बुधवार, 27 सितंबर 2017

The Law of Attraction

आकर्षण  का  सिद्धांत  यह  कहता  है  कि  आप  अपने  जीवन  में  उस  चीज  को  आकर्षित  करते  हैं  जिसके  बारे  में  आप  सोचते  हैं।

आपकी  प्रबल सोच हकीक़त  बनने  का  कोई  ना  कोई  रास्ता  निकाल लेती है । लेकिन  Law of Attraction कुछ  ऐसे  प्रश्नों  को  जन्म  देता  है  जिसके  उत्तर  आसान  नहीं  हैं । पर  मेरा  मानना  है  कि  problem Law of Attraction कि  वजह  से  नहीं  है   बल्कि  इससे  है  कि  Law of Attraction को  objective reality (वस्तुनिष्ठ वास्तविकता ) में  कैसे  apply करते  हैं ।

 क्या  होता है  जब  लोगों  की  intention (इरादा, सोच, विचार, उद्देश्य)  conflict करती  है ,जैसे  कि  दो  लोग  एक  ही  promotion के  बारे  में  सोचते  हैं , जबकि एक  ही  जगह  खाली   है ?

क्या  छोटे  बच्चों , या  जानवरों  की  भी  intentions काम  करती  है ?

अगर  किसी  बच्चे  के  साथ  दुष्कर्म  होता  है  तो  क्या  इसका  मतलब  है  कि  उसने  ऐसा  इरादा  किया  था ?

अगर  मैं  अपनी  relation अच्छा  करना  चाहता  हूँ  लेकिन  मेरा / मेरी  spouse इस पर  ध्यान  नहीं  देती , तो  क्या  होगा ?

ये  प्रश्न  Law of Attraction की  possibility को  कमज़ोर  बनाते  हैं ।

कभी – कभार  Law of Attraction में  विश्वास  करने  वाले  लोग  इसे  justify करने  के  लिए  कुछ  ज्यादा  ही  आगे  बढ़  जाते  हैं।

For Exapmle, वो  कहते  हैं  कि  बच्चे  के  साथ  दुष्कर्म  इसलिए  हुआ  क्योंकि  उसने  इसके  बारे  में  अपने  पिछले  जनम  में  सोचा  था । भाई , ऐसे  तो  हम किसी  भी  चीज  को  explain कर  सकते  हैं , पर मेरी  नज़र  में  तो  ये  तो  जान  छुड़ाने  वाली  बात  हुई ।

मैं  औरों  द्वारा  दिए  गए  इन  प्रश्नों  के  उत्तर  से   कभी  भी  satisfy नहीं  हुआ , और  यदि  Law of Attraction में  विश्वास  करना  है  तो  इनके  उत्तर  जानना  महत्त्वपूर्ण  है ।

कुछ  books इनका  उत्तर  देने  का  प्रयास  ज़रूर  करती  हैं  पर  संतोषजनक  जवाब  नहीं  दे  पातीं । पर  subjective reality (व्यक्ति – निष्ठ वास्तविकता ) के  concept में  इसका  सही  उत्तर  ढूँढा जा  सकता  है ।

Subjective Reality एक  belief system (विश्वास प्रणाली) है  जिसमे

 (1)   सिर्फ  एक consciousness (चेतना) है ।

 (2)   आप  ही  वो  consciousness हैं ।

 (3)   हर  एक  चीज , हर  एक  व्यक्ति,  जो  वास्तविकता  में  है वो आप  ही  की  सोच  का  परिणाम  है ।

शायद  आप  को  आसानी से दिखाई  ना  दे  पर  subjective reality Law of Attraction के  सभी  tricky questions का  बड़ी  सफाई  से  answer देती  है ।

मैं  explain करता  हूँ ….

