सोमवार, 10 सितंबर 2018

कैसे बनाएं शिक्षण को प्रभावशाली ?


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कभी-कभी एक शिक्षक ही किसी बच्चे के जीवन में बदलाव का प्रमुख कारण बन जाता है। 
प्रभावशाली शिक्षण की बुनियादी बात है कि इसे दो-तरफा होना चाहिए। यानि ऐसे शिक्षण में संवाद की गुंजाइश हो और क्लासरूम में बच्चों की आवाज़ भी सुनाई देती हो। अपने क्लासरूम में संवाद की गुंजाइश बनाने की प्रक्रिया बग़ैर तैयारी के संभव नहीं है। तैयारी के साथ होने वाला काम दीर्घकालीन प्रभाव छोड़ता है।
उदाहरण के तौर पर अगर आप छठीं कक्षा के बच्चों के साथ विज्ञान के कालांश में सजीव और निर्जीव वस्तुओं वाले टॉपिक को पढ़ाना चाहते हैं तो इसके लिए आपको पहले से सोचना होगा कि बच्चों के पूर्व-अनुभव क्या हैं? बच्चों से किस तरह के सवाल पूछने से संभावित जवाब कौन-कौन से आएंगे? बच्चों के परिवेश के हिसाब से इस टॉपिक को समझाने के लिए कौन से प्रयोग जीवंत रूप से आसपास मौजूद संसाधनों के माध्यम से किये जा सकते हैं।

1. पढ़ाने से पहले करें पूर्व-तैयारी

यानि संवाद की पूर्व-तैयारी कक्षा में आपके शिक्षण को जीवंत बना देगी। जब आप बच्चों के सामने होंगे तो पूरे कालांश की एक रूपरेखा आपके मन में होगी, संवाद के लिए जरूरी सवाल आपके पास होंगे। टॉपिक को समझाने के लिए कुछ उदाहरण आपके पास पहले से तैयार होंगे और बच्चों के तत्काल आने वाले जवाब और प्रतिक्रियाओं के माध्यम से आप चर्चा को एक सार्थक दिशा में आगे बढ़ाने की कोशिश करेंगे।
इतना ही नहीं कालांश की समाप्ति के बाद आप बच्चों को क्या होमवर्क देंगे और भविष्य में किन-किन प्रोजेक्ट के ऊपर उनको विभिन्न समूहों में बाँटकर काम करने का अवसर दे सकते हैं, आपके तैयारी की यात्रा यहाँ तक भी जायेगी। यह सबकुछ तभी संभव हो पायेगा, जब आप पाठ को पहले से पढ़ लें। उसके उद्देश्य को आत्मसात कर लें और एक योजना के साथ कक्षा-कक्ष में पढ़ाने के लिए जाएं। दो-तरफा संवाद सुनिश्चित करने की कोशिश करें और बच्चों की भागीदारी हासिल करने का सायास प्रयास करें।

2. हर बच्चे के जवाब को दें महत्व

कक्षा-कक्ष में चर्चा के दौरान हर बच्चे को भागीदारी देने का प्रयास करें। यह एक दिन में संभव न हो तो सप्ताह के अलग-अलग दिनों में बच्चों को अपनी बात रखने का अवसर दें। ताकि कोई भी बच्चा यह न महसूस करे कि कक्षा-कक्ष में जो पढ़ाया जा रहा है, वह उसके लिए समझना मुश्किल है। उसको लगे कि कक्षा का संचालन उसके लिए ही किया जा रहा है। इससे बच्चे खुद भी सीखने की जिम्मेदारी लेंगे और तैयारी के साथ कक्षा में आएंगे।

