प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा प्राप्त की। 12वीं की परीक्षा इन्होंने द्वितीय श्रेणी में पास की थी लेकिन वे क्रिकेट में अच्छे थे और क्रिकेट में ही करियर बनाना चाहते थे। इन्होंने कालाहांडी अंतरजिला क्रिकेट प्रतियोगिता में अपने घरेलू जिला टीम का प्रतिनिधित्व भी किया था। लेकिन नियति ने उनके लिए कुछ और ही तय कर रखा था तथा खेल करिअर में आगे बढ़ने की अनिश्चितताओं ने उन्हें शिक्षा के क्षेत्र में करियर चुनने को विवश किया। माध्यमिक शिक्षा पूरी करने के बाद इन्होंने उत्कल विश्वविद्यालय में पांच– वर्षों के समेकित एमसीए कोर्स में दाखिला लिया। पढ़ाई के लिए मिले माहौल का उन्होंने बेहतर इस्तेमाल किया और सिविल सेवा परीक्षा में अपना भाग्य आजमाया। लेकिन पहले दो प्रयासों में ये मेधा सूची में आने में विफल रहें । 

अन्य प्रेरक कहानियां–

6. मनोज कुमार रॉय– अंडा विक्रेता से सिविल सेवक

इन्होंने चौथे प्रयास में यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा पास की और अब भारतीय आयुध निर्माणी सेवा (आईओएफएस) अधिकारी के तौर पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं। सप्ताहांत वे अपने राज्य के गरीब छात्रों को यूपीएससी परीक्षा में पास होने के लिए पढ़ाते हैं। दिल्ली में अपने संघर्ष के दिनों में उन्होंने अंडे बेचे, सब्जियां बेचीं और यहां तक कि पैसे कमाने के लिए दफ्तर में पोछा लगाने का भी काम किया।

के. जयगणेश– वेटर से आईएएस अधिकारी बनने का सफर  

के. जयगणेश सिविल सेवा परीक्षा में छह बार विफल हुए लेकिन कभी हार नहीं मानी। अपने अंतिम प्रयास में वे 156वें रैंक से पास हुए और भारतीय प्रशासनिक सेवा के लिए चुने गए। जयगणेश तमिलनाडु के एक गांव के बेहद गरीब परिवार से हैं और फिर भी वे इंजीनिर बनें । कई तरह के काम किए। आईएएस अधिकारी बनने के अपने सपने को पूरा करने के लिए वेटर का भी काम किया।

गोविंद जायसवाल– रिक्शाचालक का बेटा

इनके पिता ने कड़ी मेहनत की, अपनी आजीविका की एक मात्र साधन जमीन बेच दी ताकि गोविंद की पढ़ाई हो सके। अपने पिता के संघर्षों और सपने को पूरा करते हुए गोविंद ने 2006 की सिविल सेवा परीक्षा 48वीं रैंक के साथ पास की।

नासमझों की समझ

नासमझों की समझ और सोच को हम सामान्यतः नकार देते हैं। ये तो बच्चे है ये क्या समझेंगे; तुम बच्चे हो अभी तुम्हारी समझ कम है; तुम बच्चे हो तुम हमें सही गलत सिखाओगे? हम कहते हैं, “तुम जानते ही कितना हो?”

आखिर क्यों ? क्यों हम उनकी सोच को नकार देते हैं ? अगर मैं समझ की बात छोड़ भी दूँ, तो हम बड़ों को तो यह भी नहीं लगता कि बच्चे सोच सकते हैं। किसी भी स्थिति को लेकर उनकी अपनी कोई सोच भी हो सकती है। हमारी बच्चों के प्रति ऐसी अवधारणा कहीं न कहीं गलत होती हैं। बच्चे भी सोचते हैं। उनका भी अपने समाज के प्रति एक नजरिया होता है, जिसे वे दूसरों के बीच रखना चाहते हैं, वे दूसरों को बताना चाहते हैं, परन्तु फिर वही “ये बच्चे हैं, अबोध हैं ये क्या विचार रखेंगे” ऐसी सोच उनको ऐसा करने से रोकती है। बच्चों के विचार शायद हमारे विचार से बेहतर होते हैं। हमारे उस समाज के विचार से अच्छे होते हैं, जो स्वार्थ और नफरत का चश्मा पहने हुए होता है।