Subjective reality में  केवल  एक  consciousness होती   है – आपकी  consciousness. इसलिए पूरे ब्रह्माण्ड में intentions का एक ही श्रोत होता है -आप ।

आप भले ही वास्तविकता में तमाम लोगों को आते-जाते, बात करते देखें , वो सभी आपकी consciousness के भीतर exist करते हैं।

आप जानते हैं कि आपके सपने इसी तरह काम करते हैं, पर आप ये नहीं realize करते कि आपकी waking reality एक तरह का सपना ही है । वो सिर्फ इसलिए सच लगता है क्योंकि आप विश्वास करते हैं कि वो सच है।

चूँकि और कोई भी जिससे आप मिलते हैं वो आपके सपने का हिस्सा हैं, आपके अलावा किसी और की कोई intention नहीं हो सकती। सिर्फ आप ही की intentions हैं। पूरे Universe में आप अकेले सोचने वाले व्यक्ति हैं।

यह ज़रूरी है कि subjective reality में “आप” को अच्छे से define किया जाये ।

“आप” आपका शरीर नहीं है।

“आप” आपका अहम नहीं है।

मैं यह नहीं कह रहा हूँ की आप एक conscious body हैं जो unconscious मशीनों के बीच घूम रहे हैं। यह तो subjective reality की समझ के बिलकुल उलट है। सही viewpoint यह है कि आप एक अकेली consciousness हैं जिसमे सारी वास्तविकता घट रही है।

Imagine करिए की आप कोई सपना देख रहे हैं।

उस सपने में आप वास्तव में क्या हैं ? 

क्या आप वही हैं जो आप खुद को सपने में देख रहे हैं?

नहीं, बिलकुल नहीं , वो तो आपके सपने का अवतार है। आप तो सपना देखने वाला व्यक्ति हैं । पूरा सपना आपकी consciousness में होता है। सपने के सारे किरदार आपकी सोच का परिणाम हैं, including  आपका खुद का अवतार। 

दरअसल , यदि आप lucid dreaming सीख लें तो आप आपने सपने में ही अपने अवतार बदल सकते हैं। Lucid dreaming में आप वो हर एक चीज कर सकते हैं जिसको कर सकने में  आपका यकीन हैं।

Physical reality इसी तरह से काम करती है। यह ब्रह्माण्ड आप के सपने के  ब्रह्माण्ड की तुलना में  कहीं घना है, इसलिए यहाँ बदलाव धीरे-धीरे होता है। पर यह reality भी आपके विचारों के अनुरूप होती है, ठीक वैसे ही जैसे आपके सपने आपके सोच के अनुरूप होते है। “आप” वो dreamer हैं जिसके सपने में यह सब घटित हो रहा है।

कहने का मतलब;

यह एक भ्रम है कि और लोगों कि intentions है, वो तो बस आपकी सोच का परिणाम हैं।

Of course, यदि आप बहुत strongly believe करते हैं कि औरों की intentions हैं, तो आप अपने लिए ऐसा ही सपना बुनेंगे।
पर ultimately वो एक भ्रम है।

तो आइये देखते हैं कि Subjective Reality  कैसे Law of Attraction के कठिन प्रश्नों का उत्तर देती है:

क्या  होता है  जब  लोगों  की  intention (इरादा, सोच, विचार, उद्देश्य)  conflict करती  है , जैसे  कि  दो  लोग  एक  ही  promotion के  बारे  में  सोचते  हैं , जबकि एक  ही  जगह  खाली   है ?

चूँकि आप अकेले  ही ऐसे  व्यक्ति हैं जिसकी intentions हैं, ये  महज   एक  internal conflict है – आपके  भीतर  का । आप  खुद  उस  thought (intention) को  जन्म  दे  रहे  हैं  कि  दोनों  व्यक्ति  एक  ही  position चाहते  हैं । लेकिन  आप  ये  भी  सोच  रहे  हैं  (intending) कि एक ही व्यक्ति को यह position मिल  सकती  है........

यानि  आप competition intend कर रहे हैं.। यह पूरी  situation आप ही की creation है। आप competition में believe करते हैं, इसलिए आपके जीवन  में वही घटता  है। शायद आपकी  पहले  se ही  कुछ  belief है (thoughts and intentions)  कि  किसको  promotion मिलेगी , ऐसे  में  आपकी  उम्मीद  हकीकत  बनेगी। पर  शायद  आप  की  ये  belief हो  कि  life unfair है  uncertain है , तो  ऐसे  में  आपको  कोई  surprise मिल  सकता  है  क्योंकि  आप  वही  intend कर  रहे  हैं ।