3. अपनी कक्षा में मौजूद बच्चों को समझें

बर्मिंघम के एक स्कूल में प्रिंसिपल डेनी स्टील लिखते हैं, “कल आप भी बच्चों के दिन को यादगार बनाने की वज़ह हो सकते हैं। आप केवल एक पाठ भर नहीं पढ़ा रहे हैं…आपकी उदारता एक बच्चे की ज़िंदगी को थोड़ा और बेहतर बना रही है।” इस बात में बच्चों के जीवन से जुड़ने और उसे सहज बनाने के लिए होने वाले प्रयास को रेखांकित किया गया है। ठीक इसी तरह की बात एक शिक्षिका ने कही कि मैं गणित नहीं पढ़ाती, मैं बच्चों को पढ़ाती हूँ जो मेरी कक्षा में मौजूद होते हैं। यानि कक्षा में बच्चों की मौजूदगी को सशक्त बनाना और उसके महत्व को रेखांकित करना। बच्चों के लिए वहां होने के अनुभव को यादगार बनाने बेहद जरूरी है। बच्चों के समझने वाले पक्ष में बहुत सारी चीज़ें शामिल हैं जैसे प्राथमिक या उच्च प्राथमिक स्तर के बच्चों के शारीरिक विकास को प्रोत्साहित करने के लिए कौन-कौन से खेलों में उनकी अच्छी भागीदारी हो सकती है।
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इस तस्वीर में बच्चे अपने नन्हे दोस्तों को सीखने में मदद कर रहे हैं। ऐसी संस्कृति का विकास सीखने-सिखाने के माहौल को बेहतर बनाने में सक्रिय योगदान देता है। 
बच्चों के संज्ञानात्मक विकास के लिए उनके साथ कौन-कौन सी गतिविधियां की जा सकती हैं ताकि उनको तर्क करने, विश्लेषण करने, तुलना करने, अनुमान लगाने और दुविधा की स्थिति में अपना एक पक्ष चुनने की प्रक्रिया से रूबरू होने का मौका मिले। ऐसा किसी कहानी या नाटक पर रोल प्ले या चर्चा के दौरान हो सकता है। या फिर किसी वास्तविक अनुभव पर चर्चा के दौरान भी ऐसे बिंदुओं को रेखांकित किया जा सकता है। बच्चों के परिवेश व संस्कृति को समझना भी बेहद जरूरी है,  इसके बग़ैर शिक्षण की प्रक्रिया को प्रभावशाली बनाने की कोशिश अधूरी रह जायेगी।
उदाहरण के तौर पर तेलंगाना से सटे हुए कर्नाटक के ज़िले यादगीर में शिक्षकों को तेलगू सीखनी होती है ताकि वे वहाँ के बच्चों के साथ संवाद कर सकें। ऐसा शिक्षकों ने बातचीत के दौरान बताया कि ऐसा करना उनकी और बच्चों दोनों की जरूरत का समाधान देता है। बग़ैर ऐसे संवाद के सीखना संभव नहीं हो सकता है, जिसमें सुनकर समझना और समझकर जवाब देना शामिल न हो।

4. हर बच्चा है ख़ास

मनोविज्ञान का एक सिद्धांत है जो वैयक्तिक विभिन्नता (individual difference) को महत्व देने की बात करता है। जैसे पेड़ का हर पत्ता अपनी बनावट, आकार, अवस्था और परिवेश के कारण अलग है, ठीक वैसे ही बच्चे अपने आनुवांशिक और परिवेशीय कारणों से अलग-अलग होते हैं। उनकी रुचियों में अंतर होता है। उनकी आदतों में अंतर होता है। उनके सीखने के तरीके में अंतर होता है।
बच्चों में किसी चीज़ के बारे में जानने की जिज्ञासाओं में भी अंतर होता है। इस कारण से एक शिक्षक की जिम्मेदारी बढ़ जाती है कि वह अपनी सिखाने के तरीके में ऐसी विविधता रखें जो सभी बच्चों की जरूरतों को पूरा करने में सक्षम हो। अगर हम किसी ख़ास तरीके से पूरे साल पढ़ाते रहें और कुछ ही बच्चों का सीखना हो रहा हो तो हम क्या करेंगे? जाहिर सी बात है कि हम बच्चों की बैठक व्यवस्था समेत उनको पढ़ाने के लिए अपनाये जाने वाले तरीके पर फिर से ग़ौर करेंगे कि कहाँ चूक हो रही है ताकि इस समस्या का समाधान खोजा जा सके।