कक्षा 5 के बच्चों के साथ जब मैंने उनकी रचनात्मकता और समाज को लेकर उनकी समझ को समझने के लिए काम किया तब मुझे यह एहसास हुआ कि हम कितने गलत हैं। मैंने बच्‍चों को सिर्फ एक चित्र दिया, जिस पर उन्हें एक कहानी लिखनी थी। पाँचवी के बच्चे जिन्हें हम मानते हैं कि इनको शेर, भालू, चीते की कहानी पसन्‍द होती हैं, उन्होंने उस तस्वीर की जो कहानी उकेरी, वो मेरी भी सोच से परे था। बच्चों को यह तस्वीर दिखाई गई।

इस चित्र को देखकर छोटी उम्र के इन बच्चों के ऐसे विचार और अनुभव सामने आए, जो इन्होंने कभी न कभी अपने समाज में या तो देखें हैं या महसूस किए हैं। उन्होंने अपनी इसी अनुभव और दृष्टिकोण को कहानी के रूप में पेश किया। उन कहानियों की कुछ झलकियाँ।

स्टोरी 1

कहानी का सार यह था कि महिला नीची जाति की थी और आदमी जो ऊँची जाति का था। उसे पानी नहीं भरने देता। वह उससे कहता है कि तुम नीची जाति की हो इस कारण यहाँ से पानी नहीं भर सकती।

बच्चे ने वही लिखा जो उसने अपने जीवन में अनुभव किया और सिर्फ यही नहीं जाति भेदभाव को लेकर उसने अपनी लिखी कहानी में अपने विचार भी अभिव्यक्त किए कि जब हम सबका खून लाल है, हम सब अन्न ही खाते हैं, तो हमें इस तरह का भेद नहीं करना चाहिए। उस बच्चे ने यह भी लिखा है कि अगर हम कहीं ऐसा देखेंगे तो उन्हें समझाएँगे। ये बच्चा जो कक्षा 5 का छात्र है जाति भेदभाव को इतनी गहराई से समझता है जिस बात को बड़े लोग नहीं समझ पाते हैं या समझना ही नहीं चाहते हैं l

 स्टोरी 2

 एक बच्चे ने लिखा कि आदमी उस महिला को पानी इसलिए नहीं भरने दे रहा क्योंकि महिला बीच में अपना घड़ा लगाने की कोशिश कर रही है। बच्चे के अनुसार गलती महिला की है। उसे लाइन में लगना चाहिए था। अगर इस चित्र को हम देंखेंगे तो शायद इस बारे में नहीं सोच पाएँगे क्योंकि ऐसी कोई लाइन भी चित्र में दिखाई नहीं दे रही है। उस बच्चे ने वही लिखा, जो उसने अपने परिवेश में देखा है, अनुभव किया है और उसने अपने इसी अनुभव को चित्र में देखा तथा कहानी के रूप में उसकी कल्पना की।

स्टोरी 3

 इस कहानी में बच्चे ने लिखा कि औरत को घर जाने की जल्दी होती है, इसलिए वह आदमी को कहती है कि मुझे पानी भर लेने दो। इस पर आदमी कहता है कि नहीं मुझे भी घर जाना है। मैं पहले भरूँगा। इस कहानी को लेकर बच्चे ने अपना जो दृष्टिकोण रखा वह यह था कि हमें दूसरों की परेशानी को भी समझना चाहिए।