अपने यथार्थ  में  एक  अकेला  Intender होना   आपके  कंधे  पर  एक  भारी  जिम्मेदारी  डालता  है । आप  ये  सोच  कर  की  दुनिया  अनिश्चित  है  unfair है ,  आदि  , अपनी  reality का control  छोड़  सकते  हैं , पर  आप  अपनी  जिम्मेदारी  नहीं  छोड़  सकते  हैं । आप  इस  Universe के एक  मात्र रचियता हैं । यदि  आप  युद्ध , गरीबी , बिमारी , इत्यादि  के  बारे  में  सोचेंगे  तो  आपको  यही  देखने  को  मिलेगा । यदि  आप  शांती , प्रेम , ख़ुशी  के  बारे  में  सोचेंगे  तो  आपको  ये  सब  हकीकत में होते हुए दिखेगा । आप  जब  भी  किसी  चीज  के  बारे  में  सोचते  हैं  तो , तो  दरअसल  उस सोच को  वास्तविकता में प्रकट होने का आह्वान करते हैं।

क्या  छोटे  बच्चों , या  जानवरों  की  भी  intentions काम  करती  है ?

नहीं , यहाँ  तक  की  आपके  शरीर  की  भी  कोई  intention नहीं  होती  है —सिर्फ  आपके  consciousness की  intentions होती  हैं ।

आप  अकेले  हैं  जिसकी  intentions हैं , इसलिए  वो  होता  है  जो  आप  बच्चे  या  जानवरों  के  लिए  सोचते  हैं । हर  एक  सोच  एक  intention है , तो  आप  जैसे  भी  उनके बारे  में  सोचेंगे  यथार्थ  में  उनके  साथ वैसा  ही  होगा । ये  ध्यान में  रखिये  कि beliefs hierarchical (अधिक्रमिक) हैं , इसलिए यदि  आपकी  ये  belief की  वास्तविकता  अनिश्चित  है , uncontrollable है  ज्यादा  शशक्त है  तो  ये  आपकी  अन्य  beliefs, जिसमे  आपको  कम  यकीन  है , को  दबा देंगी । आपके  सभी  विचारों  का  संग्रह   ये  तय  करता  है  की  आपको  हकीकत  में  क्या  दिखाई  देगा ।

अगर  किसी  बच्चे  के  साथ  दुष्कर्म  होता  है  तो  क्या  इसका  मतलब  है  कि  उसने  ऐसा  इरादा  किया  था ?

नहीं ।
इसका  मतलब  है  की  आपने  ऐसा  intend किया  था । आप  child abuse के  बारे  में  सोच  कर  उससे  वास्तविकता में  होने के  लिए  intend करते  हैं । आप  जितना  ही  child abuse के  बारे  में  सोचेंगे ( या  किसी  और  चीज  के  बारे  में ) उतना  ही  हकीकत  में  आप  उसका  विस्तार  देखेंगे । आप  जिस  बारे  में  भी  सोचते  हैं  उसका  विस्तार  होता  है , और  वो बस  आप तक  ही  सीमित  नहीं  होता  बल्की  पूरे  ब्रह्माण्ड  में  ऐसा  होता  है ।

अगर  मैं  अपनी  relation अच्छा  करना  चाहता  हूँ  लेकिन  मेरा / मेरी  spouse इस पर  ध्यान  नहीं  देती , तो  क्या  होगा ?

यह  intending conflict का  एक  और  उदाहरण  है । आप  एक  intention अपने  अवतार  की  कर  रहे  हैं  और  एक  अपने  spouse की  , तो  जो actual intention पैदा  होती  है  वो  conflict की  होती  है । इसलिए  आप  जो  experience करते  हैं , depending on your higher order beliefs, वो  आपके  spouse के  साथ  आपका  conflict होता  है । अगर  आपकी  thoughts conflicted हैं  तो  आपकी  reality भी  conflicted होगी ।

इसीलिए  अपने  विचारों  की  जिम्मेदारी  लेना  इतना  महत्त्वपूर्ण  है । यदि  आप  दुनिया  में  शांती  देखना  चाहते  हैं  तो  अपनी  reality में  हर एक  चीज  के  लिए  शांती  intend कीजिये । यदि  आप  loving relationship enjoy करना  चाहते  हैं  तो  सभी  के  लिए  loving relationships intend कीजिये । यदि  आप  ऐसा  सिर्फ  अपने  लिए  ही  intend  करते  हैं  और  दूसरों  के  लिए  नहीं  तो  इसका  मतलब  है  की  आप  conflict, division, separation  intend कर  रहे  हैं , और  as a result आप  यही  experience करेंगे ।

अगर  आप  किसी  चीज  के  बारे  में  बिलकुल  ही  सोचना  छोड़  देंगे  तो  क्या  वो  गायब  हो  जाएगी ?