5. बच्चों के सीखने की स्वायत्तता को महत्व दें

हम बच्चों के साथ उनके सीखने की प्रक्रिया को आसान बनाने और सार्थक दिशा देने के लिए काम करते हैं। हमारा दीर्घकालीन लक्ष्य होता है कि बच्चा खुद से चीज़ों को करके देखने लगे। वह खुद से सवालों के साथ जूझे और समाधान लेकर आने का प्रयास करे। वह स्वतंत्र रूप से पढ़ने लगे। वह किसी सामग्री को पढ़कर उससे खुद ही सवाल बना ले और सवालों का जवाब भी खोजे। एक बच्चा जो भी कुछ पढ़ रहा है, उसे अपने शब्दों में अभिव्यक्त करने का सफल प्रयास करे। अपनी लिखी हुई सामग्री को रोचक बनाने के लिए चित्रों का इस्तेमाल करे। इसके लिए बच्चों को रचनात्मक स्वतंत्रता देनी होगी ताकि वे ग़लती करें, उससे सीख लें और अगले काम में इस सीख को इस्तेमाल करें ताकि सीखने की प्रत्रिया की निरंतरता बनी रहे।
बातें और भी हैं। मगर उनकी चर्चा अगली पोस्ट में। इस पोस्ट के बारे में अगर आपके कोई अनुभव या विचार हैं तो कमेंट बॉक्स में लिखकर जरूर साझा करें ताकि संवाद हो सके। विमर्श के इस सिलसिले को भी दो-तरफा बनाने की जरूरत है ताकि लेखों का ज़मीनी अनुभवों और सवालों के साथ संवाद हो सके।

बृजेश सिंह द्वारा लिखित।

शनिवार, 8 सितंबर 2018

शिक्षक के नाम एक खत

शिक्षक के नाम एक खत

प्रिय शिक्षक/शिक्षिका,
आपको नमस्कार! शिक्षक दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएं और बधाइयां। इस मौके पर आपकी भूमिका के महत्व को रेखांकित करने और बच्चों के जीवन में लंबी छाप छोड़ने वाली भूमिका पर रौशनी डालने की जरूरत है। एक ऐसे दौर में जब शिक्षकों पर चौतरफा हमले हो रहे हैं। उनकी क्षमता पर संदेह किया जा रहा है। उनको मीडिया में एक विलेन की तरह पेश करने की कोशिश हो रही है। सरकारी स्कूलों की विफलता का ठीकरा आपके सर फोड़ने की कोशिश हो रही है। नीति आयोग जैसी संस्थाओं की तरफ से तथाकथित खराब चल रहे सरकारी स्कूलों के निजीकरण और पीपीपी मोड में  देने की सिफारिश का दौर है।
पुरानी पेंशन की माँग और शिक्षकों के खाली पदों को योग्य लोगों द्वारा भरने की माँग हो रही है। शिक्षामित्रों को स्थायी नियुक्ति और नियमित रोज़गार के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है, आप अभी भी कुछ राज्यों में किताबों का इंतज़ार कर रहे हैं। अपना कोई काम करवाने के लिे विभाग में बतौर पुरस्कार अपनी मेहनत की कमाई को बतौर घूस देने को मजबूर हैं। आपको चाइल्ड केयर लीव के लिए भी सिफारिश खोजनी पड़ी रही है या फिर वित्तीय जुगाड़ के माध्यम से आपको अपना काम निकलवाना पड़ रहा है, बहुत दुःख होता है, इन सारी परिस्थितियों को देखकर जिसमें आप काम कर रहे हैं।