बाद में पूछने पर बच्चे ने अपना खुद का अनुभव बताया है। किस तरह उसके गाँव के हैंडपम्प पर भीड़ होने की वजह से परेशानी होती है। उसे स्कूल आना होता है और निवेदन करने पर भी उसे पहले पानी नहीं भरने दिया जाता। जिससे वह कई बार स्कूल देर से पहुँचता है।

स्टोरी 4

इस कहानी को बच्चे ने एक अलग ही दृष्टिकोण दिया है, उसने लिखा है कि जब औरत पानी भरने जाती है और वह आदमी उसे पानी नहीं भरने देता है। तब वह अपने घर में भी एक वॉटर टैंक बनवा लेती है। एक दिन आदमी के वाटर टैंक में पानी नहीं आ रहा था, तब वह औरत के पास उसके वॉटर टैंक से पानी भरने जाता है। वह उसे पानी भरने देती है इस पर आदमी को अपनी भूल का एहसास होता है और वह उससे माफी माँगता है। इस पर औरत कहती है कि कोई बात नहीं। इस कहानी से इस बच्चे का आशय साफ झलकता है कि कोई कैसा भी व्यवहार करे, हमें हमेशा सबकी मदद करनी चाहिएl अपने मन में किसी के लिए कोई बैर नहीं रखना चाहिए।

ये कहानियाँ पढ़ने के बाद भी क्या हम कहेंगे कि ये बच्चे कुछ नहीं समझते । इनमें सोचने की, विश्लेषण करने की क्षमता या तो कम है या फिर नहीं है। इनमें से कुछ कहानियाँ उन्ही भील बच्‍चों ने लिखी है,जिनके लिए बड़ी आसानी से लोग कह दिया करते हैं“ये बच्चे कुछ सीख नहीं सकते यह तो मन्‍दबुद्धि होते हैं।’’

हम अपनी असफलताओं का दोष भी इन बच्‍चों पर डालकर अपनी जिम्मेदारियो से बड़ी आसानी से खुद को बरी कर लेते हैं।

हमें ठहरकर सोचने की जरूरत है कि आखिर क्यों हम इन बच्‍चों से उनकी कल्पनाशीलता ,उनके सोचने और अभिव्यक्त करने की आजादी को छीनकर उन्हें किसी अँधेरी खाई की ओर धकेल देते हैं।

क्या उनकी इन कहानियों में ज्ञान का वो प्रकाश दिखाई नहीं दे रहा, जिसकी रोशनी की आज हमें “एक अच्छे समाज निर्माण” के लिए जरूरत है, जहाँ लोग एक-दूसरे को समझें, एक-दूसरे के प्रति आदर और सम्मान की भावना रखें। वह भावना जो जाति, धर्मऊँच-नीच पर आधारित न हो।

हमारे और आपकी तरह ये भी उसी जात-पात, धर्म भेद के दंश को अपने समाज में देखते हैं, अनुभव करते हैं परन्तु इनका बाल मन साफ है, निश्छल है।

लेकिन अफसोस कि उन्हें गला काट प्रतियोगिता में झोंककर हम उनकी यह समझ और सोचने की शक्ति उनसे छीन लेंगे और उनको यह समाज एक सामाजिक रोबोट बना देगा, जो न कुछ सोच पाएगा न ही कोई सवाल कर पाएगा।

स्‍वाति भंडारी, फैलो, अज़ीम प्रेमजी फाउण्‍डेशन,जिला संस्‍थान,राजसमंद, राजस्‍थान

प्रस्तुति : अध्यापक की सोच

रविवार, 17 दिसंबर 2017

जादू वाले सर ......