हाँ , technically वो  गायब  हो  जाएगी ।

लेकिन  practically  आप  जिस  चीज  को  create कर  चुके  हैं  उसे  uncreate करना लगभग असंभव  है । आप  उन्ही  समस्यों  पर  focus कर  के  उन्हें  बढाते  जायेंगे । पर  जब  आप   अभी   जो  कुछ  भी  वास्तविकता  में  अनुभव  कर  रहे  हैं  उसके  लिए  खुद  को  100 % responsible मानेंगे  तो  आप  में  वो  शक्ति  आ  जाएगी  जिससे  आप  अपने  विचारों  को  बदलकर  अपनी  वास्तविकता  को  बदल  सकते  हैं ।

ये  सारी  वास्तविकता  आप  ही  की  बनाई  हुई  है . उसके  बारे  में  अच्छा  feel करिए । विश्व  की  richness के  लिए  grateful रहिये । और  फिर  अपने  decisions और  intentions से  उस  reality का  निर्माण  करना  शुरू  कीजिये  जो  आप  सच -मुच  चाहते  हैं । उस  बारे  में  सोचिये  जिसकी आप  इच्छा  रखते  हैं  , और  जो  आप  नहीं  चाहते  हैं उससे  अपना  ध्यान  हटाइए ।  ये  करने  का  सबसे  आसान  और  natural तरीका  है  अपने  emotions पर  ध्यान  देना ।अपनी  इच्छाओं  के  बारे  में  सोचना  आपको  खुश  करता  है  और  जो आप  नहीं  चाहते  हैं  उस  बारे  में  सोचना  आपको  बुरा  feel कराता  है । जब  आप  notice करें  की  आप  बुरा  feel कर  रहे  हैं  तो  समझ  जाइये  की  आप  किसी  ऐसी  चीज  के  बारे  में  सोच  रहे  हैं  जो  आप  नहीं  चाहते  हैं । वापस  अपना  focus उस  तरफ  ले  जाइये  जो  आप  चाहते  हैं , आपकी  emotional state बड़ी  तेजी  से  improve होगी । जब  आप  बार  बार  ऐसा  करने  लगेंगे  तब  आपको  अपनी  physical reality में  भी  बदलाव  आना  नज़र  आएगा , पहले  धीरे -धीरे  और  बाद  में  बड़ी  तेजी  से ।

मैं  भी  आपकी  consciousness का  ही  परिणाम  हूँ । मैं  वैसे  ही  करता  हूँ  जैसा  की  आप  मुझसे  expect करते  हैं । यदि  आप  मुझे  एक  helpful guide के  रूप  में  expect करते  हैं , तो  मैं  वैसा  ही  बन  जाऊंगा । यदि  आप  मुझे  गहन और व्यवहारिक होना expect करते  हैं  तो  मैं  वैसा  बन  जाऊंगा ।

यदि  आप  मुझे  confused और  बहका हुआ  expect करते  हैं  तो  मैं  वैसा  बन  जाऊंगा । पर  मैं  ऐसा  कोई  “मैं ” नहीं  हूँ  जो  आपसे  अलग  है । मैं  बस  आपकी  creations में  से  एक  हूँ । मैं  वो  हूँ  जो  आप  मेरे  लिए  intend करते  हैं । और  कहीं  ना  कहीं  आप  पहले  से  ये  जानते  हैं , क्यों  है  ना ?

Faith in one's learners is everything

When I went to school today, I had no clue about how amazing it is going to turn out. As usual, I went for rounds and interacted with a few teachers. They shared their challenges in the class and wanted me to assist them. The day seemed quite ordinary until one of the teachers came running to me and asked me to meet Rashmi Ma’am, Grade 6, English Teacher immediately. I was really scared that something terrible has happened. So, I ran to her class immediately. Little did I know that what awaited me was going to create a shift in the way I see a classroom.