शिक्षकों के हक़ में मुखर हो रहे हैं प्रोत्साहन के स्वर

एक सकारात्मक बात है कि शिक्षकों के प्रति प्रोत्साहन और सहयोग के स्वर भी मुखर हो रहे हैं। शिक्षकों के मंच सक्रिय हो रहे हैं और शिक्षकों की आवाज़ वैकल्पिक मीडिया के माध्यमों के सहारे बाहर आ रही है। जैसे मुश्किल हालात आपके सामने हैं, वैसी ही हिंसा और आलोचना का सामना नई पीढ़ी के बच्चे भी कर रहे हैं। बड़ों के पास उनसे बात करने के लिए समय नहीं है। उनके परवरिश और पढ़ाई की जिम्मेदारी को निभाने का समय अभिभावकों के पास नहीं है। समय बदल रहा है और इस बदलते समय में तकनीक से इंसानों का समय छीन लिया है और उनको एक ऐसे समय  में धकेल दिया है, जब वास्तविक ज़िंदगी के सापेक्ष वर्चुअल ज़िंदगी का दबाव साफ-साफ महसूस हो रहा है। ऐसे दौर में आपकी भूमिका एक बच्चे के प्रति बहुत ज्यादा बढ़ गई है।
IMG_20180220_103420.jpgआपसे बतौर अभिभावक अपेक्षा कि आप बच्चे को अपने बच्चे जैसा ही स्नेह दें। उसकी क्षमताओं पर भरोसा करें और उसे अपनी क्षमताओं को स्वाभाविक गति से विकसित होने का अवसर दें। भले ही आज का दौर प्रतिस्पर्धा है, मगर आप किसी होड़ का हिस्सा बच्चे को न बनने दें।
आप उसे होमवर्क के दबाव से मुक्त रखें। उसकी रूचि और जिज्ञासा को प्रोत्साहन दें। उसे अन्य बच्चों के साथ घुलने-मिलने का मौका दें, ताकि वह टीम के खिलाड़ी के रूप में अपनी भूमिका की पहचान कर सके। बच्चे को आप पाठ्यपुस्तकों के साथ-साथ साहित्य और किताबों की उस व्यापक दुनिया से भी रूबरू होने का मौका दें, जो उसे जीवन में दूसरों के दुःख के प्रति संवेदनशील होना, विचारों की यात्रा में अपने नन्हें पाँव मजबूत करने में मदद करेगी। बच्चे को अगर आप ऐसा माहौल दे सकें, जो उसे सकारात्मक-स्व के विकास के साथ-साथ दूसरों के सकारात्मक पहलुओं को प्रोत्साहित करने में मदद करे तो बड़ी अच्छी बात होगी।

बच्चे को पुरस्कार के प्रलोभन और दण्ड से डर से मुक्त करें

हर बच्चे के सीखने की गति या रफ्तार अलग-अलग होती है। तो उसे विकसित होने देना स्वाभाविक गति से ताकि उसका बचपन बचा रहे और उसका लगाव बना रहे शिक्षा की प्रक्रिया से। ताकि बहुत से विद्यार्थियों की भांति वह शिक्षण प्रक्रिया के उबाऊ और यांत्रिक होने के बोझ व दबाव से आज़ाद रह सके और अन्य बच्चों को भी ऐसा ही माहौल देना। बच्चे को आप पुरस्कार के प्रलोभन और दण्ड के डर सेमुक्त रखना ताकि वह मजबूती से अपने पाँवों पर आत्मविश्वास के साथ चलना, गिरना और फिर संभलना सीख सके।
जीवन में बहुत कुछ पुरस्कार और दण्ड की परवाह किये बग़़ैर भी हासिल किया जा सकता है, यह मैंने अपने जीवन के अनुभवों से सीखा है। उसे सिखाना बेफिक्र होकर अपने मन की करने की आज़ादी को जीना और अपनी ग़लतियों से खुद सबक लेने और आगे बढ़ना की कला ताकि वह जीवन के हर क्षेत्र में एक आत्मनिर्भर अध्येता के रूप में अपने जीवन की राह चुन सके और उन पलों में जब उसे बतौर शिक्षक आपके योगदान का अहसास हो, वह दिल से आपका शुक्रिया कह सके। अपने जीवन को दिशा देने के लिए आपके योगदान को सार्वजनिक और निजी जीवन में लोगों के साथ सहज ही साझा कर सके।
बतौर शिक्षक आपकी यात्रा सुखद बने और अच्छे अनुभवों से आपको अपने रास्ते पर सतत आगे बढ़ने का प्रोत्साहन मिलता रहे, इन्हीं शुभकामनाओं के साथ यह पत्र समाप्त करता हूँ। आपसे फिर मिलते हैं कभी अगली चिट्ठी के साथ।