बल क्या है ?  प्रश्न पर एक बालक का उसके अध्यापक ने इस तरह से मजाक बनाया कि एक पल के लिए उसे विज्ञान विषय से नफरत होने लगी। आखिर वो क्या करता, उसे विज्ञान की परिभाषाएँ, शब्दावली और सिद्धान्‍त याद नहीं होते थे। वो तो बस अपने चारों ओर होने वाली घटनाओं में ही मन लगाता था। जब उन्हीं से सम्बन्धित प्रश्न अपने अध्यापक से पूछता कि ऐसा क्यों होता है, तो उसे कक्षा के सामने मूर्ख घोषित कर दिया जाता। एक बार को विज्ञान कहीं छूट ही जाता पर ’विज्ञान जैसा विषय मूर्खों के लिए नहीं होता है’ जैसे कथन ने उस बालक को आत्मबल दिया और उसने विज्ञान अध्यापक बनने का निश्चय किया।
आज वह बालक धीरेन्द्र खडायत अपने क्षेत्र में न सिर्फ विज्ञान का शिक्षक है बल्कि अपने क्षेत्र के बच्चो में “जादूगर सर” के नाम से भी प्रसिद्ध है। उसके पास खुद की बनाई ऐसी विज्ञान किट है जिससे वो बच्चों को जादू में छिपे विज्ञान को समझाता है और विज्ञान को एक मजेदार विषय बनाने में कार्यरत है। आसपास के अध्यापक ही नहीं बल्कि दूर-दराज के अध्यापक भी उससे टीएलएम बनाने की जानकारी, और अनुप्रयोग पर खुलकर बातें तो करते ही हैं साथ-साथ उसके द्वारा छेड़े गए अभियान, कि “हर विद्यालय के पास कबाड़ से जुगाड़ पर आधारित स्वनिर्मित प्रयोगशाला हो जो विज्ञान को एक मजेदार विषय बना सके” में भी सहयोग कर रहे हैं।
जी हाँ, वह बालक मैं ही हूँ। जिसे बच्चे आज जादूगर सर के नाम से बुलाते हैं। मेरी प्रारम्भिक शिक्षा उड़ामा गाँव में हुई, स्नातक विज्ञान में पिथौरागढ़ डिग्री कॉलेज से करने के बाद परास्नातक डी.एस.बी. कैम्‍पस, नैनीताल से किया और घर-परिवार के दबाव में आई.ए.एस. की कोचिंग में लग गया। लेकिन मेरा मन वहाँ नहीं लगा और तैयारी बीच में छोड़कर वर्ष 2012 में बी.टी.सी. की।
मैं विज्ञान के सिद्धान्‍तों और प्रयोगों को कैसे आसानी से समझा जाए पर बचपन से कार्य कर रहा था और इस प्रकार की सामग्री चाहे जहाँ मिल जाती उसे एकत्रित कर लेता। मुझे याद है कि विज्ञान के प्रयोगों के लिए इन्टरनेट या अन्य स्रोतों से प्राप्त सामान को जुटाना मेरे लिए बड़ा ही मुश्किल होता था। इसके लिए मुझे दिल्ली, हल्दवानी, देहरादून न जाने कहाँ-कहाँ जाना पड़ा। घरवालों के लिए ये बेकार का काम था और गाँव के लोगों के लिए मजाक का साधन। ऐसे में जब कोई मुझे साइंटिस्ट कहता तो मैं जानता था कि वो मेरा मजाक बना रहा है पर मैं कुछ न कह पाता था क्योंकि एक तो बेरोजगारी चरम पर थी, वहीं घरवाले भी खर्च देने में गुरेज करने लगे थे। फिर भी मैं आसपास के बच्चों के साथ विज्ञान के सरलतम प्रयोग करके उनके पीछे छिपी अवधारणाओं को समझाता रहा और बच्चे मजे से मेरा साथ देते रहे। इसका परिणाम यह हुआ कि मेरे पास आसपास के विद्यालयों से ’विज्ञान मेला’ लगाने के आमंत्रण आने लगे। चूँकि अब तक मेरे पास 60 से ज्यादा वर्किंग मॉडल तैयार हो चुके थे तो इसमें मुझे कोई समस्या नहीं थी और यहाँ से एक मुहिम चल पड़ी। इन सब से क्षेत्र में मेरी एक सकारात्मक छवि बनने लगी थी।