The magician: Rashmi Ma’am!

When I reached the 6th standard, I noticed that the classroom arrangement was different than usual. The children in the classroom were divided into groups and completely engaged in an activity. This is an unusual sight in the context of classrooms that we work with where children sit in their respective seats in rows. I was in awe of what was happening in the class because it’s quite rare to see a 100% student engagement in a classroom. In one of the corners, I spotted Rashmi Ma’am looking at me and smiling. Her smile conveyed a sense of accomplishment and pride. I could not help myself from hugging her. I congratulated her for successfully executing peer learning in the classroom. In her words, these classes “Worked like magic for children”and it was quite evident how much she enjoyed it.

I was excited about my post-observation discussion like a child on Christmas Eve. When we work with schools and teachers, the only thing that we aim for is change readiness among our stakeholders. This is a brilliant example of that. It was the result of our sustained efforts and motivation over a year. For me, this class spoke leaps and bounds about the kind of change that is to follow in the coming time.

In our discussion, Rashmi Ma’am enlightened me with the process and the motivation behind piloting “peer learning” in the class. She mentioned that she was struggling in the class to cater to the needs of the children at different learning levels. One period is too less a time to focus on all children. Hence, she thought of leveraging the strengths of the children and build a culture where children are not necessarily dependent on the teacher. She first identified the children who were struggling in her subject and paired them with students who were fairly good. Like any initiative, it was a bit difficult to implement in the beginning but when the children saw value in it, it became very effective. She shared how peer learning has led to immediate success points like completion of classwork and homework by children.


Rashmi Ma’am with her peer learning stars!

She said and I quote, “It is a huge jump from last year or even last month, I could never imagine that Dhanush or Harish would finish their work and keep their notebooks clean. But what I see now is just an inspiration for me to not give up on my kids.”

She also observed that students learn a great deal by explaining their ideas to others and by participating in activities in which they can learn from their peers. They develop skills in organizing and planning learning activities, working collaboratively with others, giving and receiving feedback and evaluating their own learning.

While sharing her experience, she went on to say that it is easy to blame the student for all the bad results and incomplete homework, but as teachers we need to introspect about it. It is our fault if the children are unable to gain any learning in the class.”

By the end of this discussion, I almost teared up. It was wonderful to see the effort that Rashmi Ma’am put in her class. Teachers like her deepen our faith in the fact that change is possible irrespective of the size or type of a school. She has inspired me to keep working hard and set high expectations for our teachers and our schools. This day indeed was Magic for me!

Vasundhara who penned this story is School Transformation Lead at Mantra4Change.

बुधवार, 20 सितंबर 2017

लिखने में गलतियां

बच्चों द्वारा लिखते समय की जाने वाली गलतियाँ अक्सर शिक्षकों के लिए भयानक चिन्‍ता का विषय होती हैं। ये गलतियाँ कई बार मात्राओं की होती हैं तो कई बार पूरा शब्द गलत लिखे जाने की।  

एक शिक्षिका के अनुसार, “मेरे बच्चे इ और ई की मात्रा में और उ और ऊ की मात्रा लगाते समय लगातार गलतियाँ करते हैं।” तो आप इन गलतियों में सुधार के लिए क्या करती हैं? पूछे जाने पर उन्होंने बताया, “मैं गलत शब्दों पर लाल स्याही से गोला लगाती हूँ और गलत लिखे गए शब्दों को स्वयं सही वर्तनी में लिखकर बच्चों को उन्हें तीन या पाँच बार लिखने को कहती हूँ।”

क्या उसके बाद उन शब्दों की वर्तनी सही हो जाती है? पूछे जाने पर वे निराश स्वर में बोलीं, “कहाँ हो पाती है मैडम, बच्चे ध्यान कहाँ देते हैं। बार-बार वैसी ही गलतियाँ करते हैं।”

गलतियाँ सुधारने की यह परम्‍परा दशकों से चली आ रही है। हम सब इसी प्रक्रिया से होकर गुजरे हैं। सालों साल शिक्षकों की और घरवालों की नाराजगी सही है, मार भी खाई है पर हमारी गलतियाँ भी शिक्षक द्वारा लाल स्याही से गोले लगाने या गलत शब्दों को पूरी पंक्तियाँ भरकर नकल करने से नहीं सुधरी। वरन जब हमने उन्हें सुधारना चाहा अर्थात उस शब्द की वर्तनी पर विशेष ध्यान दिया तब वह सुधरी।  

वास्तव में वर्तनी के मामले को दो तरीके से देखा जाना चाहिए। पहला तो यह कि जैसे ही हम यह मानने लगते हैं कि हिन्दी जैसी बोली जाती है वैसी ही लिखी जाती है, तो गलतियों की संभावना बहुत बढ़ जाती है। ऐसा मैं इसलिए कह रही हूँ क्योंकि हिन्दी बोलने और लिखने में फर्क होता है। उदाहरण के लिए हम पैसा (पइसा) या पौधा (पौदा) को जैसा बोलते हैं, उस तरह से लिखते नहीं हैं। इसी तरह कृष्ण के कृ को बोला क्रि की तरह जाता है। इसी तरह की गलतियाँ छोटी-बड़ी मात्राओं के उच्चारण में भी होती है अतः यदि हम इसी आग्रह के साथ जुड़े रहेंगे कि जैसा बोल रहे हो वैसा ही लिखो तो पहले हम शिक्षकों को भी हिन्दी को सही तरीके से बोलना सीखना होगा। क्योंकि बच्चे भी भाषा को उसी तरह से उच्चारित कर रहे हैं जैसा उन्होंने अपने आसपास सुना है।  

दूसरी बात यह कि हम शब्दों को केवल सुनकर लिखना नहीं सीखते वरन जो शब्द हमारी आँखों के सामने से जितनी बार गुजरता है, उसकी वर्तनी उतनी ही हमारे दिमाग में बैठती जाती है। वास्तव में शब्द भी चित्र होते हैं जो बार-बार देखे जाने पर हमारे दिमाग में स्थाई हो जाते हैं। विश्वास न हो तो कुछ शब्दों का स्मरण करके देख लें, वर्तनी सहित आपके दिमाग में अंकित हो जाएँगे। हमारे साथ अक्सर होता है कि किसी शब्द की वर्तनी में शंका होने पर हम उस शब्द को मन में याद करते हैं या लिखकर देखते हैं। यह उस शब्द चित्र को याद करने की ही विधि है।  

तात्पर्य यह कि वर्तनी की गलतियाँ केवल शब्दों को लाल करने से या किसी शब्द को एकाकी रूप से बार-बार लिखवाने से ठीक नहीं होगी। वर्तनी के सुधार के लिए सबसे उपयुक्त यह होगा कि बच्चों का सामना ऐसी कहानी या पाठ्यवस्तु से बार-बार कराया जाए जिसमें वह शब्द पूरे सन्दर्भ के साथ बार-बार आ रहा हो। सन्दर्भ या वाक्य की बात इसलिए कही जा रही है ताकि बच्चे वर्तनी के साथ-साथ उस शब्द का अर्थ ग्रहण कर सकें जो उन्हें उस शब्द को स्मृति में रखने में सहायता करता है। साथ ही उन्हें यह भी बताया जाए कि हम क्रिपा बोल रहे हैं पर उसे लिखा कृपा जाता है।

एक और महत्वपूर्ण बात यह कि कोई शब्द जितना हमारे सन्दर्भ से जुड़ता होगा, हमारे जीवन के जितना निकट होगा, उसे याद रखना अधिक आसान होगा। अतः यदि उन शब्दों को चुनकर सूचीबद्ध कर लिया जाए, जिन्हें लिखने में अधिकतर बच्चे गलतियाँ करते हैं और उन्हें किसी ऐसी कहानी या कहानियों में पिरो लिया जाए जो बच्चों को अपनी सी लगे तो उन शब्दों की वर्तनी बच्चे सहजता से याद कर लेंगे।  

कक्षा की दीवारों पर कहानी-कविताओं के पोस्टर, चार्ट आदि लगाएँ, जिनमें इस तरह के शब्द बार-बार आते हों। उन्हें रेखांकित करें। एक शब्द दीवार, शब्द जाल भी बनाकर दीवार पर लगा सकते हैं। ऐसा करने से वे शब्द बार-बार बच्‍चों की निगाहों के सामने से गुजरेंगे और उनकी वर्तनी सुधारने में मदद मिलेगी।  