मुझे याद है कि सर्वप्रथम मैंने विज्ञान मेला ‘वेदा पब्लिक स्कूल डीडीहाट (पिथोरागढ़)’ में लगाया। जहाँ बहुत से प्रयोगों जैसे जादुई बरसात, पिंजड़े में तोता, हाथ में छेद, खुले मुँह का गुब्बारा, मैग्नेटिक ट्रेन, ढक्कन से चिपकी गेंद, विद्युत चुम्बक, श्वसन तंत्र आदि, को देखकर बच्चे आश्चर्यचकित हो गए और जादू-जादू कह तालियाँ बजाने लगे, पर जब इनके पीछे छिपे विज्ञान पर चर्चा हुई तो सब कह उठे ये कितना आसान है। इसके बाद वहाँ के अध्यापकों के साथ इनको बनाने पर चर्चा की। वास्तव में वहाँ के प्रधानाचार्य श्री रविन्द्र जेठी जी के शब्द कि, “इतनी छोटी  उम्र और इतना बड़ा कार्य, धीरज विज्ञान ऐसे भी पढ़ाया जा सकता है, तुमने मेरी सोच बदल दी, आज भी मुझे प्रेरणा देते हैं।’ वहाँ से चला ये सफर कई स्कूल और अध्यापकों तक पहुँच चुका है अब तो बच्चे देखते ही ’जादू वाले सर’ के नाम से चिल्लाने लगते हैं।
2012 में बी.टी.सी. करने के पश्चात मैंने खूब विज्ञान मेले आयोजित किए। इसी बीच मुझे राजकीय प्राथमिक विद्यालय तोलिख्वा कोट, ब्लॉक कनालीछीना में सहायक अध्यापक के रूप में नियुक्ति मिली और बच्चों के साथ, उनके परिवेश से जुड़ने का मौका मिला। इसी दौरान एक दिन मुझे डायट डीडीहाट से श्रीमती सुनीता पाण्डेय का फोन आया कि आपको मुख्य सन्दर्भदाता के प्रशिक्षण हेतु देहरादून जाना है। मैंने कहा, “मैडम मेरी उम्र तो बहुत कम है और इस क्षेत्र में अनुभव न के बराबर है, मैं कैसे कर पाऊँगा।” उनका जवाब सुन मैं भौंचक्का रह गया। वे बोलीं, “तुम्हारी पहचान उम्र से नहीं तुम्हारे काम से है। तुम्हारी इस कला को जिले के शिक्षकों के बीच पहुँचाने का इससे अच्छा मौका नहीं मिलेगा, तैयार हो जाओ।”
देहरादून की ट्रेनिंग में विज्ञान के क्रियाकलाप के दौरान अपनी विज्ञान किट से बहुत से प्रयोग प्रदर्शित किए। मैं सभी से मिले पुनर्बलन से अपने आपको गौरवान्वित महसूस कर रहा था कि तभी SCERT के साइंस को-ऑर्डिनेटर श्री एस.के.गौड़ मेरे पास आए और मेरे कन्धे पर हाथ रखकर बोले, “धीरज आज मैं आपका प्रशंसक हो गया हूँ।”
डायट डीडीहाट में मास्टर टेनर्स की ट्रेनिंग के दौरान मैंने यही प्रयोग दोहराए और इनको कैसे बनाएँ, कैसे प्रयोग करें व किस अध्याय के किस टॉपिक के साथ इनको जोड़कर उस टॉपिक को मजे से सिखाया जा सकता है, पर खुलकर चर्चा की। इससे प्रभावित होकर एक शिक्षक साथी श्री खोलिया जी बोले कि मैं अपनी चौदह साल की सर्विस में पहली बार एक जीवंत ट्रेनिंग करके जा रहा हूँ।