लेखिका : भारती पंडितस्रोत व्‍यक्ति,
अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन भोपाल
प्रेषित : अध्यापक की सोच

मंगलवार, 19 सितंबर 2017

Impact

MBA करने के बाद समीर की प्लेसमेंट एक मल्टीनेशनल कम्पनी में हो गयी. Managerial positions में काम करने वाले employees में समीर सबसे young था. कम्पनी के directors के सामने वह खुद को साबित करना चाहता था, पर तमाम कोशिशों के बावजूद वो कुछ ऐसा नहीं कर पा रहा था जिसका एक बड़ा impact पड़े और लोग उसे notice करें.

अपनी इस परेशानी को discuss करने के लिए एक दिन उसने अपने college के professor, प्रो० कृष्णन को कॉल किया.

Busy होने के कारण प्रोफेसर ने समीर की मिल कर बात करने को कहा और उसे अगले Sunday को college में बुलाया.

समीर समय से पहुँच गया और दोनों campus में घूम-घूम कर बात करने लगे.

प्रोफेसर समीर की परेशानी समझ गए और बोले, “चलो जरा swimming pool का चक्कर लगा कर आते हैं.”

“क्या सर! मैं आपसे इतनी बड़ी problem discuss कर रहा हूँ और आप स्विमिंग पूल जाने की बात कर रहे हैं…”, समीर कुछ झुंझलाते हुए बोला.

“अरे आओ तो सही!”, प्रोफ़ेसर जबरदस्ती उसे अपने साथ ले गए.

दोपहर का समय था, पूल बिलकुल खाली था.

प्रोफ़ेसर बोले, “चलो एक गेम खेलते हैं… करना ये है कि हमें इस पूल में हलचल पैदा करनी है. देखते हैं कौन अधिक हलचल पैदा कर लेता है.”

समीर को लगा कि यहाँ आकर उसने अपना समय बर्बाद कर दिया है…पर वो प्रोफ़ेसर कृष्णन की बात टाल भी नहीं सकता था.

“सबसे पहले तुम प्रयास करो.”, प्रोफ़ेसर बोले.

समीर ने इधर-उधर देखा और पास ही पड़ी एक swimming pool tube उठा कर पानी में फेंक दी.

“हा-हा-हा”, प्रोफ़ेसर हँसते हुए बोले, “ इससे तो बस थोड़े से ही ripples बने हैं….क्या अपने प्रयासों से तुम बस इतनी सी ही हलचल पैदा कर सकते हो?”

यह सुनकर समीर थोड़ा गुस्से में आ गया, और झट से side में पड़ी एक चेयर उठाई और पानी में फेंक दी.

प्रोफेसर मुस्कुराते हुए बोले, “अच्छा है! ये प्रयास पहले वाले से बेहतर है…देखो इस बार का impact पहले से ज्यादा है और इसकी लहरें भी दूर तक गयी हैं.”

“ठीक है सर, तो क्या अब हम यहाँ से चलें?”, समीर बोला.

प्रोफ़ेसर ने फ़ौरन जवाब दिया, “नहीं! अभी खेल ख़त्म नहीं हुआ है!

क्या तुम एक और प्रयास करना चाहोगे?”

समीर जो भी हो रहा था उससे खुश नहीं था, वह खीजते हुए बोला, “ नहीं सर, अब यहाँ और कुछ नहीं पड़ा है जो मैं इस पूल में फेंकूं…. क्यों नहीं आप ही कोई प्रयास करके देख लेते हैं?”

अगले ही पल प्रोफ़ेसर अपने कपड़े उतारने लगे और दौड़ कर पानी में एक छलांग लगा दी!

“छपाक….”


पूल में हलचल ही हलचल मच गयी .

समीर भौंचक्का था. उसे ऐसा कुछ होने की उम्मीद नहीं थी.

“कुछ समझे समीर…”, प्रोफ़ेसर पानी से निकलते हुए बोले जा रहे थे, “ ये swimming pool दरअसल हमारे area of work को दर्शाता है…और अगर हमें इसमें maximum impact डालना है… अपने काम से पूरे ecosystem में ripples create करनी हैं तो हमें उस काम में डूबना होगा…हमें उसमे अपना सबकुछ लगा देना होगा…अधमने और छोटे-छोटे प्रयास तो हर कोई कर लेता है…हमें जी-जान से अपने काम को अपना सर्वश्रेष्ठ देना होगा और तब ये दुनिया हमें notice किये बिना नहीं रह पाएगी!”

समीर प्रोफ़ेसर की बात अच्छी तरह से समझ चुका था. अब वह एक नए जोश के साथ शहर की ओर वापस लौट रहा था…उसे पता था कि अब उसे क्या करना है!

दोस्तों, हमे चाहे जिस field से हों…अगर हमें अपनी field में नाम कमाना है…अपना प्रभाव छोड़ना है तो हमें ordinary से ऊपर उठना होगा.और ऐसा करने के लिए हमें extra-ordinary efforts करने होंगे…वरना हमारा काम तो होगा….लेकिन नाम नहीं होगा!

बुधवार, 13 सितंबर 2017

जल प्रदूषण : निजात दिलाएगा SSF

गंगा सहित देश की अन्य नदियों को मानव जनित प्रदूषण से बचाने की जरूरत लंबे समय से महसूस की जा रही है। इस दिशा में गुरुकुल कांगड़ी विवि व आईआईटी का एक संयुक्त शोध महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। जिले में स्थित दोनों शीर्ष संस्थानों के विज्ञानियों ने स्लो सेंड फिल्टर (एसएसएफ) नामक बहुत कम खर्चीली व अधिक कारगर तकनीक विकसित की है। शोध कार्य को अंतिम रूप दिए जाने के बाद अमेरिका में आयोजित पर्यावरण विज्ञान एवं तकनीक पर आयोजित चतुर्थ अंतर्राष्ट्रीय कान्फ्रेंस में इसके प्रस्तुतीकरण का न्योता मिल चुका है। 

गौरतलब है कि विस्तार लेती शहरी आबादी व बढ़ते औद्योगिकीकरण के चलते सिंचाई सहित अन्य कार्यो के लिए पानी की जरूरत को पूरा करने के लिए सीवेज ट्रीटमेंट की जरूरत भी बढ़ गई है, इसके लिये भारत में अपनाई जा रही प्रणाली महंगी होने के साथ ही प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मानकों के अनुसार पानी का शोधन नहीं कर पा रही है। 

इस दिशा में पिछले कुछ वर्षों से गुरुकुल कांगड़ी विवि के कुलसचिव व पर्यावरण विज्ञानी प्रो. एके चोपड़ा तथा आईआईटी रुड़की के प्रो. एए काजमी शोध कर रहे थे। अब इस शोध कार्य को लगभग अंतिम रूप देने के तुरंत बाद उन्हें 28 से 31 जुलाई तक अमेरिका के ह्यूस्टन में आयोजित पर्यावरण विज्ञान व तकनीकी पर आयोजित इंटरनेशनल कान्फ्रेंस में इसके प्रस्तुतीकरण का न्योता मिला है। 

प्रो. चोपड़ा के मुताबिक एसएसएफ तकनीक सीवेज के गहन ट्रीटमेंट के लिए तैयार की गयी है। वर्तमान में इस्तेमाल की जा रही तकनीक से निष्कासित पानी में बीमारी फैलाने वाले बैक्टीरिया बड़ी संख्या में मौजूद रहते हैं। इनकी संख्या एक लाख के लगभग होती है, जबकि यह मात्रा 100 एमएल में 1,000 से अधिक नहीं होनी चाहिए। एसएसएफ से शोधित पानी बैक्टीरिया को मानकों के अनुरूप ही साफ करता है। इस पद्धति की खासियत यह है कि यह बहुत कम खर्च में तैयार होने के बावजूद पुरानी पद्धति से कहीं अधिक कारगर है। इसमें न तो बिजली की खपत करनी पड़ती है और न ही महंगे उपकरणों की, इसके लिए आसानी से उपलब्ध रेत का ही उपयोग किया जाता है तथा यह बिना तकनीकी दक्षता वाले लोगों द्वारा भी संचालित की जा सकती है।