एक और घटना मुझे याद आती है कि एक दिन राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय आणाचौरा के प्रधानाचार्य श्री एल.डी.शर्मा जी ने फोन करके कहा कि हम अपने विद्यालय में कबाड़ से जुगाड़ पर आधरित स्वनिर्मित प्रयोगशाला बनाना चाहते हैं इसके लिए आपके साथ की जरूरत है। इसके बाद हमने मिलकर इस विद्यालय में बहुत ही सुन्‍दर स्वनिर्मित, मितव्ययी प्रयोगशाला स्थापित की।
यहाँ से विद्यालयों में इस प्रकार की प्रयोगशालाएँ स्थापित कर अपने अध्यापक साथियों को प्रेरित करने का विचार आया और इस पर कार्य शुरू कर दिया और साथियों को विज्ञान में बच्चों की रुचि कैसे बने को लेकर चर्चाएँ शुरू कर दीं।
हमारे बच्चों का शरदोत्सव (डीडीहाट) में विज्ञान की कबाड़ से जुगाड़ प्रतियोगिता में प्रथम स्थान तथा सपनों की उड़ान कार्यक्रम में CRC (Cluster Resource Center) स्तर पर सात व BRC (Block Resource Center) स्तर पर तीन पुरुस्कार प्राप्त करने से लगता है कि हमारा प्रयास फलीभूत हो रहा है।
विद्यालय पहुँचने के लिए लगभग 3 किलोमीटर के जंगली और पैदल रास्ते को पार करते हुए एक दिन मेरा ध्यान बुरांश के बेकार पड़े फूलों पर गया। उस दिन मैंने सोचा कि क्यों न इससे अपने क्षेत्र के बेरोजगार युवाओं के लिए कुछ रोजगार तलाशा जाए। हमने स्कूल के प्रधानाध्यापक के साथ विचार-विमर्श के बाद इन युवाओं को बुरांश के फूलों से जूस बनाने और उसकी मार्केटिंग करने का प्रशिक्षण देने हेतु कार्यशाला का आयोजन किया। अब यह कार्यशाला हम अपने विद्यालय में प्रत्येक वर्ष आयोजित करते हैं जिसमें विद्यालय प्रधानाध्यापक श्री प्रकाश चंद्र उपाध्याय का सहयोग सराहनीय है।
आज भी मेरा ध्यान इस बात पर रहता है कि खेल-खेल में विज्ञान कैसे बेहतर पढ़ाया जा सकता है। इसके लिए कौन सी विधि आसान है। कैसे बच्चा अपने परिवेश में बिखरे ज्ञान को किताबी दुनिया के साथ जोड़कर बेहतर विकास की ओर बढ़ता है।
बातें तो यहीं खत्म हो जाती हैं मगर सीखने-सिखाने का यह क्रम कुछ नए प्रयोगों, नए बच्चों व नए विद्यालयों में स्वनिर्मित प्रयोगशालाएँ बनाने के साथ चलता रहेगा।
(डायट डीडीहाट में एमटी ट्रेनिंग के दौरान मेरी मुलाकात अजीम प्रेमजी फाउण्‍डेशन पिथौरागढ़ के साथी श्रवण कुमार से हुई। उन्होंने उत्तराखण्ड के शिक्षक साथियों के प्रयासों का दस्तावेज ‘उम्मीद जगाते शिक्षक’ देते हुए मुझे अपने अनुभवों को लिखने के लिए प्रोत्साहित किया। यह लेख उसी का नतीजा है।)

धीरज खडायत,सहायक अध्‍यापक, राजकीय प्राथमिक विद्यालय,तोलिखवा कोट,ब्‍लाक कनालीछिना, पिथौरागढ़ 
(अज़ीम प्रेमजी फाउण्‍डेशन, उत्‍तराखण्‍ड द्वारा प्रकाशित ‘उम्‍मीद जगाते शिक्षक -2  से साभार।)
प्रेषक : अध्यापक की सोच